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वेदांत के विख्यात आध्यात्मिक गुरु, जिन्होंने रामकृष्ण मिशन और मठ की स्थापना की। स्वामी विवेकानंद ने सनातन धर्म वेदों तथा ज्ञान शास्त्र को काफी ख्याति दिलाई। और विश्व भर में लोगों को भाई चारे का संदेश दिया। स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में पूरे विश्व भर में हिंदू धर्म के विषय में लोगों का नजरिया बदलते हुए लोगों को अध्ययन तथा वेदांत से परिचित कराया।
विश्व भर को भारत के अतिथि देवो भव:,सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता के विषय से परिचित कराया। स्वामी विवेकानंद बचपन से ही धार्मिक प्रकृति के थे और परमेश्वर की प्राप्ति के लिए व्यग्र रहा करते थे। रामकृष्ण परमहंस को अपना अध्यात्मिक गुरु के रूप में स्वीकार कर लेने के पश्चात नरेंद्र नाथ दत्त स्वामी विवेकानंद कहे जाने लगे।
स्वामी विवेकानन्द की वेद, उपनिषद भागवत गीता,रामायण महाभारत, और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिंदू शास्त्रों में गहन रुचि थी। वे वेदों के अध्ययन के साथ साथ नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम, खेलों में भाग लिया करते थे। यूरोप इतिहास का अध्ययन उन्होंने जनरल असेंबली इंस्टीट्यूशन में किया। उन्होंने स्पेंसर की किताब एजुकेशन 1807 का बांग्ला में अनुवाद भी किया।
स्वामी विवेकानंद सेंस बैंड ऑफ होप में भी सक्रिय रहे। जो धूम्रपान और शराब पीने से युवाओं को हतोत्साहित करता था। उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी, जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में कोई भेद ना रहे। स्वामी विवेकानंद को युवकों से बड़ी आशाएं थी। वे कहते थे। सभी संप्रदायों एवं मतों के कोटि-कोटि हिंदुओं की ओर से मैं धन्यवाद देता हूं! आगे कहते हैं मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है। जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों की उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया।
मुझे आपको या बतलाते हुए गर्व होता है। कि हमने अपने वक्ष में उन्हीं यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी। जिस वर्ष उनका पवित्र मंदिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था। ऐसे धर्म का अनुयाई होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूं! जिसने महान जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है।
स्वामी विवेकानंद की जयंती पर छत्तीसगढ़ राज्य सहित सम्पूर्ण देश उन्हें नमन करता है और यह विश्वास दिलाता है कि इस धार्मिक असहिष्णुता और धार्मिक कट्टरता के दौर में भी हम मनुष्य मात्र से प्रेम करना नहीं छोड़ेंगे । धर्म के नाम पर किसी दूसरे धर्म का निरादर नहीं करेंगे । सभी धर्म के प्रति सम्मान का भाव रखना और सभी धर्म के मनुष्यों से प्रेम करना ही स्वामी विवेकानंद को सच्ची भावांजलि अर्पित करना है।