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अनिल पांडेय
मनोहर पर्रिकर का जाना बहुत साल रहा है। भाजपा कवर करने के दौरान उनसे कई मुलाकातें हुईं। उनकी सादगी और विनम्र व्यवहार ने हमेशा प्रभावित किया। गोवा के उनके कई किस्से सुन रखे थे। जब रक्षा मंत्री थे तो एक बार दिल्ली में उनके घर जाना हुआ। दरअसल, उन्हें एक चिठ्ठी देनी थी। उन्होंने कहा कि घर छोड़ देना। अकबर रोड़ पर उनका सरकारी आवास था। घर पहुंचा तो देख कर दंग रह गया कि घर पर न कोई खास सिक्योरिटी है और न ही कोई लाव लश्कर। घर पर उनके रसोईंया के अलावा कोई नहीं था। न कोई पीए.. न कोई ओएसडी और न ही कोई सहायक... सुरक्षा के नाम पर बस एक-दो गार्ड।
दूसरे मंत्रियों के यहां जाइए तो घर पर भी भरा पूरा स्टाफ और लाव लश्कर होता है। जबकि वे भारत के रक्षा मंत्री थे। चिठ्ठी देते वक्त रसोईएं और गार्ड से पर्रिकर जी के बारे में थोड़ी पूछताछ की, तो पता चला कि वे सुबह 8 बजे घर से रक्षा मंत्रालय चले जाते हैं और 9-10 बजे रात को वापस आते हैं। रात में भी बैठ कर जरूरी फाइले निपटाते हैं। सुबह 7 बजे उनके एक ओएसडी आ जाते है और फिर उनके साथ दफ्तर निकल जाते हैं। सामान के नाम पर उनके पास चार जोडी कपड़े और जोडी सैडिल और जूते हैं। किसी चीज का कोई शौक नहीं।
जब नेताओं का उद्देश्य राजनीति के जरिए सत्ता, रूआब और पैसा हासिल करना होता है, ऐसे में मनोहर पर्रिकर ने अपनी सादगी से एक मिसाल कायम की। अपने चरित्र से यह साबित करने की कोशिश की कि राजनीति सेवा का माध्यम है, न कि तिजोरी भरने की। भारत में जब अदना सा नेता मंहगी लक्जरी गाड़ियों में चलता है, ऐसे में सीएम मनोहर पर्रिकर स्कूटी से अपने दफ्तर जाते थे।
गोवा की सड़कों पर स्कूटी रोक कर एक मुख्यमंत्री का आइक्रीम खाना और सड़कों पर जाम लगने पर मुख्यमंत्री का ट्रैफिक पुलिस के साथ पसीने-पसीने होकर ट्रैफिक नियंत्रित करना, किसी अजूबे से कम नहीं लगता। भारत की राजनीति जिस दिशा में जा रही है, ऐसे में कई पर्रिकर की जरूरत है। हर दल में मनोहर पर्रिकर होने चाहिए। एक नहीं, कई.... भारतीय राजनीति में सादगी के प्रतिमूर्ति रहे मनोहर पर्रिकर को विनम्र श्रंदाजलि।