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बेटी अगर समाज के भेडियों से बच गई तो धक्का मुक्की झेल लेगी
संजय कुमार सिंह
रिया चक्रवर्ती के साथ यह धक्का-मुक्की मीडिया वालों की नालायकी तो है ही इससे कानून व्यवस्था की सामान्य स्थिति का भी पता चलता है। महामारी और आपदा की स्थिति में जब सोशल डिसटेंसिंग के लिए आम लोगों से जुर्माना वसूला जा रहा है गरीबों को मास्क लगाने के लिए मजबूर किया जा रहा है तब रिया को बुलाने से पहले यह सब सोचा जाना चाहिए था। पूछताछ और जांच के नाम पर अभियुक्त को बिलावजह परेशान नहीं किया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित करना भी किसी कि जिम्मेदारी होगी ही।
इतवार को अगर रिया को बुलाया गया था तो यह सूचना सार्वजनिक किसने की किसलिए की और क्या इसकी जरूरत थी? क्या यह काम रिया ने किया होगा? लेकिन जब जांच में क्या मिला यह 'लीक' हो जा रहा है तो पूछताछ के लिए बुलाना बाकायदा खबर होगी। आजकल तो सारी परिभाषाएं ही बदल गई हैं। वह भी अघोषित रूप से।
अगर पूछताछ के लिए बुलाया गया था (और भविष्य में कहीं किसी सेलीब्रिटी या आम आदमी को भी बुलाया जाए) तो दफ्तर में प्रवेश का रास्ता हो यह सुनिश्चित करना बुलाने वाले की ही जिम्मेदारी है। कानूनन अपराध साबित नहीं होने तक कोई भी दोषी नहीं होता है और अतिथि देवो भवः की परंपरा वाले देश में घर में कुत्ते होते हैं तो गेट पर लिखा होता है कि यहां कुत्ते हैं। यानी कुत्तों से मेहमान (और चोर की भी) रक्षा की जिम्मेदारी कुत्ता पालने वाले की होती है, कुत्तों की तो बिल्कुल नहीं।
इसलिए रिया को बुलाने वाले को पता होना चाहिए था कि मीडिया की भीड़ लग सकती है और इससे बचने की व्यवस्था बुलाने वाले अधिकारी या उनके कार्यालय को करनी थी। और ऐसा नहीं हुआ, कुछ गलत या ऐसा हुआ जिससे बचा जाना चाहिए था तो उसे देखना भी पूछताछ के लिए बुलाने वाले की जिम्मेदारी है। पर अधिकारियों ने अपनी इस जिम्मेदारी के निर्वाह के लिए और नहीं होने पर प्रायश्चित के लिए कुछ किया उसकी खबर तो नहीं ही है।
उल्टे, कंगना रनावत को सुरक्षा देने की घोषणा की गई है। सुरक्षा किसे देनी है और किसे नहीं यह सरकार तय करे और जनता जाने पर जो अपना दायित्व निभाने में नाकाम रहे उसके खिलाफ कार्रवाई क्या हो और कौन करे?