संपादकीय

जनहित के मुद्दे उठाना काम नहीं है? जनहित नहीं है?

Shiv Kumar Mishra
29 May 2020 5:59 AM GMT
जनहित के मुद्दे उठाना काम नहीं है? जनहित नहीं है?
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सुप्रीम कोर्ट में अगर जनहित की बात करने वालों से पूछा जाए कि आपने क्या किया है तो काम कैसे होगा? सुप्रीम कोर्ट में जनहित के मुद्दे उठाना काम नहीं है? जनहित नहीं है?

संजय कुमार सिंह

कोरोना के संकट के निपटने के लिए देश भर में अचानक किए गए लॉकडाउन के कारण हजारों दिहाड़ी मजदूर बेरोजगार हो गए। कइयों की नौकरी चली गई। रोज कमा कर खाने वाला कैसे जिएगा यह उसी दिन सोचा जाना चाहिएथा। बिना खाए आदमी एक दो दिन ही रह सकता है। पर कमाने वाले बच्चों को भी खिलाते हैं और बीमार रिश्तेदारों की दवा भी खरीदते हैं।

सरकार क्या करती है सबको पता है। लॉकडाउन के निर्णय से सब बेरोजगार हुए सबके लिए खाने का संकट पैदा हो गया। उनके मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला अब आया है। उसपर सरकारी वकील ने जो कहा वह सरकार का पक्ष है। निश्चित रूप से पढ़ने लायक। कायदे से लॉकडाउन के साथ ही उनके संबंध में घोषणा होनी थी। पर क्या हुआ और कैसे हुआ आप जानते हैं। कइयों ने भोगा है और अब इस खबर से जानिए सरकार का पक्ष।

सरकार वही है जिसने तमाम एनजीओ बंद करा दिए क्योंकि उसे लगता था कि विदेशी पैसों से सरकार का विरोध नहीं किया जाना चाहिए। पर सरकार से वेतन पाने वाला सरकारी सेवक क्या कोई सरकार का विरोध कर सकता है। इस मामले में अदालत का फैसला बाद में आया। आपदा अपने समय से आई। बताकर आई। उसे आने दिया गया और आपदा में अवसर देखकर दान के पैसे एक जगह इकट्ठा कर लिए गए और उसके बाद तर्क सुनिए-समझिए। यह स्थिति तब है जब देश में सरकार का काम बहुत स्पष्ट है।

प्रधानमंत्री की भूमिका पर कोई शक नहीं है। लोकतंत्र में सरकार का विरोध कोई नया या अनूठा नहीं है। पर सुप्रीम कोर्ट में अगर जनहित की बात करने वालों से पूछा जाए कि आपने क्या किया है तो काम कैसे होगा? सुप्रीम कोर्ट में जनहित के मुद्दे उठाना काम नहीं है? जनहित नहीं है?

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