- होम
- राष्ट्रीय+
- वीडियो
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- आजीविका
- विविध+
चीन से सीमा विवाद सुलझाने पर सहमति का अखबारी झांसा, मेहरबानी या मजबूरी?
राहुल गांधी दो दिन के लद्दाख दौरे पर गुरुवार, 17 अगस्त को लेह पहुंचे। इसे बाद में छह दिन के लिए बढ़ा दिया गया था। अपने इस दौरे के दौरान राहुल गांधी ने स्थानीय लोगों के हवाले से कहा कि चीन ने भारत के हजारों किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। यह ऐसा मामला है कि भारतीय जनता पार्टी लगभग हिल गई। यह तथ्य है कि भाजपा जब कांग्रेस और अपने विरोधियों पर चीन का समर्थन और सहायता लेने का आरोप लगा रही थी तब राहुल गांधी ने लेह में स्थानीय जनता के कहे के आधार पर चीन पर आरोप लगाया कि उसने भारत की भूमि पर कब्जा कर रखा है। राहुल गांधी हफ्ते भर वहां रहे, हजारों लोगों से बात की उनके सवाल सुने, जवाब दिया आदि। यह अलग बात है कि भारत के अखबारों में यह पहले पन्ने की खबर नहीं बनी। लगातार कई दिनों तक।
इसकी जगह, कल यानी, शुक्रवार 25 अगस्त को कई अखबारों की लीड एक जैसी थी। द टेलीग्राफ अपवाद है। आज किसी अखबार में चीन लीड नहीं है पर आज टेलीग्राफ में चीन लीड है। इंडियन एक्सप्रेस ने भी वही बताया है जो द टेलीग्राफ ने बताया है। इस तरह पहले सरकारी खबर दी और आज बताया कि वह खबर दरअसल क्या थी या थी ही नहीं। बाकी अखबारों ने इसकी जरूरत भी नहीं समझी। हालांकि, इन दिनों जो खबरें छप रही हैं और नहीं छप रही हैं उनसे खबरों की नई परिभाषा समझना मुश्किल नहीं है पर वह अलग मुद्दा है। पहले कल के अखबारों की चीन की खबर की लीड देख लीजिये -
1. अमर उजाला
पूर्वी लद्दाख में एलएसी से सैनिकों की जल्द वापसी पर मोदी-जिनपिग सहमत
ब्रिक्स सम्मेलन से इतर दोनों नेताओं की संक्षिप्त मुलाकात
2. नवोदय टाइम्स
ब्रिक्स सम्मेलन से इतर शी से बातचीत में बोले मोदी
एलएसी का सम्मान जरूरी (मुख्य शीर्षक)
सैनिकों की शीघ्रवापसी और तनाव कम करने के प्रयास का निर्देश देंगे दोनों नेता
3. टाइम्स ऑफ इंडिया
ब्रिक्स के मौके पर मोदी, शी की मुलाकात, लद्दाख में तेजी से तनाव कम करने पर सहमति (मुख्य शीर्षक) संबंध सामान्य हों इसके लिए एलएसी का सम्मान महत्वपूर्ण है : प्रधानमंत्री
4.द हिन्दू
मोदी, शी की एलएसी पर तनाव तेजी से कम करने की मोदी और शी की अपील
ब्रिक्स सम्मेलन के मौके पर प्रधानमंत्री ने चीनी राष्ट्रपति से मुलाकात की; मोदी ने कहा कि संबंधों को सामान्य बनाने के लिए एलएसी का सम्मान जरूरी है; टकराव पर यह इनकी पहली ऐसी वार्ता है।
अखबार ने इस खबर के साथ यह तस्वीर छापी थी। इसका कैप्शन था, आइस ब्रेकर : सम्मेलन के मौके पर बुधवार को दोनों नेताओं ने बुधवार को बातचीत की। एपी की इस फोटो के साथ या खबर में नहीं बताया गया था कि बातचीत इतनी ही हुई या ऐसे ही हुई या कुछ और।
5. हिन्दुस्तान टाइम्स
मोदी, शी में एलएसी पर शांति प्रयास बढ़ाने की सहमति
6. इंडियन एक्सप्रेस
शी और मोदी एलएसी पर तनाव तेजी से कम करने के प्रयास बढ़ाने पर सहमत
ब्रिक्स के मौके पर जोहानिसबर्ग में बातचीत हुई थी - विदेश सचिव
कहने की जरूरत नहीं है कि इन शीर्षकों से ही अंदाजा लग जाता है कि कितनी बातचीत हुई होगी और जब प्रधानमंत्री ने कहा है (छपा तो यही है) संबंध सामान्य हों इसके लिए एलएसी का सम्मान महत्वपूर्ण है : प्रधानमंत्री (टाइम्स ऑफ इंडिया) तो बातचीच की उम्मीद कैसे बनी और सहमति कहां हुई? फिर भी कई अखबारों ने भ्रम फैलाने वाले शीर्षक छापे जो तथ्य से अलग थे। यह सही है कि इस खबर को मिले महत्व से पता चल रहा है कि ऐसा दावा किया गया और दावा किया गया तो बात महत्वपूर्ण है और इसीलिए इंडियन एक्सप्रेस ने लिख दिया कि विदेश सचिव ने यह दावा किया है। द हिन्दू की ही तरह इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह अहसास करा दिया था कि इस दावे में कितना दम होगा। पर यह समझना मुश्किल है कि यह जानते हुए कि खबर सही या सत्य नहीं है, अखबारों ने इन्हें महत्व क्यों दिया। और दिया तो फिर आज बताया क्यों नहीं।
आप अपने हिसाब से अनुमान लगाने के लिए स्वतंत्र हैं या अखबारों को बताना चाहिए या विदेश सचिव को (सरकार को) स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसे परस्पर विरोधी दावे क्यों और कैसे किये गए। निश्चित रूप से अखबारों ने पाठकों को गलत जानकारी दी और यह जानते समझते दी या वे खुद भी नहीं जानते थे यह आप तय कीजिये। गनीमत यही है कि अखबारों ने शीर्षक से बता दिया कि खबर जैसी लग रही है वैसी है नहीं पर यह सबको शायद नहीं समझ में आया होगा।
बात इतनी ही नहीं है। खबर छपने के बाद तो सबको समझ में आ ही गया होगा कि इस खबर को जितनी प्रमुखता मिली है उस लायक है नहीं। इस लिहाज से आज भूल सुधार या क्षतिपूर्ति होनी चाहिये थी। लेकिन इंडियन एक्सप्रेस और द टेलीग्राफ को छोड़कर किसी और अखबार ने यह काम वैसे नहीं किया है जैसे किया जाना चाहिए था। इंडियन एक्सप्रेस में आज की लीड का शीर्षक है, दिल्ली बीजिंग के कहने में अंतर : एलएसी से वापसी पर चीन शांत हैं, संबंधों पर पुराना स्टैंड दोहराया। उपशीर्षक है, बीजिंग ने दावा किया कि वार्ता की शुरुआत मोदी के आग्रह पर की गई थी, दिल्ली ने इसके जवाब में कहा, चीन ने पहले द्विपक्षीय बैठक की मांग की।
अब असल में क्या हुआ होगा यह आपको (इंडियन एक्सप्रेस के पाठकों को) तय करना है क्योंकि खबर तो दावों पर छप रही है और दावों की सत्यता को आप चाहे संदिग्ध न मानें। कल जो छपा था वह आज संदिग्ध लग ही रहा है। यह मेहरबानी और मजबूरी की मिली-जुली पत्रकारिता हो सकती है या दोनों अलग-अलग भी हो सकती है। सच्चाई की तो है ही। लेकिन सभी अखबारों के साथ ऐसा नहीं है। उदाहरण के लिए, आज अमर उजाला की लीड का शीर्षक है, भारत ग्रीस के बीच रणनीतिक साझेदारी होगी मजबूत ... कृषि, रक्षा में बढ़ेगा सहयोग। यही हिन्दुस्तान टाइम्स में भी लीड है।
कल सबसे स्पष्ट शीर्षक नवोदय टाइम्स का था। ब्रिक्स सम्मेलन से इतर शी से बातचीत में बोले मोदी, एलएसी का सम्मान जरूरी (मुख्य शीर्षक), सैनिकों की शीघ्रवापसी और तनाव कम करने के प्रयास का निर्देश देंगे दोनों नेता। आज नवोदय टाइम्स की लीड का शीर्षक है, अडानी समूह के खिलाफ 22 मामलों की जांच पूरी। सेबी ने सुप्रीम कोर्ट में सौंपी स्थिति रिपोर्ट। खबर में बताया गया है कि दो को छोड़कर सभी आरोपों की जांच पूरी कर ली गई है। इस समूह की कंपनियों में निवेश करने वाली विदेशी कंपनियों के असली मालिकों के बारे में पांच देशों से जानकारी आने का इंतजार है।
जाहिर है 20,000 करोड़ किसके हैं, कहां से आये हैं उसका पता नहीं चला है। बाकी जांच ‘पूरी’ हो गई, कुछ मिला होता तो बताया जाता और इस तरह आप इस खबर का मतलब और मामले का हश्र समझ सकते हैं।
शी और मोदी की कथित बातचीत के बारे में जो छपा और अब जो स्थिति है उसके आधार पर लगता है कि मोदी और शी की बातचीत किसी और भाषा में हुई थी जो समझ में नहीं आई होगी और इसीलिए यह स्थिति बनी है। द टेलीग्राफ ने इसी को लीड बनाया है। अखबार का फ्लैग शीर्षक है, दिल्ली के दावे पर शांत, चीन ने कहा कि मुलाकात भारत के आग्रह पर हुई थी। मुख्य शीर्षक है, मोदी और शी जी, क्या आपने दक्षिण अफ्रीका में ग्रीक में बात की थी? नई दिल्ली डेटलाइन से अनिता जोशुआ की बाईलाइन वाली इस खबर में कहा गया है, बुधवार को जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई बातचीत के बारे में भारत और चीन के पास अलग-अलग विवरण हैं और इनके बारे में चीन का दावा है कि यह बातचीत भारत के "अनुरोध" पर हुई।
वैसे तो, चीनी दावे पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं है और यह पता नहीं चला कि नई दिल्ली ने बैठक का अनुरोध किया था या नहीं पर एक सूत्र ने कहा, "चीनी पक्ष से द्विपक्षीय बैठक के लिए एक अनुरोध लंबित था। हालाँकि, दोनों नेताओं ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान लीडर्स लाउंज में अनौपचारिक बातचीत की।" दोनों पक्षों के विवरण में यह एकमात्र अंतर नहीं है। विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने गुरुवार शाम को अपने मीडिया सम्मेलन के दौरान भारतीय पक्ष पेश किया था। इसके बाद शुक्रवार को सुबह जारी की गई बातचीत पर चीनी बयान में इस बात का कोई जिक्र नहीं था कि दोनों नेता अपने संबंधित अधिकारियों को तनाव कम करने के प्रयास तेज करने का निर्देश देने के लिए सहमत हुए हैं जबकि भारत ने ऐसा दावा किया था।
कुल मिलाकर यह मानने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए कि अखबारों में गलत या अपुष्ट खबरें छपी या छपवाई गईं। इसका कारण क्या हो सकता है यह समझने वाली बात है। हालांकि, द टेलीग्राफ ने भारतीय सीमा क्षेत्र पर कब्जे के राहुल गांधी के बयान को भी प्रमुखता से छापा है और अभी हाल में भाजपा ने चीन के समर्थन से अपना विरोध करने का आरोप लगाया है। राहुल गांधी के आरोपों (और सलाह) को तो वे पहले भी महत्व नहीं देते थे। ऐसे में आपके अखबार में जो छप रहा है वह क्या है आप खुद तय कीजिये। जहां तक सरकार या भाजपा की बात है, आपको प्रधानमंत्री का मशहूर बयान, "ना कोई वहां हमारी सीमा में घुस आया है, ना ही कोई घुसा हुआ है" याद होगा। इसके बाद चीन ने आधिकारिक बयान जारी करके कबूल किया था कि भारत के साथ बढ़ते तनाव को कम करने के लिए उसने अपनी सेना को पीछे हटाने का फैसला किया है। समाचार एजेंसी, एएनआई ने भी ट्वीट कर 'डी-एस्केलेशन की बात की थी। तब एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पूछा था कि जब कोई घुसा ही नहीं तो 'डी-एस्केलेशन (सेना का पीछे हटना)' क्यों? पवन खेड़ा ने कहा था कि पीएम मोदी अपने पुराने बयान पर माफी मांगे।
अब राहुल गांधी इसी कब्जे की बात कर रहे हैं और भाजपा परेशान है क्योंकि उसकी सरकार ने वर्षों कुछ नहीं किया है। यही नहीं, हाल में चीन की सहायता से अपना और देश के विरोध का आरोप भी लगाया है। इस महीने के शुरू में ही भाजपा ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस 'भारत विरोधी एजेंडे में शामिल है और चीन से फंडिंग हो रही है’। भाजपा ने कांग्रेस पर यह हमला एक समाचार पोर्टल न्यूजक्लिक के मामले में किया था। यही नहीं, बीजेपी ने कहा था कि कांग्रेस देश विरोधी एजेंडे को फैलाने में लगी हुई है। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा था, इसके लिए चीन की प्रोपेगेंडा मशीनरी फंडिंग कर रही है। तब उन्हें अंदाजा ही नहीं होगा कि राहुल गांधी लेह जाकर चीन और सरकार के बारे में ऐसे बयान देंगे।