संपादकीय

जो डर गया समझो बच गया, 2020 कोविड-19 का साल ,लोगों ने हाथ से हाथ मिलाना तक बंद कर दिया

Shiv Kumar Mishra
31 Dec 2020 5:43 PM GMT
जो डर गया समझो बच गया,  2020 कोविड-19 का साल ,लोगों ने हाथ से हाथ मिलाना तक बंद कर दिया
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जो डर गया समझो बच गया 2020 कोविड-19 का साल लोगों ने हाथ से हाथ मिलाना बंद कर दिया पूरा साल बहुत लोगों के लिए बहुत खराब साल साबित हुआ पूरी दुनिया ने एक भय के वातावरण में यह साल गुजारा अभी भी वैक्सीन का इंतजार है आर्थिक रूप से यह साल ऐसा साल है कि जिसे याद ना किया जाए तो ही अच्छा है परंतु इस साल कुछ ऐसा भी हुआ है जिसने भारत के परिपेक्ष में नई उम्मीदें जगाई हैं भारत में नई शिक्षा नीति की घोषणा की वही सुप्रीम कोर्ट ने भव्य राम मंदिर के मार्ग में लगी सभी बाधाएं दूर के और भूमि पूजन भारत के प्रधानमंत्री द्वारा किया गया साल के अंत में किसान बिल को लेकर पंजाब और हरियाणा किसान सड़कों पर आ गए और बिल की वापसी की मांग पर अड़ गए जो अब तक जारी है लेकिन 12 महीने में 1 जनवरी 2020 से प्रारंभ होकर 31 दिसंबर 2020 मैं घटा वह भी एक इतिहास है अमेरिका में ट्रंप हार गए तो बिहार में नीतीश हार कर भी जीत गए.

आर भारत न्यूज़ चैनल ने अपनी अलग तरह की पत्रकारिता को चलते सुर्खियां बटोरी वही महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार ने निरंकुशता की हद कर दी पालघर की घटना हो या सुशांत सिंह राजपूत की हत्या या आत्महत्या का अपना अपना नजरिया सबने 2020 में न्यूज मेकर की भूमिका निभाई मैं तो कभी 1 जनवरी को नववर्ष की शुभकामना देता भी नहीं हूं परंतु आश्चर्य ऐसा हुआ कि इस बार मेरे मित्रों ने भी उस मात्रा में 1 जनवरी में नव वर्ष की ना तो खुशियां मनाई ना बधाई दी और ना बहुत ज्यादा शुभकामनाएं आई शायद कोविड-19 के चलते जो निराशा का वातावरण है उसने इसमें भूमिका निभाई 1जनवरी 2021 आपके दरवाजे पर दस्तक दे रहा है ग्रेगोरी कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी 153 ईसा पूर्व को रोमन सलाहकार कार्यालय में अपने वर्ष के शुरू आप करते हैं 1 जनवरी 1502 को पुर्तगाल के नागरिकों ने रियो डी जेनेरियो की खोज की थी और 1 जनवरी 1670 को भारत में मुगल बादशाह औरंगजेब के खिलाफ सर्वप्रथम क्रांति करने वाले वीर गोकुला जाट के शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए थे इसलिए भारत में इस दिन को हिंदू क्रांति दिवस के रूप में भी मनाया जाता है परंतु यह बहुत कम लोगों को जानकारी में होगा 1 जनवरी 1562 को भारतीय दंड संहिता को लागू किया गया 1 जनवरी को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया भारत की साम्राज्ञी बनी एक जनवरी अट्ठारह सौ निन्यानवे स्पेनिश शासन का अंत हो गया 1 जनवरी 1923 को सामूहिक अधिनियम ब्रिटेन की सभी रेलवे कंपनियों को चार बड़ी कंपनी में बदल दिया गया यही नहीं 1 जनवरी 1923 को रोजवुड नरसंहार शुरू हुआ था इसी दिन 1942 में वाशिंगटन में 26 देशों ने संयुक्त राष्ट्र के घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किया था और इसी दिन 1945 में फ्रांस संयुक्त राष्ट्र संघ बना 1995 में विश्व व्यापार संगठन अस्तित्व में आया 2002 1 जनवरी को यूरोपीय संघ के 12 सदस्य देशों ने एक ही मुद्रा यूरो का इस्तेमाल शुरू किया और 2008 में 1 जनवरी को उत्तर प्रदेश में मूल्य वर्धित wait भी लागू किया गया.

कैथोलिक वीकली हेराल्ड अखबार की ओर से दायर मुकदमे की सुनवाई के बाद मलेशिया की अदालत ने सरकार द्वारा देश के अल्पसंख्यकों के अल्लाह शब्द के प्रयोग पर लगाए प्रतिबंध को निरस्त करते हुए कहा कि साई प्रकाशनों को भी ईश्वर के लिए अल्लाह शब्द का इस्तेमाल करने का संवैधानिक अधिकार है इस दिन 1890 को संपूर्णानंद जो भारत के प्रसिद्ध राजनेता थे उनका जन्म हुआ महादेव देसाई का जन्म हुआ प्रोफेसर सत्येंद्र नाथ बोस जो भारतीय वैज्ञानिक थे उनका जन्म हुआ यही नहीं बल्कि असरानी नाना पाटेकर आज के दिन ही हुआ बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि सोनाली बेंद्रे और विद्या बालन भी आज ही के दिन जन्मी है रघुनाथ अनंत मशेलकर जो भारतीय वैज्ञानिक थे उनका जन्म भी आज ही का है 1 जनवरी 2020 से 1 जनवरी 2021 के बीच बहुत महत्वपूर्ण घटनाएं घटी यह साल कोविड-19 या कोरोना साल के रूप में भी जाना जाएगा वहीं इस अंतराल में भारत के परिपेक्ष मे बहुत महत्वपूर्ण समय कई 10 को पुराना मामला अयोध्या राम जन्म भूमि विवाद आखिरकार सुलझ गया और भव्य राम मंदिर का सपना पूर्ण होने की और अग्रसर है चाइना को एलएसी पर मुंह की खानी पड़ी पूरी दुनिया में चीन कोरोना काल के कारण पीएस का भागीदार बना हवाई ट्रंप की हार ने भी न्यूज़ की दुनिया में अपनी जगह बनाई बिहार में मीडिया अटकल बाजिओ के बावजूद नीतीश कुमार की ही सरकार बनी 1 जनवरी 2021 से रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े कई नियम बदल जायेंगे जिसमें फास्ट टैग जीएसटी गैस सिलेंडर इंश्योरेंस चेक पेमेंट कॉलिंग व्हाट्सएप गाड़ियों की कीमत आदि शामिल है अगर आपने कुछ नियमों को नजरअंदाज किया तो आपको अच्छा खासा नुकसान भी हो सकता है विश्व भर में 1 जनवरी नव वर्ष से पहले मार्च में नया साल मनाने की परंपरा थी जैसे कि भारत में चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को नववर्ष मनाया जाता है यह जो 1 जनवरी है इसके पीछे एक इतिहास हैआज से लगभग 4,000 वर्ष पहले बेबीलीन नामक स्थान से मनाना शुरू हुआ था। एक जनवरी को मनाया जाने वाला नया वर्ष ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। इसकी शुरुआत रोमन कैलेंडर से हुई। इस पारंपरिक रोमन कैलेंडर का नया वर्ष 1 मार्च से शुरू होता है, लेकिन रोमन के प्रसिद्ध सम्राट जूलियस सीजर ने 46 वर्ष ईसा पूर्व में इस कैलेंडर में परिवर्तन किया था। इसमें उन्होंने जुलाई का महीना और इसके बाद अपने भतीजे के नाम पर अगस्त का महीना जोड़ दिया। दुनियाभर में तब से लेकर आज तक नया साल 1 जनवरी को मनाया जाता हैसाल को 1 जनवरी से माना जाने लगा.

यूरोप और दुनिया के अधिकतर देशों में नया साल 1 जनवरी से शुरू माना जाता है. लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. और अभी भी दुनिया के सारे देशों में 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत नहीं मानी जाती है. 500 साल पहले तक अधिकतर ईसाई बाहुल्य देशों में 25 मार्च और 25 दिसंबर को नया साल मनाया जाता है. 1 जनवरी से नया साल मनाने की शुरुआत पहली बार 45 ईसा पूर्व रोमन राजा जूलियस सीजर ने की थी. रोमन साम्राज्य में कैलेंडर का चलन रहा था.

पृथ्वी और सूर्य की गणना के आधार पर रोमन राजा नूमा पोंपिलुस ने एक नया कैलेंडर लागू किया. यह कैलेंडर 10 महीने का था क्योंकि तब एक साल को लगभग 310 दिनों का माना जाता था. तब एक सप्ताह भी आठ दिनों का माना जाता था. नूमा ने मार्च की जगह जनवरी को साल का पहला महीना माना. जनवरी नाम रोमन देवता जैनुस के नाम पर है. जैनुस रोमन साम्राज्य में शुरुआत का देवता माना जाता था जिसके दो मुंह हुआ करते थे. आगे वाले मुंह को आगे की शुरुआत और पीछे वाले मुंह को पीछे का अंत माना जाता था. मार्च को पहला महीना रोमन देवता मार्स के नाम पर माना गया था. लेकिन मार्स युद्ध का देवता था. नूमा ने युद्ध की जगह शुरुआत के देवता के महीने से साल की शुरुआत करने की योजना की. हालांकि 153 ईसा पूर्व तक 1 जनवरी को आधिकारिक रूप से नए साल का पहला दिन घोषित नहीं किया गया.

साल 2020 की शुरुआत का जश्न मनाते बच्चे.

46 ईसा पूर्व रोम के शासक जूलियस सीजर ने नई गणनाओं के आधार पर एक नया कैलेंडर जारी किया. इस कैलेंडर में 12 महीने थे. जूलियस सीजर ने खगोलविदों के साथ गणना कर पाया कि पृथ्वी को सूर्य के चक्कर लगाने में 365 दिन और छह घंटे लगते हैं. इसलिए सीजर ने रोमन कैलेंडर को 310 से बढ़ाकर 365 दिन का कर दिया. साथ ही सीजर ने हर चार साल बाद फरवरी के महीने को 29 दिन का किया जिससे हर चार साल में बढ़ने वाला एक दिन भी एडजस्ट हो सके.

साल 45 ईसा पूर्व की शरुआत 1 जनवरी से की गई. साल 44 ईसा पूर्व में जूलियस सीजर की हत्या कर दी गई. उनके सम्मान में साल के सातवें महीने क्विनटिलिस का नाम जुलाई कर दिया गया. ऐसी ही आठवें महीने का नाम सेक्सटिलिस का नाम अगस्त कर दिया गया. 10 महीने वाले साल में अगस्त छठवां महीना होता था. रोमन साम्राज्य जहां तक फैला हुआ था वहां नया साल एक जनवरी से माना जाने लगा. इस कैलेंडर का नाम जूलियन कैलेंडर था.

पांचवी शताब्दी आते आते रोमन साम्राज्य का पतन हो गया था. यूं तो 1453 में ओटोमन साम्राज्य द्वारा पूरे साम्राज्य के राज को खत्म करने तक रोमन साम्राज्य चलता रहा लेकिन पांचवी शताब्दी तक रोमन साम्राज्य बेहद सीमित हो गया. रोमन साम्राज्य जितना सीमित हुआ ईसाई धर्म का प्रसार उतना बढ़ता गया. ईसाई धर्म के लोग 25 मार्च या 25 दिसंबर से अपना नया साल मनाना चाहते थे.

ईसाई मान्यताओं के अनुसार 25 मार्च को एक विशेष दूत गैबरियल ने ईसा मसीह की मां मैरी को संदेश दिया था कि उन्हें ईश्वर के अवतार ईसा मसीह को जन्म देना है. 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म हुआ था. इसलिए ईसाई लोग इन दो तारीखों में से किसी दिन नया साल मनाना चाहते थे. 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है इसलिए अधिकतर का मत 25 मार्च को नया साल मनाने का था.

लेकिन जूलियन कैलेंडर में की गई समय की गणना में थोड़ी खामी थी. सेंट बीड नाम के एक धर्माचार्य ने आठवीं शताब्दी में बताया कि एक साल में 365 दिन 6 घंटे ना होकर 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 46 सेकंड होते हैं. 13वीं शताब्दी में रोजर बीकन ने इस थ्योरी को स्थापित किया. इस थ्योरी से एक परेशानी हुई कि जूलियन कैलेंडर के हिसाब से हर साल 11 मिनट 14 सेकंड ज्यादा गिने जा रहे थे. इससे हर 400 साल में समय 3 दिन पीछे हो रहा था. ऐसे में 16वीं सदी आते-आते समय लगभग 10 दिन पीछे हो चुका था. समय को फिर से नियत समय पर लाने के लिए रोमन चर्च के पोप ग्रेगरी 13वें ने इस पर काम किया.

1580 के दशक में ग्रेगरी 13वें ने एक ज्योतिषी एलाय सियस लिलियस के साथ एक नए कैलेंडर पर काम करना शुरू किया. इस कैलेंडर के लिए साल 1582 की गणनाएं की गईं. इसके लिए आधार 325 ईस्वी में हुए नाइस धर्म सम्मेलन के समय की गणना की गई. इससे पता चला कि 1582 और 325 में 10 दिन का अंतर आ चुका था. ग्रेगरी और लिलियस ने 1582 के कैलेंडर में 10 दिन बढ़ा दिए. साल 1582 में 5 अक्टूबर से सीधे 15 अक्टूबर की तारीख रखी गई.

साथ ही लीप ईयर के लिए नियम बदला गया. अब लीप ईयर उन्हें कहा जाएगा जिनमें 4 या 400 से भाग दिया जा सकता है. सामान्य सालों में 4 का भाग जाना आवश्यक है. वहीं शताब्दी वर्ष में 4 और 400 दोनों का भाग जाना आवश्यक है. ऐसा इसलिए है क्योंकि लीप ईयर का एक दिन पूरा एक दिन नहीं होता है. उसमें 24 घंटे से लगभग 46 मिनट कम होते हैं. जिससे 300 साल तक हर शताब्दी वर्ष में एक बार लीप ईयर ना मने और समय लगभग बराबर रहे. लेकिन 400वें साल में लीप ईयर आता है और गणना ठीक बनी रहती है. जैसे साल 1900 में 400 का भाग नहीं जाता इसलिए वो 4 से विभाजित होने के बावजूद लीप ईयर नहीं था. जबकि साल 2000 लीप ईयर था. इस कैलेंडर का नाम ग्रेगोरियन कैलेंडर है. इस कैलेंडर में नए साल की शुरुआत 1 जनवरी से होती है. इसलिए नया साल 1 जनवरी से मनाया जाने लगा है.

इस कैलेंडर को भी स्थापित होने में समय लगा. इसे इटली, फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल ने 1582 में ही अपना लिया था. जबकि जर्मनी के कैथोलिक राज्यों, स्विट्जरलैंड, हॉलैंड ने 1583, पोलैंड ने 1586, हंगरी ने 1587, जर्मनी और नीदरलैंड के प्रोटेस्टेंट प्रदेश और डेनमार्क ने 1700, ब्रिटिश साम्राज्य ने 1752, चीन ने 1912, रूस ने 1917 और जापान ने 1972 में इस कैलेंडर को अपनाया.

सन 1752 में भारत पर भी ब्रिटेन का राज था. इसलिए भारत ने भी इस कैलेंडर को 1752 में ही अपनाया था. ग्रेगोरियन कैलेंडर को अंग्रेजी कैलेंडर भी कहा जाता है. हालांकि अंग्रेजों ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को 150 सालों से भी ज्यादा समय तक अपनाया नहीं था. भारत में लगभग हर राज्य का अपना एक नया साल होता है. मराठी गुडी पड़वा पर तो गुजराती दीवाली पर नया साल मनाते हैं. हिंदू कैलेंडर में चैत्र महीने की पहली तारीख यानि चैत्र प्रतिपदा को नया साल मनाया जाता है. ये मार्च के आखिर या अप्रैल की शुरुआत में होती है. इथोपिया में सितंबर में नया साल मनाया जाता है. चीन में अपने कैलेंडर के हिसाब से भी अलग दिन नया साल मनाया जाता है.

लेकिन ग्रेगरी के कैलेंडर के साथ भी एक समस्या है. इस कैलेंडर में 11 मिनट का उपाय तो हर चार में से तीन शताब्दी वर्षों को लीप ईयर ना मानकर कर लिया. लेकिन 14 सेकंड का फासला अभी भी हर साल है. इसी के चलते साल 5000 आते-आते फिर से कैलेंडर में एक दिन का अंतर पैदा हो जाएगा. हो सकता है तब इस कैलेंडर की जगह समय गणना की कोई नई प्रणाली आए जो इस गणना को ठीक करे.

हिन्दू धर्म में नववर्ष का आरंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी इसलिए इस दिन से नए साल का आरंभ भी होता है। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम महीने की पहली तारीख को नया साल हिजरी शुरू होता है।

वैसे ही भारत में नया साल सभी स्थानों पर अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है। ज्यादातर ये तिथियां मार्च और अप्रैल के महीने में पड़ती हैं। पंजाब में नया साल बैशाखी के रूप में 13 अप्रैल को मनाया जाता है। सिख धर्म को मानने वाले इसे नानकशाही कैलेंडर के अनुसार मार्च में होली के दूसरे दिन मनाते हैं। जैन धर्म के लोग नववर्ष को दिवाली के अगले दिन मनाते हैं। यह भगवान महावीर स्वामी की मोक्ष प्राप्ति के अगले दिन से शुरू होता है। इन सब में सबसे वैज्ञानिक चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जानेवाला वाला नव वर्ष है क्योंकि पूरी प्रकृति देखिए कैसे उस समय अंगड़ाई लेती है और कैसे उत्सव मनाती है

भारत का सर्वमान्य संवत विक्रम संवत है, जिसका प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ था और इसी दिन भारत वर्ष में काल गणना प्रारंभ हुई थी। कहा है कि :-

चैत्र मासे जगद्ब्रह्म समग्रे प्रथमेऽनि

शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति। - ब्रह्म पुराण

चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा वसंत ऋतु में आती है। वसंत ऋतु में वृक्ष, लता फूलों से लदकर आह्लादित होते हैं जिसे मधुमास भी कहते हैं। इतना ही यह वसंत ऋतु समस्त चराचर को प्रेमाविष्ट करके समूची धरती को विभिन्न प्रकार के फूलों से अलंकृत कर जन मानस में नववर्ष की उल्लास, उमंग तथा मादकाता का संचार करती है।

इस नव संवत्सर का इतिहास बताता है कि इसका आरंभकर्ता शकरि महाराज विक्रमादित्य थे। कहा जाता है कि देश की अक्षुण्ण भारतीय संस्कृति और शांति को भंग करने के लिए उत्तर पश्चिम और उत्तर से विदेशी शासकों एवं जातियों ने इस देश पर आक्रमण किए और अनेक भूखंडों पर अपना अधिकार कर लिया और अत्याचार किए जिनमें एक क्रूर जाति के शक तथा हूण थे।

ये लोग पारस कुश से सिंध आए थे। सिंध से सौराष्ट्र, गुजरात एवं महाराष्ट्र में फैल गए और दक्षिण गुजरात से इन लोगों ने उज्जयिनी पर आक्रमण किया। शकों ने समूची उज्जयिनी को पूरी तरह विध्वंस कर दिया और इस तरह इनका साम्राज्य शक विदिशा और मथुरा तक फैल गया। इनके कू्र अत्याचारों से जनता में त्राहि-त्राहि मच गई तो मालवा के प्रमुख नायक विक्रमादित्य के नेतृत्व में देश की जनता और राजशक्तियां उठ खड़ी हुईं और इन विदेशियों को खदेड़ कर बाहर कर दिया

इस पराक्रमी वीर महावीर का जन्म अवन्ति देश की प्राचीन नगर उज्जयिनी में हुआ था जिनके पिता महेन्द्रादित्य गणनायक थे और माता मलयवती थीं। इस दंपत्ति ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान भूतेश्वर से अनेक प्रार्थनाएं एवं व्रत उपवास किए। सारे देश शक के उन्मूलन और आतंक मुक्ति के लिए विक्रमादित्य को अनेक बार उलझना पड़ा जिसकी भयंकर लड़ाई सिंध नदी के आस-पास करूर नामक स्थान पर हुई जिसमें शकों ने अपनी पराजय स्वीकार की।

इस तरह महाराज विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर एक नए युग का सूत्रपात किया जिसे विक्रमी शक संवत्सर कहा जाता है।

राजा विक्रमादित्य की वीरता तथा युद्ध कौशल पर अनेक प्रशस्ति पत्र तथा शिलालेख लिखे गए जिसमें यह लिखा गया कि ईसा पूर्व 57 में शकों पर भीषण आक्रमण कर विजय प्राप्त की।

इतना ही नहीं शकों को उनके गढ़ अरब में भी करारी मात दी और अरब विजय के उपलक्ष्य में मक्का में महाकाल भगवान शिव का मंदिर बनवाया।

नवसंवत्सर का हर्षोल्लास

* आंध्रप्रदेश में युगदि या उगादि तिथि कहकर इस सत्य की उद्घोषणा की जाती है। वीर विक्रमादित्य की विजय गाथा का वर्णन अरबी कवि जरहाम किनतोई ने अपनी पुस्तक 'शायर उल ओकुल' में किया है।

उन्होंने लिखा है वे लोग धन्य हैं जिन्होंने सम्राट विक्रमादित्य के समय जन्म लिया। सम्राट पृथ्वीराज के शासन काल तक विक्रमादित्य के अनुसार शासन व्यवस्था संचालित रही जो बाद में मुगल काल के दौरान हिजरी सन् का प्रारंभ हुआ। किंतु यह सर्वमान्य नहीं हो सका, क्योंकि ज्योतिषियों के अनुसार सूर्य सिद्धांत का मान गणित और त्योहारों की परिकल्पना सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण का गणित इसी शक संवत्सर से ही होता है। जिसमें एक दिन का भी अंतर नहीं होता।

* सिंधु प्रांत में इसे नव संवत्सर को 'चेटी चंडो' चैत्र का चंद्र नाम से पुकारा जाता है जिसे सिंधी हर्षोल्लास से मनाते हैं।

* कश्मीर में यह पर्व 'नौरोज' के नाम से मनाया जाता है जिसका उल्लेख पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वर्ष प्रतिपदा 'नौरोज' यानी 'नवयूरोज' अर्थात्‌ नया शुभ प्रभात जिसमें लड़के-लड़कियां नए वस्त्र पहनकर बड़े धूमधाम से मनाते हैं।

* हिंदू संस्कृति के अनुसार नव संवत्सर पर कलश स्थापना कर नौ दिन का व्रत रखकर मां दुर्गा की पूजा प्रारंभ कर नवमीं के दिन हवन कर मां भगवती से सुख-शांति तथा कल्याण की प्रार्थना की जाती है। जिसमें सभी लोग सात्विक भोजन व्रत उपवास, फलाहार कर नए भगवा झंडे तोरण द्वार पर बांधकर हर्षोल्लास से मनाते हैं।

* इस तरह भारतीय संस्कृति और जीवन का विक्रमी संवत्सर से गहरा संबंध है लोग इन्हीं दिनों तामसी भोजन, मांस मदिरा का त्याग भी कर देते हैं।

नीरज शर्मा संपादक

Shiv Kumar Mishra

Shiv Kumar Mishra

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