संपादकीय

भूपेंद्र सिंह तो राजनीति के धंधे पर उतर आए, पढ़िए पत्रकार प्रत्यक्ष मिश्रा का ब्लॉग (अमरोहा राजनीति)..

Desk Editor
1 July 2021 12:05 PM IST
भूपेंद्र सिंह तो राजनीति के धंधे पर उतर आए, पढ़िए पत्रकार प्रत्यक्ष मिश्रा का ब्लॉग (अमरोहा राजनीति)..
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 National President of RLD Jayant  Choudhary and Bhupendra Singh ...

भूपेंद्र बाबू की हालत यह हो गई है कि वह इस बार भाजपा को भी अंगूठा दिखाकर, रालोद में शामिल हो गए हैं...

हरिशंकर परसाई का एक व्यंग्य है, "मनीषी जी" जिसमें परसाई जी कहते हैं कि, फिर मनीषी जी ने राजनीति का व्यवसाय अपनाया। नेता हो जाना बड़ा अच्छा धन्धा है, पर वे किसी भी दल के प्रति पक्षपात नहीं करते।

ये पंक्तिया यकायक ही याद आ गई। अमरोहा के निवर्तमान भाजपा जिलाध्यक्ष सरिता चौधरी के पति भूपेंद्र सिंह का भी कुछ यही हाल-ए-दिल है। भूपेंद्र बाबू की राजनीति में शुरुआत समाजवादी पार्टी के साथ हुई थी जब वह पहली बार सन् 2010 में भारापुर के वीरेंद्र सिंह के सामने समाजवादी पार्टी से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़े थे जिसमें उन्हें करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था, और अपनी हार का ठीकरा फोड़ने के लिए पैतृक गांव मारकपुर के पड़ोसी गाँव आगापुर में मारपीट करने गए थे।

जिसमें कुछ गुंडों के साथ जाकर बाबू भूपेंद्र सिंह ने आगापुर में जाकर लोगों को धमकाया और उनके साथ गंभीर मारपीट की थी आज भी लोगों को वह समय याद है इससे ज्यादा गंभीर बात यह है हारने के बावजूद भी भूपेंद्र सिंह के सामने कोई भी एफ आई आर दर्ज नहीं हुई थी।

खैर समय बीतता गया और सन् 2016 में बहुजन समाजवादी पार्टी से जिला पंचायत का चुनाव लड़े थे, जनता ने विश्वास जताया और फिर चोली का दामन भी उनके हत्थे थमा दिया, लेकिन दलबदल की तरह मौका देख भूपेंद्र सिंह ने फिर भाजपा का दामन थाम लिया। खैर भारत की राजनीति में यह अद्वितीय तो नहीं है, लेकिन जब इस बार वार्ड-10 से भूपेंद्र सिंह बसपा प्रत्याशी डाॅ सोरन सिंह से हारे तो उन्होंने कैसी शैली का प्रयोग किया, ये आप भी पढ़िए -

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भूपेंद्र सिंह की फेसबुक वाल से -

चंद पार्टी के ग़द्दारों ने जाट समाज को आगे बढ़ने से रोकने के लिए की साज़िश।

ज़िले में जाट्टो के पास एक ही सम्मानजनक पद था उसका भी सौदा कर दिया।

अब ज़िले में सांसद मुस्लिम समाज का

विधायक जाटव, चौहान, मुस्लिम, खरकवंशी समाज का।

जाट्टो के पास एक ही कुर्सी थी ज़िला पंचायत अध्यक्ष की वो भी ग़द्दारों ने ख़िलाफ़त करते हुए दिल्ली वालो को भेंट में दे दी।

- भूपेन्द्र चौधरी

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अमरोहा वासी अच्छे से जानते होंगे, जब पिछली योजना में सपा पार्टी से राजनीति के मसीहा एंव पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वर्गीय चंद्रपाल सिंह की पुत्रवधू रेनू चौधरी जिला पंचायत अध्यक्ष थीं तो ढ़ाई साल बाद उनके खिलाफ अप्रस्ताव लाकर कैसे भूपेंद्र सिंह ने छीनाझपटी की थी !! और अन्य सदस्यों पर दबाव बनाकर 16 सदस्यों का बहुमत अपने पक्ष में किया था। 5 जनवरी 2016 को सपा सरकार के नेतृत्व में तत्कालीन सपा नेता देवेंद्र नागपाल, पूर्व कैबिनेट मंत्री कमाल अख्तर और अशफ़ाक खां के सहयोग से रेनू निर्विरोध जिलाध्यक्ष बनी थी। गौरतलब बात थी, उस समय भाजपा और बसपा से कोई भी चेहरा सामने नहीं आया था, हालांकि सपा पार्टी से पूर्व शिक्षा मंत्री महबूब अली की पत्नी सकीना बेगम इस रेस में थी। लेकिन सरकार में ऊपरी शासन की बात मानते हुए महबूब अली पीछे हटे थे। जिससे चौधरी चन्द्रपाल भी काफी खुश थे।

मालूम हो कि भाजपाइयों में एक राय न होने की वजह से सपा की जिला पंचायत अध्यक्ष रेनू चौधरी को अभयदान मिल गया था। कैबिनेट मंत्री चेतन चौहान नहीं चाहते थे कि रेनू चौधरी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए। जबकि अन्य सांसद, विधायक और पार्टी संगठन से जुड़े लोग अविश्वास प्रस्ताव के जरिये रेनू चौधरी को हटाने के पक्ष में थे। प्रदेश में सत्ता बदलते ही जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर संकटों के बादल छा गए थे।अविश्वास प्रस्ताव के लिए उठापठक तेज होने के साथ ही पूर्व कैबिनेट मंत्री चौधरी चंद्रपाल सिंह ने भाजपा नेताओं से नजदीकियां बढ़ा ली थीं। जिसके बाद मानों कि रेनू चौधरी की कुर्सी पर मंडराया खतरा शायद टल गया। लेकिन, इस कहानी में उस वक्त नया मोड़ आया, जब रेनू चौधरी के 16 सदस्य अविश्वास प्रस्ताव लेकर जिलाधिकारी से मिलने पहुंचे।

क्या भूपेंद्र सिंह को वो समय याद है जब भाजपा सदस्यों की शह पर जिला पंचायत सदस्यों ने फरवरी 2018 में रेनू चौधरी के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था? तख्तापलट का यह दूसरा मौका था। पहली बार अगस्त 2017 में जब उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा था तो अपने खिलाफ जिला पंचायत सदस्य के शिकायती पत्र में लगे आरोपों को जिला पंचायत अध्यक्ष रेनू चौधरी ने राजनीतिक बदले की भावना का बेबुनियाद षड़यंत्र बताया था। उन्होंने सफाई देते हुए कहा था कि - उनके डेढ़ वर्ष के कार्यकाल में उनपर किसी भी सदस्य ने उंगली नहीं उठाई" लेकिन जब भूपेंद्र सिंह पहली बार अविश्वास प्रस्ताव पारित नहीं करा सके, तो दूसरी बार भूपेंद्र सिंह ने फिर हुंकार भरी और एक ईमानदार महिला को जिलाध्यक्ष की कुर्सी से बेदखल करने में सफल हुए।


सांसद कंवर सिंह तंवर, विधायक राजीव तरारा, महेंद्र सिंह खड़गंवशी तो समर्थकों के साथ पूरे लाव लश्कर के साथ जिला मुख्यालय पहुंचे ही, गढ़ विधायक डॉ.कमल सिंह मलिक भी यहां पहुंचे थे। भाजपा जिलाध्यक्ष डॉ.ऋषिपाल नागर, पूर्व विधायक हरपाल सिंह, पूर्व एमएलसी डॉ.हरि सिंह ढिल्लो, प्रदीप चौधरी, रोमी चौधरी, पूर्व जिलाध्यक्ष गिरीश त्यागी, पूर्व ब्लाक प्रमुख कामेंद्र सिंह, राम सिंह सैनी, विजय पंवार, हरवीर सिंह व पिंटू भाटी समेत बड़ी संख्या में भाजपाई यहां पहुंचे थे।

क्या आपको वो समय याद है भूपेंद्र सिंह ? यदि नहीं, तो एक बार एक अच्छे और निष्पक्ष पत्रकार/विश्लेषक के पास बैठिए और स्वयं का आंकलन कराइए। आज आप अपनी कुर्सी क्या हार गए, आपको सत्ता के शासन में दिल्ली वाले याद आने लगे। सत्ता का आना महज एक भोग, विलास, आराम, सुख कतई नही है, मिस्टर भूपेंद्र सिंह । उस दौर को याद कीजिए , जब आप अप्रस्ताव लेकर डीएम ऑफिस पहुंचे थे, तो कितने विधायक, सांसद तुम्हारे साथ थे ? और आज बत्ती गुल!! भावार्थ ये है कि आज सत्ता के विधायक और सांसद जिन्होंने तुम्हे भाजपा जिलाध्यक्ष की कुर्सी दिलायी वो भी तुम्हारे खिलाफ बगावती तेवर में हैं।

और अब भूपेंद्र बाबू की हालत यह हो गई है कि वह इस बार भाजपा को भी अंगूठा दिखाकर, पंचायत चुनाव के बाद अब रालोद में शामिल हो गए हैं। उत्तर प्रदेश के जनपद अमरोहा के गजरौला में निवास कर रहे पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष पति भूपेंद्र चौधरी ने आज भारतीय जनता पार्टी को अलविदा कह दिया। गजरौला में कार्यकर्ताओं ने चौधरी भूपेंद्र सिंह का रालोद अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष अशफाक अली खान ने भव्य स्वागत किया। भूपेंद्र सिंह का कहना है - कि भाजपा झूठों की पार्टी है और किसानों का लगातार दमन करती है भाजपा के द्वारा लाए गए बिल किसानों की कब्र खोदने का काम करेंगे। वैसे आज से करीब 4 महीने पहले जब भूपेंद्र सिंह पंचायत चुनाव के प्रचार के लिए बांसली गांव में आए थे तब उन्होंने कहा था, कि भाजपा के द्वारा लाए गए तीन कृषि कानून किसानों के हित में है और विपक्ष लोगों को गुमराह कर रहा है। भूपेंद्र बाबू के पार्टी बदलते ही सुर बदल गए हैं।

अंतिम लाइन को श्रद्धांजलि देते हुए, शायर बशीर बद्र का एक शेर याद आया -

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,

वरना यूं तो कोई बेवफा नहीं होता

.. ....... ...

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