संपादकीय

भारत के विचार से भयभीत ट्रोलर्स

Shiv Kumar Mishra
16 Oct 2020 2:56 AM GMT
भारत के विचार से भयभीत ट्रोलर्स
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भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने पर तुले लोग, यहां की एकता से चिढ़ने वाले लोग, देश की रगों में नफरत फैलाने को तत्पर लोग, सोशल मीडिया से लेकर चुनावी मंचों तक जहर का कारोबार करने वाले लोग, इस देश के संविधान और भारत के विचार से कितने भयभीत हैं - इसका ताजा उदाहरण है तनिष्क ज्वेलरी के एक विज्ञापन पर उनका खड़ा किया गया विवाद, जिस वजह से तनिष्क को इस विज्ञापन को वापस लेने की घोषणा करनी पड़ी।

टाटा समूह की कंपनी तनिष्क के इस विज्ञापन में एक सास अपनी बहू को गोद भराई की रस्म के लिए ले जाते हुए दिखाई गई है। उनके पहनावों से पता चलता है कि बहू हिंदू है, जबकि उसका ससुराल इस्लाम का अनुयायी है। भरे-पूरे परिवार में सब लोग बहू के लिए खुश दिखाई दे रहे हैं और यह सब देखकर भावुक बहू यह पूछती है कि 'मां, यह रस्म तो आपके घर पर होती भी नहीं है ना? तो सास कहती है, 'लेकिन बिटिया को खुश रखने की रस्म तो हर घर में होती है।'

एक अरसे बाद किसी विज्ञापन में इतनी मार्मिक और खूबसूरत पंक्ति सुनने को मिली। साजिश करने वाली सास को दिखाने वाले धारावाहिकों और बेटियों के लिए बेहद असुरक्षित बन चुके इस देश में बहू के लिए बेटी जैसा प्यार देखना सुखद अहसास था। लेकिन धर्म की आड़ में हिंसक विचारों को फैलाने वाले लोगों को यह खूबसूरती दिखाई नहीं दी। उन्हें भारत की एकता दिखाने वाले इस विज्ञापन में लव जिहाद दिखाई दिया। सोशल मीडिया पर तनिष्क के बहिष्कार की मुहिम चलाई गई।

कंगना रनावत जैसे प्रचारप्रिय और बददिमाग लोगों को इस विज्ञापन में हिंदू बहू न जाने कहां से डरी हुई नज़र आई और उन्होंने इसे शर्मनाक करार दिया। सोशल मीडिया से शुरु हुआ विरोध जमीन पर हिंसा के साथ दिखाई दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के गृहराज्य गुजरात में तनिष्क स्टोर पर हमले और वहां के मैनेजर से जबरन माफ़ीनामा लिखवाए जाने की खबर है। बताया जा रहा है कि हमला करने वाली भीड़ ने मैनेजर से लिखवाया कि 'हम सेकुलर ऐड दिखाकर हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने के लिए कच्छ जिले को लोगों से माफी मांगते हैं।'

इस बीच तनिष्क ने यह लिख कर अपना विज्ञापन हटा लिया है कि 'एकत्वम कैंपेन के पीछे विभिन्न क्षेत्रों के लोगों का एक साथ आकर जश्न मनाने का आइडिया है। स्थानीय समुदाय और परिवार इस चुनौतीपूर्ण समय में एकता का जश्न मनाते हैं। इस फिल्म पर उद्देश्य के विपरीत गंभीर प्रतिक्रियाएं आईं हैं। हम अनजाने में लोगों की भावनाओं को हुए नुकसान के लिए दुख प्रकट करते हैं और अपने कर्मचारियों, पार्टनर्स और स्टोर स्टाफ की भलाई को ध्यान में रखते हुए विज्ञापन को वापस लेते हैं।'

तनिष्क के इस कदम पर भी अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कुछ लोग इसे रतन टाटा की कमज़ोरी बता रहे हैं, कुछ ट्रोलर्स को आड़े हाथों ले रहे हैं। इन बिखरी हुई प्रतिक्रियाओं से भारत के मौजूदा हालात पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, क्योंकि ऐसे हालात बनाने वाले सरकारी संरक्षण में नफ़रत फैलाने की मुहिम जारी रखे हुए हैं। और रतन टाटा को कमज़ोर कहने का क्या फायदा, क्योंकि उन्हें तो व्यापार करना है, किसी से लड़ाई-झगड़ा वे क्यों मोल लें। बल्कि उन्हें भी इस सरकार में भारत का भविष्य उज्जवल दिखाई दे रहा था।

अभी कुछ महीनों पहले उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा था कि हमारे प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के पास देश के लिए एक 'विजन' है। उन्होंने कई दूरदर्शी कदम उठाए हैं। सरकार पर गर्व किया जा सकता है, हमें ऐसी दूरदर्शी सरकार की मदद करनी चाहिए।मोदी सरकार में किस तरह का 'विजन' देश को मिल रहा है, यह अब सबके सामने है। धर्म निरपेक्षता पर आधारित विज्ञापन दिखाए जाने पर अब हिंदुओं की भावनाएं आहत होने लगी हैं। अभी दो दिन पहले महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर 'सेक्युलर' होने का तंज कसा था। संविधान में वर्णित सेक्युलर शब्द मोदी सरकार में अपशब्द की तरह इस्तेमाल हो रहा है और हम भारत के लोग इसे चुपचाप देख रहे हैं।

तनिष्क के विज्ञापन को लेकर जिस लव जिहाद का डर बताया जा रहा है, उस लव जिहाद के बारे में संसद में गृह राज्य मंत्री ने बताया है कि ऐसा कोई शब्द कानून में परिभाषित नहीं है। फिर भी उस पर बवाल खड़ा किया जा रहा है। इस विज्ञापन में न किसी तरह की हिंसा दिखाई गई है, न इस विज्ञापन में दावा किया गया है कि वह सारे भारत का प्रतिनिधित्व करता है, न भारत में अंतरधार्मिक विवाहों पर कोई पाबंदी है, न इसमें किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई गई है।

फिर भी इस विज्ञापन पर आपत्ति जताई जा रही है, क्योंकि इसमें वह धार्मिक, सांप्रदायिक सौहार्द्र और प्यार दिखाया गया है, जो भीतर से दरक रहे आज के भारत के लिए सबसे ज्यादा ज़रूरी है। यही ट्रोलर्स का सबसे बड़ा डर है कि कहीं हिंदू-मुस्लिम एकता उनके विभाजनकारी एजेंडे पर हावी न पड़ जाए। इससे पहले सर्फ़ एक्सेल के ऐसे ही एक विज्ञापन को विरोध का सामना करना पड़ा था। अब हर कोई पारले जी या बजाज की तरह यह हिम्मत तो नहीं दिखा सकता कि नफ़रत फैलाने वाले चैनलों पर विज्ञापन देने से इंकार कर दें।

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