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दिल्ली दरबार से प्रदेश नेतृत्व थोपने की बढ़ती प्रवृत्ति का परिणाम है UK में तीरथ सिंह रावत का इस्तीफा
नई दिल्ली। उत्तराखंड को भाजपा से पांच साल के अंदर तीसरा मुख्यमंत्री मिलने वाला है! नैसर्गिक राजनीतिक प्रतिभाओं को दरकिनार कर पैसा, बाहुबल और व्यक्तिगत पसंद के आधार पर रसूखदारों को मंत्री, मुख्यमंत्री बनाने से आने वाले समय में भाजपा भी कांग्रेस की गति को प्राप्त हो सकती है! भाजपा के अंदर भी अब आलाकमान की कांग्रेसी मानसिकता का प्रभाव बढ़ने लगा है!
भाजपा की सफलता का सबसे बड़ा आधार उसके अंदर का खुला लोकतंत्र रहा है जिसमें तमाम मतभेदों के ऊपर राजनीतिक समझ, नेतृत्व क्षमता और जनता के बीच मजबूत पकड़ रखने वाले नेताओं को समयानुसार उचित सम्मान और नेतृत्व करने का मौका मिला! यदि ऐसा नहीं होता तो आज नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री तो क्या गुजरात के मुख्यमंत्री भी बनने का सपना तक नहीं देख सकते थे! भाजपा की राजनीतिक यात्रा में ऐसे तमाम नेताओं की श्रृंखला है जो एक सामान्य पृष्ठभूमि से निकलकर राजनीति के शीर्ष तक पहूंचने में कामयाब रहे!
2014 से पहले मध्यप्रदेश से शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ से रमन सिंह उत्तर प्रदेश से राजनाथ सिंह, दिल्ली से सुषमा स्वराज, गोवा से मनोहर पर्रिकरऔर गुजरात से नरेंद्र मोदी जी के रूप में भाजपा के पास राष्ट्रीय नेतृत्व के तमाम मजबूत चेहरे थे! किंतु दुर्भाग्य से 2014 के बाद भाजपा में नैसर्गिक राजनीतिक क्षमता को मौका देने ज्यादा मनपसंद राजनीतिक नेतृत्व को पार्टी के कार्यकर्ताओं और जनता के ऊपर थोपने की गति में तीव्रता बढ़ी है!
वर्तमान भाजपा नेतृत्व अगर इसी प्रकार की नीतियों पर आगे बढ़ता रहा तो भाजपा के सामने नरेंद्र मोदी के बाद राजनीतिक नेतृत्व का संकट खड़ा हो जायेगा! क्योंकि सुषमा स्वराज, मनोहर पर्रिकर अब इस दुनिया में नहीं है तो वही रमन सिंह, की राजनीतिक यात्रा छत्तीसगढ़ में थम चुकीं है और शिवराज सिंह चौहान के सामने सिंधिया की चुनौती है! भाजपा के संगठन पदाधिकारियों को यह मंथन करना होगा कि मोदीजी को सफलता केवल उनके हिन्दूत्व के छवि के कारण नहीं बल्कि उनके गुजरात के विकास माडल के लिए भी मिलीं था! वर्तमान में भाजपा के पास अब ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो मोदीजी का स्थान भर सकें!
हालांकि योगी आदित्यनाथ को उनके उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है लेकिन अभी योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपने आप को साबित करना बाकी है! लेकिन जिस तरह से पिछले चार सालों में योगी आदित्यनाथ ने मनमाने तरीके से पार्टी विधायकों और संगठन के इतर जाकर सत्ता का संचालन किया है और समय समय पर पार्टी विधायकों, संगठन पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने अपना विरोध दर्ज कराया है उससे उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित करना आसान नहीं होने वाला है!
भाजपा के सामने आने वाले समय में कांग्रेस और अन्य दलों से आये ऐसे नेताओं से भी दो चार होना है जो मजबूत राजनीतिक पृष्ठभूमि से है और उनके स्वयं के राजनीतिक सपने है! ऐसे में भाजपा के अंदर सामूहिक फैसले का स्थान पर पार्टी आलाकमान की तर्ज पर फैसला किया जाना न केवल संगठन के संसदीय बोर्ड की शक्तियों को कम करने वाला है बल्कि संसदीय बोर्ड को एक रबर स्टांप बनाने के जैसा है! ऐसे तमाम विसंगतियां 2014 के बाद भाजपा के अंदर उभर कर सामने आ तो रही है लेकिन सत्ता के गलियारों में मोदीजी की सफलता के प्रकाश में संगठन और पार्टी का शीर्ष नेतृत्व को नजरअंदाज कर रहा है! उत्तराखंड में रावत का इस्तीफा इस बात का प्रमाण है कि भाजपा को अपने राजनीतिक निर्णयों को लेने की प्रक्रिया पर विशेष समीक्षा की आवश्यकता है!
डा. रविन्द्र प्रताप सिंह, पूर्व शोध सहायक
गिरि विकास अध्ययन संस्थान, लखनऊ