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हजार साल पीछे और हजार साल आगे की लड़ाई लड़ने वाले मोदी को क्या भारत वाले, पांच साल की एक और टर्म भी नहीं देंगे? भारतवासी इतने कंजूस नहीं हो सकते। और अगर भारतवासी ऐसी कंजूसी पर उतर ही आए, तब भी मोदी जी उनकी उदारता के ही भरोसे थोड़े ही बैठे हैं।
कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य के ट्विटर हैंडल से साभार
एक बार फिर थैंक यू मोदी जी! थैंक यू पहले से ही यह बता देने के लिए कि 2024 में भी गद्दी पर आएगा तो मोदी ही; अगले स्वतंत्रता दिवस पर भी लाल किले पर झंडा फहराएगा तो मोदी ही। फिर उसके, फिर उसके, फिर उसके अगले स्वतंत्रता दिवसों पर भी, मोदी, मोदी, मोदी ही। आप के इस एक वादे ने अडानी जी, अंबानी जी आदि सभी जी लोगों को और जाहिर है कि नागपुर परिवार वाले जी लोगों को भी कैसी तसल्ली दी है, इसका वर्णन करना मुश्किल है। बस इतना समझ लीजिए कि चिंता के मारे बहुत से जी लोगों ने तो इस पर सोच-विचार करना भी शुरू कर दिया था कि क्या अमृतकाल में भी, अमृतकाल-पूर्व की तरह, पब्लिक से ही राजा की किस्मत का फैसला कराना जरूरी है? मां भारती को क्या मोदी के एक और अटलबिहारी वाजपेयी बन जाने का जोखिम उठाना होगा? बिबेक देबराय जी ने तो इसीलिए, संविधान ही बदल डालने का नुस्खा भी पेश कर दिया था। न होगा चुनाव, न रहेगा विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता के लिए हार-जीत का जोखिम। जब महारानी एलिजाबेथ आखिरी सांस तक गद्दी पर रह सकती हैं, तो महाराजा मोदी क्यों नहीं? हमारे मोदी जी किसी एलिजाबेथ से कम हैं क्या? खैर, अब कोई चिंता-फिक्र नहीं।
और हां! थैंक यू आत्मनिर्भरता में एक और मंजिल ऊपर चढ़ जाने के लिए भी। आएगा तो मोदी ही कहने के लिए भी अब, किसी और के भरोसे नहीं रहना पड़ेगा। क्या पता वक्त पर कब, कौन पलट जाए या कुछ का कुछ बोल जाए। कुछ भी कर लो, हवा पर कब पूरी तरह से किसी का बस चलता है। और एक बार जब हवा पलटने लगती है, तो देखते-देखते सब कुछ ही तो पलटने लगता है। देखा नहीं कैसे कर्नाटक में और तो और बजरंग बली तक पलट गए। खुद मोदी जी के जैकारे लगवाने को भी पी गए; न अली से लडक़र दिखाया और न मशीन में कमल के निशान वाला बटन दबाया या अपने भक्तों से दबवाया। उल्टे अफवाह फैल जाने दी कि मोदी तो गया! खैर! अब दूसरे किसी के सहारे का झंझट ही नहीं रहा। अब तो छाती ठोक कर मोदी खुद ही कहेगा - आएगा तो मोदी ही। लाल किले से शुरूआत हो गयी है, अब बार-बार, हर बार, लगातार कहेगा; दो-चार नहीं, हजार बार मोदी खुद कहेगा - आएगा तो मोदी ही!
और हर बार मोदी ही क्यों नहीं आए? मोदी जैसा पहले भी कोई आया है क्या जो, मोदी अब और नहीं आएगा? आजादी की लड़ाई की इस देश में बहुत बातें होती हैं। आजादी की लड़ाई के टैम पर जो पैदा तक नहीं हुए थे, वो भी आजादी की लड़ाई पर गर्व होने की बातें करते हैं। कुछ दुष्ट तो इसी आजादी की लड़ाई से दूर रहने के लिए, केसरिया भाइयों को तरह-तरह के तानों से तंग भी करते रहते हैं। इसी जनतंत्र दिवस पर भाई लोग सोशल मीडिया में चुनौतियां दे रहे थे कि बाकी सब स्वतंत्रता सेनानियों की अपनी परंपरा का दावा करते हैं, केसरिया दल वाले भी अपने स्वतंत्रता सेनानियों के नाम गिनाएं, वगैरह। लेकिन, जिस आजादी की लड़ाई का अब तक इतना ढोल पीटा जाता था, जिसका नाम ले-लेकर बेचारे केसरिया दल वालों को तंग किया जाता था, वह तो सिर्फ अंग्रेजों वाली गुलामी से आजादी की लड़ाई थी। सिर्फ दो-ढाई सौ साल की गुलामी और उससे आजादी की लड़ाई का इतना शोर? मामूली सी गुलामी से मामूली सी लड़ाई और शोर इतना कि बेचारे संघ वालों को, लड़ाई के पचहत्तर साल बाद भी इसकी सफाइयां देनी पड़ रही हैं कि उनके पूर्वजों ने, उस वाली लड़ाई में हिस्सा क्यों नहीं लिया? बेचारे, सावरकर को इस लड़ाई में अपना पुरखा बताते हैं, तो दुष्टजन उनकी माफी की चिट्ठियां दिखाते हैं!
पर अब और नहीं। अब मोदी जी के हजार सौ साल वाली गुलामी की लड़ाई खोज निकालने के बाद, अब और नहीं। अब सब साफ-साफ दिखाई दे रहा है। संघी भाई जब हजार-बारह सौ साल वाली गुलामी की असली लड़ाई में व्यस्त थे, तब विधर्मियों ने षडयंत्रपूर्वक इस असली लड़ाई से ध्यान बंटाने के लिए, अंगरेजों के खिलाफ एक छुटकी सी लड़ाई छेड़ दी और जो असली लड़ाई में लगे थे उन्हें, भगोड़ा घोषित कर दिया। एक अंगरेज ने कांग्रेस की स्थापना यूं ही थोड़े ही की थी। खैर, अब यह धोखाधड़ी नहीं चलेगी। हजार साल की गुलामी से युद्ध और उसके योद्धाओं को, स्वतंत्रता के इतिहास में उनकी सही जगह मिलेगी। और जो बौने सिर्फ दो सौ साल की गुलामी के खिलाफ टुच्ची सी लड़ाई लडक़र महान स्वतंत्रता सेनानियों से लेकर राष्ट्रपिता तक, न जाने क्या-क्या बन बैठे हैं, उन्हें नये इतिहास में उनकी सही जगह बतायी जाएगी। दो ढाई सौ साल की गुलामी को ही गुलामी और उसके खिलाफ लड़ाई को ही गुलामी के खिलाफ लड़ाई माने बैठे देश को, हजार साल की गुलामी दिखाने वाला और हजार साल की गुलामी से लड़वाने वाला, मोदी ही दोबारा नहीं आएगा, तो कौन आएगा?
फिर मोदी ने सिर्फ हजार साल की गुलामी ही थोड़े ही खोजी है। अमृतकाल भले ही पचहत्तर साल का ही हो, पर मोदी ने भारत के गौरव के अगले हजार साल भी तो खोजे हैं। सिर्फ वादा नहीं है, बाकायदा मोदी की गारंटी है। तीसरे टर्म में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था। 2047 में विकसित देश। और फिर हजार साल। अब प्लीज ये मत पूछना इन हजार साल में क्या? पूरे ब्रह्मांड में मोदी-मोदी-मोदी गूंजता होगा; और क्या?
हजार साल पीछे और हजार साल आगे की लड़ाई लड़ने वाले मोदी को क्या भारत वाले, पांच साल की एक और टर्म भी नहीं देंगे? भारतवासी इतने कंजूस नहीं हो सकते। और अगर भारतवासी ऐसी कंजूसी पर उतर ही आए, तब भी मोदी जी उनकी उदारता के ही भरोसे थोड़े ही बैठे हैं। जब तक चुनाव आयोग साथ है, चुनाव की मशीन साथ है, चुनावी बांड का पैसा साथ है, आएगा तो मोदी ही। उससे भी काम नहीं चला तो भी क्या, चुनाव में हार के बाद सांसदों की मंडी सजवाएँगे मप्र, महाराष्ट्र, पिछली बार के कर्नाटक वगैरह की तरह, हार के भी आखिर में जीत जाएंगे; पर आएंगे तो मोदी ही। ऐसे नहीं तो वैसे, पर आएंगे तो मोदी ही। ये मोदी की गारंटी है।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)