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शारिक रब्बानी की शायरी में प्रेम सौंदर्य व देश-प्रेम : प्रत्यक्ष मिश्रा
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___ उर्दू व हिंदी साहित्य में बहुत से ऐसे शायर व कवि हुए हैैं। जिन्होंने अपनी रचनाओं में प्रेम सौंदर्य व देश प्रेम को खास अहमियत दी है तथा अपनी रचनाओं से समाज को जोड़ने का काम किया है।
भारत व नेपाल दोनों ही देशों में साहित्यिक सेवा कर रहे लोकप्रिय वरिष्ठ उर्दू साहित्यकार ने भी इस कार्य को आगे बढ़या है। शारिक रब्बानी की शायरी में भी प्रेम सौर्दय व देश-प्रेम संबधित रचनाओं की प्रमुखता है, शारिक रब्बानी जी की एक विशेषता यह भी है कि वह उर्दू के साथ हिदी ,नेपाली ,मराठी और अन्य भाषाओं के कवियों व साहित्यकारो से भी घनिष्ठ सम्बनध रखते हैं और उनके कार्यक्रमों में भी शामिल होते हैं तथा उन्हें साहित्यिक सहयोग भी देते हैं।
गजल, नज्म, नात, कविता, दोहा, उपन्यास यानि रचना की सभी विधाओं में वह सिद्धहस्त हैं। इनके काव्य-संग्रहों में देशप्रेम से ओतप्रोत नज्मों के अतिरिक्त नारी, मां, कृष्ण जी हजरते कृष्ण, मीराबाई, हाजी वारिस अली और ओशो आदि पर भी रचनााएं मिलती हैं। प्रस्तुत हैं शारिक रब्बानी की प्रेम, सौंर्दय व देश प्रेम से ओतप्रोत रचनाओं के कुछ अंश ----
1. हुस्न जब बे-नकाब होता है,
आप अपना जवाब होता है ।
हसरतें दीदयार ऐ शारिक,
जान का इक अजाब होता है।।
2. हमने देखा क्या नजारा हमको अब भी याद है
चाँद सा चेहरा वो प्यारा हमको अब भी याद है।
नजरों से नजरें मिली क्या हम दीवाने हो गये,
तीर किसने दिल पे मारा हमको अब भी याद है।।
3. मैं हूँ नाजाँ अपने वतन पर, मेरा वतन क्या खूब है,
इसका हर इक जरर्रा मेरी नजरों मे महबूब है।
प्रयाग, अयोध्या, काशी, मथुरा लोग बराबर जाते हैं,
यहाँ सफल होता है जीवन धर्म गुरु फरमाते हैं।।
4. वफा खुलूस मोहब्बत का क्या उजाला है,
मेरे वतन का जमानें में बोलबाला है।
कलेजा चीर के अपना दिखा नहीं सकते,
है प्यार कितना वतन से बता नहीं सकते।।