संपादकीय

सुशांत राजपूत और रिया में उलझा मीडिया देश की हालत पर नहीं करेगा चर्चा, चाहे मरो और जिओ!

Shiv Kumar Mishra
29 Aug 2020 4:39 AM GMT
सुशांत राजपूत और रिया में उलझा मीडिया देश की हालत पर नहीं करेगा चर्चा, चाहे मरो और जिओ!
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अब कब देश में अपराध पर बात होगी. कब बेरोजगारी पर बात होगी, कब दूब रहे व्यापार पर बात होगी. कब महिला सुरक्षा और एनी मुद्दों पर बात होगी, कब देश के सबसे बड़े समूह किसान की समस्या पर बात होगी.

भारत देश में पिछले लगभग ढाई माह से समाचार जगत के बड़ी खबर बन चुके सुशांत सिंह राजपूत ने सभी खबरों का खात्मा कर दिया है. अब देश में कोई भी बड़ी खबर महज दो से तीन मिनट में समाप्त हो जाती है. जबकि देश में इस बुरे हालत बने हुए है. फिर मीडिया इन मुद्दों को क्यों नहीं उठा रही है. जबकि मामला काफी बिगड़ चूका है.

जब आप अपनी टीवी खोलेंगे तो आपको सिवाय सुशांत सिंह राजपुर और रिया के अलावा कोई खबर नहीं मिलेगी जैसे सीबीआई के बराबर ये चैनल भी अपना अलग से एक जांच विभाग खोले हुए है कि अगर रिया को सीबीआई वालों ने भी आरोपी नहीं माना तो हम उसको आरोपी बना देंगे. हालांकि ये प्रचलन पिछले समय से ही हुआ है जबकि अब तक कोई बड़ी खबर भी इतने दिनों तक जीवित नहीं रही जितनी इस खबर को हाइप मिली है.

बता दें कि सुशांत सिंह राजपूत का मुद्दा किसी भी हाल में बिहार चुनाव तक खत्म होना मुमकिन ही नामुमकिन लगता है. इस मुद्दे को गर्मी भी सिर्फ बिहार चुनाव की वजह से मिली. लेकिन एक आत्महत्या या हत्या को कभी भी इतनी जगह मिडिया में पहली बार मिली है. इस दौरान कई बड़ी खबरें चंद दिनों में धरासाई हो गई जबकि वो काफी बड़ी खबरें थी. जिनमें एक बड़ी खबर राजस्थान सरकार गिरने की भी थी.

लेकिन अगर कांग्रेस को जुकाम हो जाय तो उस खबर को हाइप जरुर मिल जाती है. अगर मिडिया ने विपक्ष का साथ पूरी तरह सत्यता से नहीं दिया तो आने वाले समय में मीडिया को अपना साथ देने वाले खोजने होंगे. एक बार जन प्रिंट मीडिया का जमाना था तो टीवी जर्नलिज्म ने नया कब्जा जमाया तब लोग कहते थे कि अब प्रिंट मीडिया का दिवाला निकल जाएगा. चूँकि तब सरकार की कमियों से एक दो संस्थान सौदा करते थे. बाकी उनकी बखिया उधेड़ते थे जिससे दोनों मीडिया बराबर चलती रही.

अब बीते कई सालों से मीडिया जगत पर टीवी चैनलों ने कब्जा जमाना शुरू किया और जो उन्होंने परोसा जनता से चटखारे लेकर खाया उसका असर अब प्रिंट मिडिया में दिखना शुर हो गया है कहना ये अतोशोक्ति नहीं होगा कि जल्द की प्रिंट मिडिया के कई बड़े घराने धरासाई हो सकते है. उसके बाद टीवी जर्नलिज्म का एकछत्र राज शुरू होगा. उसके बाद इस प्रकार की मिडिया का भी विकल्प समाने आ गया है.

जिस तरह टीवी मिडिया ने प्रिंट मिडिया का पतन किया ठीक उसी तरह वेब जर्नलिज्म ने टीवी मीडिया के पतन का रास्ता खोल दिया है. यह हम नहीं न्यूटन के नियम के अनुसार क्रिया के साथ प्रतिक्रिया होती है. अब जल्द ही एक नई तकनीक के दायरे में देश जा रहा है जिससे अब तीसरे प्रकार की मिडिया सामने आएगी जिसे अब क्या कहें और क्या होगा गर्त में छिपा हुआ है. लेकिन जिस तरह मीडिया एन अम जन मानस के मुद्दों से दूरी बनाई है उससे सबको बेहद दुःख जरुर हो रहा है.

अब कब देश में अपराध पर बात होगी. कब बेरोजगारी पर बात होगी, कब दूब रहे व्यापार पर बात होगी. कब महिला सुरक्षा और एनी मुद्दों पर बात होगी, कब देश के सबसे बड़े समूह किसान की समस्या पर बात होगी.

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