संपादकीय

दुनिया की कोई भी ताकत अनुच्छेद 370 को वापस नहीं ला सकती है, इंडियन एक्सप्रेस ने प्रधानमंत्री के इस दावे को इतना महत्व क्यों दिया है?

दुनिया की कोई भी ताकत अनुच्छेद 370 को वापस नहीं ला सकती है, इंडियन एक्सप्रेस ने प्रधानमंत्री के इस दावे को इतना महत्व क्यों दिया है?
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नोटबंदी के बाद वृद्धि दर ऐसी कम हुई कि उसे भुला देना पड़ा। वैसे तो 100 दिन में विदेश में रखा काला धन भी वापस आना था और 50 दिन में सपनों का भारत भी बनना था पर अब वह सब भूल कर मोदी की गारंटी और उसका प्रचार है।

प्रधानमंत्री ने कहा है, इंडियन एक्सप्रेस ने आज अपने लीड का फ्लैग शीर्षक बनाया है तथा इसे चार कॉलम में लाल स्याही से छापा है, दुनिया की कोई भी ताकत अनुच्छेद 370 को वापस नहीं ला सकती है। इंडियन एक्सप्रेस की आज की लीड का यह अंश आज कुछ अखबारों में पहले पन्ने की खबर भी नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसा कहकर प्रधानमंत्री अपनी पीठ खुद थपथपा रहे हैं तो इंडियन एक्सप्रेस इसे प्रचारित कर रहा है। वेशक यह उसका विवेक और अधिकार है। मैं सिर्फ रेखांकित कर रहा हूं। रेखांकित इसलिए कि प्रधानमंत्री को ऐसा कहने की कोई जरूरत नहीं थी और अगर राजनीति करने, छवि बनाने अथवा कद बढ़ाने के लिए कहा है तो यह खबर चाहे जितनी बड़ी हो इसमें कोई जनहित नहीं है। प्रधानमंत्री ने अनुच्छेद 370 हटाने के अपने फैसले पर क्या कहा, इसे जानने की इच्छा भी शायद ही किसी को होगी। सामान्य सी बात है कि हटाया है तो सही ही होगा। चुनाव घोषणा पत्र में था तो हटाना ही था और बहुमत है, हटा दिया तो कोई वापस क्यों लायेगा? वैसे भी अब तो सुप्रीम कोर्ट से इसकी पुष्टि हो चुकी है। हालांकि फैसला बहुत देर से आया और अंग्रेजी में कहावत है, जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड (न्याय में देरी न्याय नहीं करना है)। लेकिन वह अलग मुद्दा है।

इस मामले में कुछ जानना ही हो तो मैं जानना चाहूंगा कि संबंधित आदेश में टाइपिंग, हिज्जे और व्याकरण की गलतियां कैसे रह गई थीं और सरकारी आदेश में ऐसा न हो उसके लिए क्या किया गया है। पर वह भी अलग मुद्दा है। अभी मैं यह समझने की कोशिश कर रहा हूं कि प्रधानमंत्री ने ऐसा क्यों कहा या उन्हें ऐसा कहने की जरूरत क्यों पड़ी होगी। एक कारण नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने पर छपी सिंगल कॉलम की खबर हो सकता है। इसके अनुसार पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा है, अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला ‘भगवान का फैसला’ नहीं है। खबर के अनुसार महबूबा ने रविवार को कहा कि उनकी पार्टी जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा बहाल करने के लिए संघर्ष जारी रखेगी। कहने की जरूरत नहीं है कि यह पीडीपी की राजनीति है, प्रधानमंत्री ने जो कहा वह उनकी, उनकी पार्टी या संघ परिवार की राजनीति हो सकती है पर जनता को अगर जानना होगा तो यही कि इससे फायदा क्या हुआ। अगर इसे ठीक से समझा दिया जाये तो महबूबा की मांग का भी मतलब नहीं रह जायेगा। पर आजकल राजनीति ही नहीं, मीडिया भी बहुत बदल गया है।

इंडियन एक्सप्रेस की आज की लीड अपने संपूर्ण रूप में किसी भी अखबार की लीड नहीं है और पार्टी के मुखपत्र का शीर्षक लग रहा है। यही नहीं, अखबार ने इस खबर के साथ छपी फोटो कैप्शन में बताया है, .... मोदी ने गारंटी दी कि उनके तीसरी बार सत्ता में आने पर भारत दुनिया की तीन शिखर की अर्थव्यवस्थाओं में एक होगा। यहां पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था होने का दावा और उससे संबंधित तथ्य याद करने की जरूरत है। यह भी कि नोटबंदी और जीएसटी जैसी मनमानी के कारण वह नहीं हो पाया। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि उसके लिए कुछ करने की जरूरत नहीं है और वह अर्थव्यवस्था में सामान्य वृद्धि से भी एक निश्चित समय में हो जायेगा और कब होगा वह वृद्धि दर पर निर्भर करेगा। लेकिन नोटबंदी के बाद वृद्धि दर ऐसी कम हुई कि उसे भुला देना पड़ा। वैसे तो 100 दिन में विदेश में रखा काला धन भी वापस आना था और 50 दिन में सपनों का भारत भी बनना था पर अब वह सब भूल कर मोदी की गारंटी और उसका प्रचार है।

ऐसे में इंडियन एक्सप्रेस की आज की लीड का मुख्य शीर्षक है, संसद की सुरक्षा में सेंध एक गंभीर मुद्दा है, इसपर विवाद नहीं होना चाहिये : प्रधानमंत्री। असल में मुद्दा यह है कि इससे इनकार कौन कर रहा है और राहुल गांधी ने तो यह भी बता दिया है कि इसका कारण बेरोजगारी है। वैसे भी हमले के इतने दिनों बाद ऐसा कहने का चाहे जो मतलब हो, लीड बनाने का नहीं है। और इसीलिए कई अखबारों में नहीं है। द टेलीग्राफ ने अपने शीर्षक में इसी बात को दूसरी तरह से कहा है। इसके अनुसार प्रधानमंत्री ने कहा, सुरक्षा में सेंध तो लगी है पर चर्चा नहीं होगी। फ्लैग शीर्षक है, संसद को बाईपास करने के लिए विपक्ष ने मोदी की आलोचना की। इतने दिनों बाद ऐसा कहने और इसे प्रचार दिये जाने का कारण यह हो सकता है कि राहुल गांधी ने सुरक्षा में सेंध का कारण बेरोजगारी कहा था। कल द टेलीग्राफ ने इसे लीड बनाया था पर मीडिया और प्रधानमंत्री देश के मुद्दों से ऐसे ही बचते हैं। राहुल गांधी उठा दें तो जरूर। और यह कई मामलों में साबित हो चुका है।

आप जानते हैं कि संसद की सुरक्षा में सेंध के इस मामले में चर्चा और बयान की मांग पर विपक्ष के सांसदों को निलंबित किया जा चुका है और अब कम महत्वपूर्ण मामलों को महत्व दिया जा रहा है। इसमें यह तथ्य भी है कि पुलिस ने पाया है कि अभियुक्तों के फोन जला दिये गये हैं। और शक है कि संदिग्धों ने सबूत नष्ट करने की कोशिश की। यह इंडियन एक्सप्रेस के शीर्षक या हाइलाइट की हुई बातों में नहीं है। एक और मामले में प्रधानमंत्री का प्रचार करने वाला इंट्रो है। इसके अनुसार प्रधानमंत्री ने कहा, भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाने के लिए जिनका चुनाव किया वो नये नहीं हैं लेकिन अगर थोड़ी ब्रांडिंग से कुछ नाम बड़े बन जाते हैं तो दूसरों पर ध्यान नहीं जाता है। पहली बार विधायक चुना गया व्यक्ति मुख्यमंत्री बनाने के लिए नया नहीं है तो क्या है यह लोग समझते हैं। यह वैसे ही है जैसे पार्टी के ही बागी से हारे हुए पूर्व मुख्यमंत्री को गवरनर बनाने का मतलब भी लोग समझते हैं। और इसमें पार्टी वाले भी हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसे लीड बनाया है और यह खबर दूसरे अखबारों में भी है। हिन्दुस्तान टाइम्स में इस मुख्य खबर के साथ प्रधानमंत्री की खबर छापी है, यह बहुत तकलीफदेह है, इसपर विवाद खड़ा मत कीजिये। ठीक है। पर सवाल तो यह है कि विवाद नहीं खड़ा किया जाये तो अभी पुलवामा का भी पता नहीं चला है।

यही नहीं, इस मामले में तो एक मुख्य सूत्र पास बनाने की सिफारिश करने वाले भाजपा सांसद भी हो सकते हैं। उनसे क्या बात हुई, कुछ पता चला कि नहीं, नहीं बतायेंगे और कश्मीर पर सीना ठोंकेंगे तो सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपेगी और प्रचार की कोशिशों की पोल खुल जायेगी जैसे आज खुली है। जहां तक केंद्र सरकार के खिलाफ खबरों को महत्व नहीं मिलने की बात है, द हिन्दू की एक खबर के अनुसार केरल के मुख्यमंत्री ने कहा है कि केंद्र सरकार को राज्यपाल की कार्रवाई की जांच करनी चाहिये। खबर के अनुसार, मुख्यमंत्री पिनयारी विजयन ने कहा है क राज्यपाल अक्सर भूल जाते हैं कि वे किस पद पर हैं और अक्सर ऐसी टिप्पणी करते हैं जो उनके पद की गरीमा के अनुकूल नहीं होती है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर का शीर्षक है, पिनयारी का दावा, केंद्र केरल की प्रगति को बाधित कर रहा है। ऐसा ही आरोप आम आदमी पार्टी की सरकार लगाती रहती है। दूसरी ओर, टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार ईडी मुख्यमंत्री से पूछताछ किये बगैर आम आदमी पार्टी के खिलाफ चार्जशीट दायर कर सकती है। टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड का शीर्षक है, प्रधानमंत्री ने कहा कि संसद की सुरक्षा में सेंध गंभीर मामला है। इसके पीछे के तत्वों का पता लगाने की जरूरत है।

मुझे नहीं लगता कि इससे कोई असहमत होगा पर यह सब संसद में क्यों नहीं कहा जाना चाहिये और जब संसद में नहीं कहा जा रहा है तो इसे महत्व क्यों मिलना चाहिये। खास कर तब जब विपक्ष के कई सांसदों को निलंबित किया जा चुका है, पास जारी करने की सिफारिश करने वाले सांसद के मामले में कोई बयान नहीं है और पश्चिम बंगाल भाजपा नेता ट्वीट करके बता रहे हैं कि घुसपैठ करने वालों का संबंध तृणमूल कांग्रेस के विधायक से है। कुल मिलाकर, इसपर विवाद और राजनीति सिर्फ विपक्ष नहीं कर रहा है। जवाब नहीं देकर, दूसरे दावे करके और तमाम मामलों में श्रेय देकर सत्तारूढ़ पार्टी और उसके नेता भी वही सब कर रहे हैं। जहां तक घटना के पीछे के तत्वों का पता लगाने की बात है, पुलवामा तो छोड़िये रेल दुर्घटना की जांच भी सुरक्षा आयुक्त से कराने की बजाय सीबीआई से कराने का उदाहरण है। लेकिन जांच में मिला क्या या जांच पूरी हुई कि नहीं और नहीं हुई तो कब होगी सब मामला शांत होने के साथ भुला दिया जाता है। और काम करने के नाम पर अगर कुछ हो रहा है तो विपक्ष की सरकारों को परेशान करना। भले उसकी खबर न छपे या कम छपे।

इसके बावजूद व्हाट्सऐप्प पर प्रचारक वीडियो फॉर्वार्ड कर रहे हैं, ‘ना खाया है ना खायेगा, मोदी ही आयेगा’ पर आज टाइम्स ऑफ इंडिया में खबर है कि डबल इंजन वाले कॉर्बेट रेसॉर्ट पर छापा मारकर उसके मालिक को गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि पुलिस वालों को मुफ्त कमरे नहीं मिले थे। होटलों में आधी रात में छापा और मेहमानों की तलाशी आदि के नियम तथा कार्रवाई तो आम है ही मुफ्त कमरा नहीं देने पर मालिक को गिरफ्तार करने का उदाहरण भी है। लेकिन दावा ना खाऊंगा ना खाने दूंगा का चल रहा है। आप चाहें तो मानिये कि इसीलिए पकड़ा गया। वैसे, यह भी मान सकते हैं कि लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है और लोगबाग समझौता करने को मजबूर है। जो नहीं मानता है उसे भी छोड़ा नहीं जाता है।

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