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हमारे देश में महिलाओं की ऐसी भी प्रतिभाएं हैं, जो गरीबी की वजह से कम शिक्षा मिलने के बावजूद अपनी क्षमता को आगे बढ़ाती हुई समाज के बंधनों से मुक्त होकर अपने बल और हिम्मत पर स्वयं को निर्माता बनाती है और साथ साथ देश और समाज का विकास भी कर देती है । ऐसी ही महिलाओं में से कल्पना सरोज है, जिसने अपने बल पर स्वयं की पहचान बना ली है ।
कल्पना किसी खानदानी उद्यमी परिवार से नहीं है और न ही कोई अमीर परिवार से है। मात्र नौवीं तक ही पढ़ी लिखी कल्पना ने आज आत्मनिर्भर होकर स्वयं की पहचान बना ली है । वर्तमान में कल्पना आठ कंपनियों की मालकिन है । देश के बड़े बड़े उद्यमिता क्षेत्र में उभरता हुआ उनका नाम है । परिस्थितियों से संघर्ष करती आई कल्पना के बुलंद हौसले और उसके जज्बे की सराहना आज चारों तरफ हो रही है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनकी कई बार सराहना की है ।
कल्पना सरोज का जन्म महाराष्ट्र के अकोला जिले के छोटे से गाँव रोपरखेड़ा के एक दलित (बौद्ध ) परिवार में 1961 में हुआ। उनके पिता महाराष्ट्र पुलिस विभाग में हवलदार थे । उनका वेतन कम होने के कारण घर की आर्थिक परिस्थिति भी कुछ खास नहीं थी । इसी हालात को लेके कल्पना गोबर के उपले बनाकर उसे बेच कर घर में अपना योगदान देती थी । कल्पना जब 12 साल की हुई,तब वह पाँचवी कक्षा में पढ़ रही थी। उस दौरान मामा के दबाव में आकर उसकी शादी दस साल बड़े आदमी से कर दी गई ।
कल्पना शादी के बाद विधर्भ से आकर मुंबई की झोपड़पट्टी में रहने लगी । बारह साल की उम्र में ना तो कोई समझ रहती और ना ही कोई खास अनुभव। उस छोटी सी उम्र में संयुक्त परिवार होने के कारण 10 से 12 लोगों के पूरे काम का बोझ उसपे डाल दिया गया । इतना ही नहीं,उस पर अत्याचार भी होने लगे। गलतियां होने पर समय समय पर कल्पना के साथ मार पीट भी होती थी। ससुराल के अत्याचार झेलते रहने के कारण उसकी हालात बद से बदतर होती जा रही थी। शादी के छह महीने बाद कल्पना के पिताजी उसे मिलने आ ए तो पिता को सामने देखकर वह खूब रोने लगी। शरीर पर मारने पीटने के घाव ,उसकी यह दुर्दशा पिताजी को देखी न गई। पिता कल्पना को अपने साथ लेकर चले गए ।
पिता ने उसे फिर से स्कूल में भरती करवा दी,परंतु समाज को शादी शुदा लड़की को पति का घर छोड़के स्कूल जाना नहीं सुहाया । लोग तरह तरह के ताने देने लगे और हालत यहां तक पहुंच गई कि समाज ने कल्पना के परिवार को बहिष्कृत कर दिया। पंचायत ने परिवार का हुक्का पानी बंद कर दिया। अब तक कल्पना शाररिक और मानसिक रूप से पूरी तरह टूट चुकी थी । जिंदगी के सभी रास्ते बंद नजर आने लगे । परिस्थि तियां कठिन होती जा रही थीं । अब तो इस दबाव को झेल पाना कल्पना के लिए कठिन हो रहा था । परेशान होकर एक दिन उसने आत्महत्या करने का निर्णय ले लिया और कीटक नाशक की तीन बो तल पी ली । परंतु सही समय पे घर के लोगों की और डॉक्टर की सहायता से कल्पना बच गई।
अब तो लोगों के ताने और बढ़ गए। हरेक ताने में उसे यही सुनने मिलता, " महादेव की बेटी ने जरूर ऐसा कुछ किया होगा जिस की वजह से उसने जहर पी लिया "। उसी दौरान कल्पना के पिता ने उसे टेलरिंग का प्रशिक्षण दिलाया परंतु लोगों के ताने रुकने का नाम नहीं ले रहे थे । बहुत ही खराब दौर से कल्पना गुजर रही थी । उन सब से तंग आकर उसने दोबारा मुंबई जाने का फैसला किया । उस समय कल्पना की उम्र सोलह साल की थी । इस बार कल्पना अपने पति के घर नहीं बल्कि काम करने के सिलसिले में मुंबई जाना चाहती थी। अपने आप के हौसले को बुलंद करना चाहती थी ।
मृत्यु की चौखट को छूकर वापस आने वाली कल्पना के जीवन में बहुत परिवर्तन आ गया था। अब वह निडर बन चुकी थी । उसकी जिंदगी ने एक नया मोड़ लिया था । जब अपने पिता से मुंबई जाने की बात कही तो पिता ने मना कर दिया । क्योंकि उसकी उम्र सिर्फ 16 साल की थी । किंतु उसकी जिद को देखते हु ए आखिरकार पिता भी मान गए। अब कल्पना मुंबई के दादर झोपड़पट्टी में रहनेवाले उसके चाचा के पास आकर रहने लगी । परंतु चाचा को आंखों से कम दिखाई दे रहा था और और ऐसे में झोपड़पट्टी इलाका... इसमें कल्पना को रखना उचित नहीं है । यह सोचकर चाचा ने उनके पहचान के एक गुजराती परिवार के यहाँ कल्पना को रहने कह दिया । जब कि उस परिवार में पहले से तीन बेटियां थीं ।
उस परिवार ने कल्पना को चौथी बेटी के रूप में स्वीकार कर लिया । उसी दौरान कल्पना को एक होजिअरी गारमेंट में काम मिल गया । परंतु अंदर से टूटी कल्पना को मशीन ठीक से चलाना नहीं आ रहा, यह देखते हुवे गारमेंट मालिक ने उसे कपड़े के लटके हु ए धागे को कटवाने का काम दिया । जहाँ उस काम के दिन को दो रुपये कल्पना को मिलते थे । लेकिन जब खुद पर भरोसा हो तो सफलता पाने से कोई नहीं रोक सकता । यही भरोसे को लेकर वहाँ के कामगार जब खाना खाने जाते तो उस समय कल्पना ने अच्छी तरह से मशीन चलाना सीख लिया । दो रुपये की मजदूरी उसके लिए बेहद कम थी ।
कल्पना ने निजी तौर पर ब्लाउज सीने का काम शुरू किया । तब ब्लाउज की सिलाई दस रुपये थी। कल्पना कहती है उस जमाने में लोग साल में दो बार ही कपड़े की जोड़ी खरीदते थे । तो ब्लाउज भी कम ही सिलाने आते थे। इस बीच गाँव में पिता की नौकरी चली गयी। परिवार की आर्थिक हालत भी बहुत खराब हो गयी । यह बात जब कल्पना को पता चली तो उसने अपने सारे परिवार को मुंबई बुला लिया । और कल्याण में में एक भाड़े का घर लेकर उनके साथ रहने लगी । उसी दौरान उसकी छोटी बहन बीमार हो गयी । पैसों की कमी के कारण बहन का समय पे इलाज न हो सका , और कल्पना के सामने ही छोटी बहन ने दम तोड़ दिया । इस बात से कल्पना बहुत दुखी हुई। तब कल्पना ने अपनी जिंदगी से गरीबी मिटाने का फैसला कर लिया । और कल्पना के जीवन की असली कहानी यहीं से शुरू हो गयी ।
गाँव में सीखे टेलरिंग काम के हुन र और आत्मविश्वास से स्वयं को माँजती और कल्पना सोलह सोलह घंटे तक काम करने लगी । इसी दौरान कल्पना को सरकार की योजनाओं की जानकारी मिल गयी । स्वरोजगार के बारे में जानकारी जुटाते हुए खुद का रोजगार शुरू करने के बारे में सोचने लगी और सरकारी योजना की सहायता लेने का प्रयास करने लगी । बड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद कल्पना को दलित को मिलनेवाला 50,000 रुपए का सरकारी अनुदान प्राप्त करने में सफलता मिल गयी । वही अनुदान को लेकर उसने मशीन और कुछ अन्य सामान खरीद लिए ।
एक बुटीक शॉप खोल दी । बचत पैसों से उल्हासनगर में स्टील फ़र्नीचर स्टोर भी स्थापित कर दिया । इसके साथ ब्यूटी पार्लर भी खोला और साथ रहनेवाली लड़कियों को काम भी सिखाना शुरू किया । अब कल्पना की उम्र 22 साल की थी इस दौरान उसने स्टील फर्नीचर के एक व्यापारी से शादी कर ली । परंतु बीमारी की वजह से उनका साथ कल्पना को ज्यादा दिन तक नहीं मिल सका और उनका देहांत हो गया । पति के पीछे अपने दो बच्चों के साथ रहने लगी । अब व्यवसाय भी अच्छा चल रहा था ।
बहुत ही कठिन परिस्थितियों का अनुभव करने वाली कल्पना दूसरों के प्रति भी उतनी ही संवेदनशील थी। हमेशा अपने साथ दूसरों का भी भला चाहती थी । गरीब महिलाओं और बेरोजगार युवा के लिए कुछ करने के विचार में सदैव रहती । फिर उसने बेरोजगार संघटन बनाया और बेरोजगार लड़के , लड़कियां और महिलाओं को व्यवसाय शुरू करने के लिए सरकारी अनुदान दिलवाना शुरू किया। इस तरह जो भी मद द के लिए आते उन लड़के लड़कियों और महिलाओं को एक प्लैटफॉर्म मिल जाता और अपने अपने क्षेत्र में वे स्थापित हो जाते । अब तो लोग कल्पना को जरूरत मंद लोगों की मदद करनेवाली महिला के रूप में जानने लगे । लोग अपनी समस्या का हल निकालने, कुछ अटके हुए काम करवाने के लिए लोग कल्पना के पास आने लगे ।
ऐसे ही एक व्यक्ति अपनी विवादित जमीन के सिलसिले में कल्पना के पास आया। उसकी जमीन पर लोग जबरन कब्जा करना चाहते थे । उस व्यक्ति ने कल्पना को वह जमीन खरीदने को कहा। तब कल्पना को इतने रुपये नहीं थे । फिर उसने कुछ रुपयों का यहाँ वहाँ से इन्तजाम करके वह जमीन खरीद ली और अपने मित्रों की सलाह पर कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में भी आ गयी । आगे चलकर अहमदनगर शक्कर कारखाने में भी पैसे लगाए। अब कल्पना को उसके संघर्ष और मेहनत की वजह से मुंबई में भी पहचान मिलने लगी। उसी दौरान कल्पना को पता चला कि 17 साल से बंद पड़ी एक कंपनी "कमानी ट्यूब्स " कई विवादों के चलते 1988 से बंद पड़ी है । और सुप्रीम कोर्ट ने उसके कामगारों से शुरू करने कहा है ।
कंपनी के कामगार कल्पना से मिलने आये और कंपनी को फिर से शुरू करने की अपील की । कल्पना ने कड़ी मेहनत और हौसले के बल पर कामगारों के साथ बंद पड़ी कंपनी में जान तो फूंक दी परंतु जब कंपनी संभालने लगी तो पता चला , कंपनी के कामगारों को कई सालों से वेतन नहीं मिला था । कंपनी पर करोड़ों का सरकारी कर्जा .. साथ में कंपनी की जमीन पर किराएदार कब्जा कर बैठे थे । मशीनों के कलपुर्जे जंग खा चुके थे। कंपनी 116 करोड़ के कर्ज में डूबी हुई थी कल्पना के सामने समस्या का बड़ा पहाड़ खड़ा था । कल्पना कहती है में कोई एमबीए भी नहीं पढ़ी थी ।
9वी कक्षा तक पढ़ी कल्पना ने हार न मानते हु ए कामगार की सलाह , सच्ची लगन और ईमानदारी के साथ वित्तमंत्री से मिलकर एक एक करके सभी समस्याओं का समाधान निकाल लिया और 2006 में कल्पना कंपनी की आधिकारिक चेयरपर्सन घोषित हो गयी । उसके इस प्रयास से सारा कर्ज छूटकर रु 45 करोड़ तक ही हो गया । आज वही कंपनी का 300 करोड़ से अधिक टर्नओवर है । कल्पना सरोज आज के वर्तमान में 700 करोड़ की मालकिन है । कल्पना सरोज करोड़ों का टर्नओवर देनेवाली कंपनी ' कमानी ट्यूब ' की चेयरमैन तो है ही, इसके अलावा कल्पना सरोज कमानी स्टिल्स के एस क्रिएशंस कल्पना बिल्डर एन्ड डेव्हलपर्स , कल्पना एसोशिएट्स जैसी दर्जनों कंपनियां है । जिनका रोज का टर्नओवर करोडों का है ।
समाजसेवा और उद्यमिता के लिए कल्पना को पद्मश्री और राजीव गांधी रत्न से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा देश विदेश में भी दर्जनों पुरस्कार मिल चुके हैं। कल्पना कहती है मुझे ट्यूब बनाने के बारे में जरा भी जानकारी नहीं थी ।ना ही मैनजमेंट आता था , कामगार की सलाह उनके सहयोग और साथ में मेरे बुलंद हौसले , हर चीज को सीखने के जज्बे ने मुझे सफल बना दिया। कल्पना ने उदगीर में भी बॉक्साइट खनन का बिजनेस फैला रखा है । कई खाड़ी देशों में कमानी ब्रांड की शाखाएं हैं। कुवैत में अल-कमानी और दुबई में कल्पना सरोज एलसीसी नामक दोनों कंपनियां इन देशों की कॉपर ट्यूब्स की मांग को पूरा कर रही है । अरब देशों में यह ब्रांड्स बेहद मशहूर है ।
✍ - हेमलता म्हस्के