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सरकारी प्रचार के फेर में अखबारों ने मुठभेड़ और कैप्टन के शहीद होने की खबर को कम महत्व दिया
वैसे तो यह सरकार जनहित में अपनी योग्यता, क्षमता और इच्छा के प्रचार पर बहुत ध्यान नहीं देती रही है और पहले की सरकारों के तथाकथित तुष्टिकरण के मुकाबले अपने संतुष्टीकरण के भरोसे ही रहती आई है पर अब जब पांच राज्यों के चुनाव के मौके पर निर्माणाधीन टनल में फंसे 10 मजदूरों का मामला गंभीर हो गया है और दुनिया भर की नजर इसपर है तो यह प्रचार किया जा रहा है कि सरकार क्या - क्या कर रही है। मजदूर भले अभी तक नहीं निकाले जा सके हैं। पर आपको उनके वॉक और योग करने के शीर्षक याद होंगे। अमर उजाला ने कल ही छाप दिया था, कामयाबी चंद कदम दूर, बड़ी बाधा न आई तो कल निकल सकते हैं मजदूर। आज के अखबारों की खबर है कि बड़ी बाधा नहीं आई और मजदूर आज निकल सकते हैं।
हादसा पिछले इतवार को हुआ था, कल उनके फंसे होने का 11वां दिन था आज 12वां दिन है। इंडियन एक्सप्रेस ने पांच एंबुलेंस की तस्वीर छापी है और बताया है कि मजदूरों के इंतजार में वे (24 घंटे पहले) तैयार खड़े कर दिये गये हैं। इंडियन एक्सप्रेस का फ्लैग शीर्षक है, उत्तरकाशी के टनल में 41 लोग फंसे हैं, 11 वां दिन। मुख्य शीर्षक है, बचाव अभियान तेज हुआ तो अंतिम मिनट की बाधा दूर करने एनडीआरएफ आया। टाइम्स ऑफ इंडिया का आज का शीर्षक वैसा है जैसा अमर उजाला ने कल छाप दिया था। टनल मामला निपटने के आसार, बचाव दल कुछ मीटर दूर।
द हिन्दू का शीर्षक है, उत्तरकाशी टनल में फंसे मजूर आजादी के करीब। 12 नवंबर से फंसे लोगों को आज निकाल लिये जाने की उम्मीद, मजदूरों और बाहर की दुनिया के बीच कुछ ही मीटर मलबा पड़ा है क्योंकि राहत टीम 45 मीटर तक पाइप लगाने में सफल हुई है। द हिन्दू ने एनडीआरएफ टीम की फोटो छापी है। दिलचस्प यह है कि द टेलीग्राफ भी अखबारों और खबरों की इसी भीड़ में शामिल हो गया है। यहां भी फोटो एम्बुलेंस और गाड़ियों की है जो बता रही है कि तैयारी तो है ही अधिकारी भी तैनात हैं। मुझे लगता है कि जो काम दो-चार दिन में हो जाता और हुआ भी उसमें 10 दिन लग जायें तो डबल इंजन की सरकार की छवि बनाये रखने के लिए इस तरह का प्रचार जरूरी होता है।
द टेलीग्राफ की खबर में बताया गया है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शाम 5.50 बजे ट्वीट करके बताया, "सिल्कयारा टनल में फंसे मजदूरों को सुरक्षित निकालने के लिए युद्ध सतर पर चलाये जा रहे अभियान का मौका मुआयना करने के लिए मैं उत्तरकाशी पहुंच रहा हूं।" कहने की जरूरत नहीं है कि कल ग्यारहवां दिन था, मजदूरों को निकालने की चार योजनाएं फेल हुईं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी हुई तो विदेश से विशेषज्ञ आये और तब कई योजनाओं पर एक साथ काम शुरू हुआ ताकि कोई तो सफल हो और किसी योजना के नाकाम होने के बाद नई योजना शुरू करने में समय बेकार न हो, भले पहली योजना सफल होने के बाद बाकी योजनाओं पर या गया काम बेकार हो जाए। ऐसे मामलों में ऐसे ही काम होता है। इस मामले में तो शुरू में खबर ही नहीं छपी और इसी का नतीजा है कि मजदूरों को 12 दिन फंसे रहना पड़ा। उससे हुई क्षतिपूर्ति के लिए खबरों की शैली प्रचार वाली हो गई है।
राजस्थान में 25 नवंबर को मतदान है और आज अगर मजदूर निकल गये तो सरकार की कामयाबी वाली यह खबर आज ही छप जायेगी पर मुझे यकीन है कि कुछ प्रचारक और सरकार समर्थक इससे संबंधित खबर 25 को भी छापें और छपवायें ताकि सरकार को प्रचार मिले न मिले यह संदेश नहीं जाये कि मजदूर 10 दिन से ज्यादा फंसे और डबल इंजन की सरकार ने कुछ नहीं किया। जो भी हो, यह 10 साल के हेडलाइन मैनेजमेंट का असर है और खबर यह भी है कि अब द टेलीग्राफ भी ऐसी ही खबरें छापने लगा है।
हिन्दुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया में भी आज यह खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर है जबकि नए प्रचारकों (द हिन्दू और द टेलीग्राफ) ने तो इसे लीड ही बना दिया है जबकि कश्मीर में आतंकवादियों से मुठभेड़ में कैप्टन समेत चार सैनिकों के शहीद होने की खबर ज्यादा बड़ी है। द टेलीग्राफ ने इसे लीड के साथ सिंगल कॉलम में छापा है। नवोदय टाइम्स ने टनल में फंसे मजदूरों की खबर को लीड के साथ बराबर में पर तीन कॉलम में लगाया है जबकि मुठभेड़ और सैनिकों के शहीद होने की खबर चार कॉलम में लीड है। अमर उजाला ने भी मुठभेड़ की खबर को लीड बनाया है पर टनल में फंसे मजदूरों की खबर उसके ऊपर टॉप पर है। चार कॉलम की लीड के मुकाबले पांच कॉलम में लीड के ऊपर।
आज के अखबारों की अन्य खबरें जो लीड हैं उनका शीर्षक इस प्रकार है। इससे आप समझ सकते हैं कि अखबार डबल इंजन वाली सरकार के प्रचार में कैसे पत्रकारिता की हत्या कर रहे हैं। वैसे भी, 11 दिन से निर्माणाधीन टनल में फंसे जो मजदूर वॉक और योग कर रहे थे, जिन्हें भोजन, ऑक्सीजन और दवाइयां पहुंचाई जा रही थीं उनका 12वें दिन सुरक्षित निकल आना इतनी बड़ी खबर नहीं है कि आज के दूसरे अखबारों में छपी और लीड बनी इन खबरों से ज्यादा महत्व पायें। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार का प्रचार पत्रकारिता के नियमों और आदर्शों का पालन करते हुए भी किया जा सकता है। सरकार का विरोध नहीं करने का निर्णय व्यापारिक या कारोबारी हो सकता है पर संपादकीय निर्णय तो पत्रकारिता के नियमों के अनुसार होने चाहिए।
आइये आज कुछ शीर्षक और उनकी प्रस्तुति देखें
1. इंडियन एक्सप्रेस
- उम्मीद है कि सभी बंधक रिहा कर दिये जायेंगे, गाजा यु्द्ध क्षेत्रीय नहीं होना चाहिये : प्रधानमंत्री (लीड)
- रिपोर्ट कहती है, अमेरिका ने खालिस्तानी अलगाववादी की हत्या की साजिश नाकाम की, भारत को चेतावनी दी
- राजौरी मुठभेड़ में मारे गये चार सैनिकों में दो कैप्टन
- टनल में फंसे मजदूरों की खबर और एम्बुलेंस की फोटो चौथे महत्व की है।
2. हिन्दुस्तान टाइम्स
- इजराइल युद्ध बढ़ना नहीं चाहिये : जी20 में मोदी (लीड)
- जम्मू कश्मीर की मुठभेड़ में दो कैप्टन, दो सैनिक शहीद
- पन्नून को अमेरिकी मिट्टी पर मारने की साजिश? भारत ने कहा, सूचनाओं की जांच की जा रही है
- टनल में फंसे मजदूरों की खबर और एम्बुलेंस की फोटो पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड है।
3. टाइम्स ऑफ इंडिया
- अमेरिका ने पन्नून की हत्या की कोशिश नाकाम की : रिपोर्ट, आतंक-अपराध गठजोड़ पर जानकारी मिली : विदेश मंत्रालय
- राजौरी गोलीबारी में मरने वाले चार सैनिकों में दो कैप्टन, उपशीर्षक में एक मेजर और जवान जख्मी; एक आतंकी मारा गया।
- पीएमएलए पर फैसले की समीक्षा पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू
- पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने की लीड का शीर्षक है, प्रधानमंत्री ने इजराइल -हमास करार, जी-20 7-बिन्दु सहमति का स्वागत किया।
- टनल में फंसे मजदूरों की खबर एम्बुलेंस की फोटो के अलावा किसी और फोटो के साथ अधपन्ने पर लीड नहीं है।
द हिन्दू और द टेलीग्राफ में ये सारी खबरें छोड़र टनल की खबर को लीड बनाया गया है। कहने की जरूरत नहीं है कि खबरों का चयन और उनकी प्रस्तुति संपादकीय विवेक और आजादी का मामला है और निर्णय को चुनौती नहीं दी जानी चाहिये पर मौजूदा स्थिति में कौन क्या कर रहा है उससे यह अनुमान लगता है कि वह प्रचारक बनने के लिए कितने दबाव में है। मेरे इस प्रयास का मकसद आपको यह तय करने में सहायता करना है।