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कटरानील भी हुआ था लहूलहुआन 1857 में, मिट्टी गवाह है, फिर भी नहीं मिल वो स्थान जिसका था हक़दार, 75 वर्ष देश को आज़ाद हुए भी हो गये
शिवनाथ झा
कटरानील भी लहूलहुआन हुआ था 1857 में, मिट्टी गवाह है, परन्तु वह आज तक वह स्थान नहीं पा सका जिसका वह हक़दार था - 75 वर्ष देश को आज़ाद हुए भी हो गया
बिहार के चम्पारण जिला नील की खेती के लिए विख्यात था। नील की खेती में लगे किसानों के शोषण के लिए कुख्यात हुआ। शोषण के विरुद्ध आंदोलन का प्रारम्भ होना आजादी के आंदोलन का सूत्रधार बना। नेतृत्व अन्य महामानवों के अलावे मोहनदास करमचंद गांधी का मिला, यह महत्वपूर्ण रहा । परिणाम यह हुआ कि चम्पारण में मोहनदास करमचंद गांधी 'महात्मा गांधी' बन गए।
अवध नबाब का शहर लखनऊ और तात्या टोपे का कर्मस्थल कानपुर के रास्ते चम्पारण से कोई 965 किलोमीटर दूर दिल्ली के दरियागंज गाँव के पश्चिमी छोड़ पर 'नीलकंठ महादेव' के नाम के प्रथम शब्द 'नील' को घरों और दुकानों वाली बस्ती, यानी 'कटरा' के साथ जोड़कर बसा नील के निर्माताओं, व्यापारियों का बस्ती भी था - कटरानील । इस नील कटरा में आज़ादी के आंदोलन के दौरान कितने भारतीयों का सर मातृभूमि की आज़ादी के लिए कलम हुआ, यह तो लिखते-लिखते शाम हो जाएगी, सूर्यास्त हो जायेगा। सैकड़ों, हज़ारों परिवार बेघर तो हुए ही, जीवन से भी हाथ घोये। क्या बच्चे, क्या गर्भवती महिला, क्या युवक, क्या वृद्ध, क्या शिक्षित, क्या अशिक्षित, क्या मालिक, क्या मजदुर, अनगिनत लोगों के लहू दरियांगज गाँव की मिट्टी में सने। लेकिन कटरानील आज़ाद भारत में वह स्थान नहीं पा सका जिसका वह हकदार था।
इस इलाके में सबसे रईस व्यापारी थे लाला चुन्नामल । लाला जी हवेली आज भी जीवित है उनके छठी पीढ़ियों के वंशजों द्वारा। तीन-महलों में बनी कोई 128 कमरों वाली हवेली के ना सिर्फ वे मालिक थे। उन्होंने फतेहपुरी मस्जिद की इमारत भी ख़रीदे थे जिसे 17वीं शताब्दी में शाहजहां की पत्नी ने बनवाया था। सन 1857 में ब्रिटिश सरकार फतेहपुरी मस्जिद को तोड़ना चाहती थी, उस वक्त लाला चुन्नामल ने मस्जिद की इमारत को 19,000 रुपये में खरीदा था और उसे सहेज कर रखा था। चुन्नामल के बारे में अनंत बातें हैं, लेकिन एक बात महत्वपूर्ण है कि सन 1862 में जब दिल्ली के लिए पहला नगर निगम बना, चुन्नामल निगम के आयुक्त बने। सन 1857 के बाद शाहजहानाबाद पर ब्रितानिया हुकूमत का कब्ज़ा हो गया।
पूरी दिल्ली सल्तनत की बात तो बड़े-बड़े ज्ञाता बताएँगे, लेकिन भारत के लोग अगर दिल्ली के लाल किले के सामने से शीश गंज गुरुद्वारा के रास्ते अंतिम छोड़ (टी-पॉइंट) को मिलाने वाली सड़क दरियागंज की मिट्टी में दबे इतिहास को जानना प्रारम्भ करेंगे तो उनकी आधी से अधिक जिंदगी तो निकल जाएगी ही - यह तो पक्का है।
लेखक देश के जाने माने पत्रकार है