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जनता का सामान्य ज्ञान तैयार करने में मीडिया की अहम भूमिका होती है। भारत का दुर्भाग्य है कि यहाँ का मीडिया दो नासपिटे पाटों के बीच पिस रहा है। कल सोशलमीडिया से पता चला कि कुछ टीवी वालों ने पंजशीर घाटी में पाकिस्तानी सेना की मदद से हमले की पैरोडी बनाकर रख दी। किसी ने वीडियो गेम की फुटेज लगा दी तो किसी ने ब्रिटेन के हवाई अभ्यास की। दूसरे तरफ की मण्डली ने अपना समय पहली मण्डली का मजाक उड़ाने में व्यतीत किया। अफसोस है कि ये दोनों मण्डलियाँ एक दूसरे का दानापानी बनी हुई हैं।
टीवी देखता नहीं तो पता नहीं कि वहाँ क्या नौटंकी चल रही है लेकिन अफगानिस्तान के मौजूदा घटनाक्रम में पाकिस्तान की खुली और निंदनीय भूमिका के बारे में जानने का देश को हक है। पंजशीर घाटी में पाकिस्तानी वायुसेना ने ड्रोन से हमला किया है, यह आरोप अहमद मसूद के नेतृत्व वाले अफगानिस्तान नेशनल रेजिसटेंस फ्रंट (NRF) की तरफ से आया। वो लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करके अपना पक्ष सामने रख रहे हैं। पर्दे के पीछे क्या खेल चल रहा है ये हम जैसों को नहीं पता चलता इसलिए हम उसी की व्याख्या करते हैं जो रंगमंच पर सबके सामने खेला जा रहा है।
अब यह साफ होता जा रहा है कि चीन ही नहीं अमेरिका और ब्रिटेन इत्यादि भी तालिबान के पक्ष में हैं। संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि ने तालिबान से कल ही मुलाकात की है। हर बार की तरह इस बार भी संयुक्त राष्ट्र का दावा है कि वो व्यापक जनहित में तालिबान से बातचीत कर रहे हैं। उससे पहले ब्रिटेन के मंत्री पाकिस्तान जाकर 14 मिलियन डॉलर अफगानिस्तान के शरणार्थियों की मदद के लिए देने का वादा करके आये। ब्रिटेन को भी हमेशा की तरह मानवाधिकार की चिन्ता है।
जब पाकिस्तानी वायुसेना द्वारा तालिबान की मदद करने की खबर आयी तो उसके बाद मौजूदा घटनाक्रम में कल ईरान ने शायद पहली बार खुलकर पंजशीर घाटी के लड़ाकों के पक्ष में बोला। नेशनल रेजिसटेंस फ्रंट (NRF) का दावा है कि पाकिस्तानी ड्रोन से उनपर हमला हुआ है। यह भी दावा किया गया है कि पंजशीर घाटी पर बड़े हवाई हमले की तैयारी है। सभी जानते हैं कि अमेरिकी वायुयान तो छोड़ गये हैं लेकिन अपने पायलटों को लेकर गये हैं। तालिबान के पास वायुयान उड़ाने के दो ही तरीके हैं कि या तो अफगान सेना के पुराने पायलट नियुक्त किये जायें या फिर पड़ोसी देश से मदद ली जाए।
पंजशीर घाटी में मौजूद ताजिक ईरानी मूल के हैं और ज्यादातर शिया हैं। भारत के कई शिया पत्रकारों को पढ़ें तो आपको लगेगा कि दुनिया का सबसे बुरा मुल्क हिन्दुस्तान है लेकिन शिया मुसलमान पाकिस्तान में कम होते जा रहे हैं। कई बार तो उनकी सामूहिक हत्या की जा चुकी है। पाकिस्तान के निर्माण में बढ़चढ़कर योगदान देने वाले अहमदिया को तो पाक सरकार ने ही गैर-मुसलमान करार दे रखा है।
अहमदिया को मारना पाकिस्तान में आम बात हो चुकी है। वह वक्त दूर नहीं जब पारसियों की तरह केवल हिन्दुस्तान में ही अहमदिया बचेंगे। शिया के लिए इस खित्ते में दो ही सबसे सुरक्षित मुल्क हैं ईरान और भारत। इराक में भी वो काफी हैं लेकिन इराक अभी खुद अमेरिकी बर्बरता से उबरने में लगा है। ऐसे में बात शिया की होगी तो ईरान को उनके लिए खड़ा होना ही होगा।
तालिबान अमीरात के गठन में मुख्य मध्यस्थ की भूमिका पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के डीजी फैज हामिद निभा रहे हैं। फैज हामिद काबुल जाकर तालिबान के विभिन्न धड़ों के बीच शक्ति-सन्तुलन वाली रियासत बनाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार दक्षिणी अफगानिस्तान में मजबूत तालिबान और पूर्वी अफगानिस्तान में मजबूत तालिबान (हक्कानी नेटवर्क) के बीच मुख्य जोरआजमाइश हो रही है। तालिबान का धर्म चाहे जो हो वो कबीलाई लोग हैं। कबीलाई मानसिकता के शिकार लड़ाके जब बाहरी लोगों से लड़ लेते हैं तो फिर अपने में लड़ने लगते हैं। सभी के पास बन्दूक है, सभी के पास इलाका है। पैसा कहाँ से आएगा इसके लिए सबके बीच जंग लाजिमी है।
भारत के लिबरल विचारकों के इतर पाकिस्तानी लिबरल विचारकों, सांसदों, पूर्व सैन्य अधिकारियों, पूर्व आईएसआई अधिकारियों इत्यादि ने मीडिया में खुलेआम बताया है कि पश्तून इलाके के तालिबान के ज्यादातर बड़े नेता पिछले 20 साल से पाकिस्तान में बाल-बच्चों समेत रह रहे थे। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार तहरीके तालिबान पाकिस्तान का निर्माण कवर के तौर पर किया गया।
पाकिस्तानी पीएम इमरान खान संसद में ही तालिबान को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बता चुके हैं। पाकिस्तान का बड़ा तबका तालिबान के कब्जे का जश्न मना रहा है। पाकिस्तान के सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल गुलाम मुस्तफा ने कल ट्वीट किया कि अजब संयोग है कि तालिबान ने काबुल पर 14 अगस्त को कब्जा किया। 6 सितम्बर को पंजशीर पर कब्जे का दावा किया और 11 सितम्बर को वो शायद अपने निजाम के मनसबदारों की घोषणा करें! आपको पता ही होगा पाकिस्तान को लगता है कि वो 14 अगस्त को आजाद हुआ था। भारत की तरह 15 अगस्त को नहीं। 6 सितम्बर 1965 को भारतीय सेना लाहौर पहुँची थी। 11 सितम्बर को अमेरिका के ट्रेड टावर गिराये गये थे।
गुलाम मुस्तफा के ट्वीट का जवाब देते हुए पाकिस्तान के मशहूर पत्रकार अब्बास नासिर ने उनपर तंज करते हुए पूछा है, "सर, बधाई हो आपका प्लान पूरी तरह कामयाब है। 16 दिसम्बर की क्या योजना है?" 16 दिसम्बर को 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने समर्पण किया था।
पाकिस्तानी संसद में तालिबान पर दिये गये अपने भाषण में इमरान खान ने कहा कि आज के दिन कश्मीर का जिक्र जरूरी है। कश्मीर के अलगाववादी नेता जिलानी की मौत पर इमरान खान ने दुख जताया। पाकिस्तान ने उनका मातम मनाया। गिलानी को दफन करते समय उनके शव को पाकिस्तानी झण्डे में दफन किया गया। गिलानी जैसे कश्मीरी नेता हिन्दुस्तान के जम्हूरी निजाम में नहीं बल्कि पाकिस्तान के इस्लामी निजाम में रहना चाहते हैं। लोकतंत्र का वो उसी तरह इस्तेमाल करते हैं जिस तरह नाई उस्तरे का करता है।
यह सच है कि भारत में एक बड़ा धड़ा 'पाकिस्तान-पाकिस्तान' का इस्तेमाल दंगाई मानसिकता के तहत करता है। लेकिन इसके बरक्स दूसरे धड़े ने पाकिस्तान की हमेशा एक गुलाबी तस्वीर ही पेश की है जिसमें फैज, फराज और कोक स्टूडियो तो है लेकिन पाक सेना, आईएसआई, हक्कानी नेटवर्क और इमरान खान के बयान इत्यादि गायब रहते हैं। कुल मिलाकर पाकिस्तान को लेकर हमारी समझ हमेशा एकपक्षीय रही है। पाकिस्तान के बारे में दंगाई और गुलाबी मानसिकता से बचते हुए संतुलित और सूचित बहस से ही देश की जनता बेहतर समझ बना पाएगी।
इतनी कहानी कहने के बाद यह सवाल लाजिम है कि क्या अफगानिस्तान अब पाकिस्तान के रिमोट-कंट्रोल से चलेगा! इसकी बहुत कम उम्मीद है। अफगानी कबीलाई लोग हैं। पूरे मध्य एशिया में मजहब से ज्यादा ताकतवर कबीलाई पहचान है। गैर-मुसलमानों के मुकाबले में भले ही सब खुद को मुसलमान कहने लगें लेकिन मुसलमानों के अन्दर तुर्क, मंगोल, ताजिक, पख्तून इत्यादि की जंग जारी रहेगी। हर नस्ल खुद को दूसरे से बेहतर समझती है और हर किसी का दावा है कि मुसलमानों की अमीरात बनाने का हक उसी का है।
पंजशीर घाटी ताजिक का गढ़ है। अफगानिस्तान की आबादी में करीब 25 फीसदी ताजिक हैं। ताजिक में काफी शिया हैं और खुद को ईरानी मूल का मानते हैं। अगर ताजिक अड़े रहे तो करीब 40 फीसदी आबादी वाले पख्तूनों के लिए अफगानिस्तान चलाना मुश्किल होगा। ईरान भी शिया का कत्ल होते नहीं देख सकेगा। ताजिकिस्तान तो ताजिकों का मुल्क ही है। ये दोनों मुल्क अफगानिस्तान के पड़ोसी हैं।
ऐतिहासिक विडम्बना यह है कि मौजूदा पाकिस्तान की रहवासियों के पास उस इलाके की सुल्तानी का कोई दावा नहीं है। मौजूदा पाकिस्तान को पंजाबी पाकिस्तान कह सकते हैं। पंजाबियों में उस इलाके में शासन करने वाले महाराज रंजीत सिंह ही हुए हैं जो सिख थे। बाकी उस इलाके पर मंगोल, उज्बेक, तुर्क, अफगान इत्यादी की रियासत जरूर रही है तो जाहिर है कि नस्ली आधार पर वो पंजाबी या सिंधी पाकिस्तानियों से दबने वाले नहीं।
एक वरिष्ठ साथी ने लिखा है कि अफगानिस्तान में अगला नम्बर चीन का है! मेरे ख्याल से तालिबान अगर स्थिर हुए तो अगला नम्बर पाकिस्तान का होगा! लेकिन अफगानिस्तान में स्थिरता हासिल करना टेढ़ी खीर है। आज सुबह ही NRF ने पंजशीर में तालिबान के कब्जे वाले सभी इलाकों को फिर से खाली करा लेने का दावा किया। NRF ने यह भी दावा किया है कि काबुल से 60 किलोमीटर दूर बगराम में उनकी तालिबान से मुठभेड़ चल रही है।
अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति ही उसकी बदहाली के लिए जिम्मेदार है। अगर व्यापार पर आ जाये तो अफगान खुशहाल हो जाये लेकिन उसपर कब्जे के लिए हर ताकतवर पड़ोसी ललचाता रहता है। अफगानिस्तान का वही हाल हो गया है जैसे किसी गरीब चार भाइयों के परिवार के पास सबसे कीमती प्लॉट हो और उसपर शहर के सारे माफिया, नेता और बिल्डरों की नजर हो। सबसे होशियार वो होता है जो किसी एक या दो भाई को इस बात के लिए राजी कर लेता है कि तू अपना हिस्सा मुझे बेच दे बाकी हम देख लेंगे! चारो भाई एक साथ प्लॉट बेचने के लिए तैयार नहीं होते और न ही चारो एक साथ मिलकर यह कह पाते हैं कि हम अपना प्लॉट नहीं बेचेंगे। सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि चारो भाई कभी न कभी इस सोच में जरूर पड़ जाते हैं कि बाकी तीन को किसी पड़ोसी की मदद से ठिकाने लगाकर पूरा प्लॉट मैं ले लूँगा।
भारत की दिक्कत यह है कि जिस प्लॉट के लिए घमासान मचा हुआ है उसके एक प्लॉट बाद वाला प्लॉट अपना है। दोनों के बीच वाला प्लॉट पाकिस्तान है जिसने अपना जीवन ही भारत-विरोध के लिए समर्पित कर दिया है। पाकिस्तानी राजनीति पर सेना का नियंत्रण छिपा नहीं है। जनसमर्थन हासिल करने के लिए पाक सेना हमेशा (हिन्दू) भारत का का हौव्वा खड़ा रखता है। भाजपा की केंद्रीय सत्ता में मजबूती से आने के बाद पाकिस्तान दानिशवर बार-बार कहते हैं, 'जिन्ना का दो राष्ट्रों का सिद्धान्त सही साबित हुआ!' एक पाकिस्तानी साहब जब ऐसा ही दावा कर रहे थे तो पाकिस्तानी पत्रकार ने उनसे पूछा कि "आज आप कह रहे हैं कि भारत में पहले सेकुलरइज्म था, अब हिंदुवादी सरकार गयी है और टू नेशन थियरी सही साबित हो गयी है लेकिन आप तो मनमोहन सिंह के टाइम में भी यही कहते थे कि हिन्दुस्तान में सेकुलरइज्म नहीं है!"
जाहिर है कि दंगाई मानसिकता के तहत किसी एक समुदाय को निशाना बनाना राष्ट्रीय हित में नहीं है लेकिन भारत का राष्ट्रीय हित किस चीज में है, किसमें नहीं है इसको लेकर हमारी समझ साफ होनी चाहिए। पाकिस्तान से प्यार जताते समय, पाकिस्तान का परोक्ष बचाव करते समय व्यापक परिप्रेक्ष्य का ध्यान रखना चाहिए। कोक स्टूडियो, पाकिस्तान मुझे भी बहुत पसंद है लेकिन देश से ज्यादा प्यारा नहीं है। रंगनाथ सिंह के फेसबुक से साभार