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
विमल कुमार सिंह
कमल नयन के साथ आ जाने के बाद मुझे बड़ी सुविधा हो गई थी। मैं घर बैठकर Geodesic Dome और लो कॉस्ट हाउसिंग पर नई-नई जानकारी जुटा रहा था जबकि कमल फैक्ट्रियों व दुकानदारों से बातचीत और खरीददारी में लग गए। जिओडेसिक डोम को मैं बहुत महत्व दे रहा था, लेकिन इसके पीछे इसका किफायती होना ही एकमात्र कारण नहीं था। वास्तव में इसे मैं मिशन तिरहुतीपुर का प्रतीक चिन्ह बनाना चाह रहा था। मैं बताना चाह रहा था कि हम व्यवस्था परिवर्तन के मार्ग पर चलने वाले लोग हैं। संदेश देने के इस तरीके को Subliminal Message कहते हैं। विज्ञापन की दुनिया में इसका खूब इस्तेमाल होता है।
व्यवस्था परिवर्तन का लक्ष्य लेकर चलना वास्तव में एक ऐसी प्रक्रिया का पालन करना है, जहां यथास्थिति को हमेशा चुनौती दी जाती है। एक किताब है Zero to One. इसके लेखक Peter Thiel के शब्दों में कहें तो व्यवस्था परिवर्तन की बात करने वाला व्यक्ति Contrarian होता है। वह वर्तमान के साथ-साथ भविष्य को भी कुछ हद तक देख पाता है। इसलिए उसकी सोच बहुसंख्यक आबादी से अलग होती है। चाहे भौतिक अविष्कार हों या फिर कोई विचार क्रांति, दोनों के पीछे Contrarian ही होता है। कांट्रैरियन होने के अपने खतरे हैं। बहुसंख्यक दृष्टि से देखें तो ये लोग अव्यवहारिक या 'पागल' होते हैं। एक अनजान और अनिश्चित चीज के पीछे अपना सबकुछ झोंक देना इनके लिए सहज होता है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि मैं भी इसी रास्ते का पथिक हूं। व्यवस्था परिवर्तन जैसे मुश्किल मार्ग पर ठीक से चलने के लिए जो भी सेक्यूलर तरीके हैं, उनकी मुझे कामचलाऊ समझ है। उन पर यथासंभव मैं अमल भी करता हूं। लेकिन अगर कोई कहे कि मैंने केवल उन्हीं के दम पर यह रास्ता चुना है तो यह सच नहीं है। इन सारे उपायों को मैं पूरक और सहयोगी मानता हूं। वास्तव में इस मार्ग पर चलने का हौसला मुझे उस आस्था और विश्वास से मिला है जो एक सनातनी हिंदू होने के नाते मुझे जन्म से प्राप्त है।
पुनर्जन्म का सिद्धांत एक सनातनी हिंदू को कितना भी बड़ा सपना देखने और उसे हासिल करने का अवसर देता है। उसे मालूम होता है कि यदि किसी कारण से वह इस जन्म में अपना सपना पूरा नहीं कर पाया तो ईश्वर की ओर से उसे फिर मौका मिलेगा और तब तक मिलता रहेगा जब तक कि वह उसे पूरा न कर ले। हालांकि भगवान की ओर से छूट होने के बावजूद एक हिंदू बार-बार जन्म नहीं लेना चाहता। वह मोक्ष चाहता है। उसे भांति-भांति की सामाजिक-धार्मिक व्यवस्थाओं के द्वारा यह सिखाया जाता है कि तुम केवल अपने धर्म (कर्तव्य) का पालन करो, शेष ईश्वर पर छोड़ दो।
ध्यान देने की बात है कि सनातन धर्म की मान्यताएं किसी एक धर्मगुरु या अवतारी पुरुष द्वारा नहीं बनाई गई हैं। हजारों वर्षों की यात्रा में तमाम तरह के अनुभवों को समेट कर जो नीति, नियम और परंपराएं बनीं, उन्हीं का मिला-जुला रूप सनातन धर्म है। आज के शब्दों में कहें तो इसकी प्रकृति ओपेन सोर्स साफ्टवेयर जैसी है। यह पर्याप्त लचीला है। इसमें कोई भी योग्य डेवलपर अपना कोड लिख सकता है। यही नहीं इसमें इतनी गुंजाइश है कि इसे प्रत्येक यूजर अपनी जरूरत के हिसाब से क्सटमाइज भी कर सकता है।
आज के हिंदू धर्म को हम सनातन धर्म का लेटेस्ट वर्जन कह सकते हैं। इसकी रचना अद्भुत है। इसमें मूर्तिपूजक, निराकार के उपासक, आस्तिक, नास्तिक सब शामिल हैं। यहां तक कि वेद को न मानने वालों के लिए भी आज के हिंदू धर्म में जगह है। इसमें आप अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए किसी भी प्रकार की आस्था और विश्वास का पालन कर सकते हैं। मुझे तो आज का हिंदू धर्म आध्यात्मिक दुनिया का मेगा स्टोर लगता है जहां आपके लिए हर प्रकार का दर्शन उपलब्ध है।
आज समाज में आधुनिक शिक्षा प्राप्त एक बड़ा वर्ग है जो धर्म की बात, विशेष रूप से हिंदू धर्म की बात आते ही नाक-भौं सिकोड़ने लगता है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि इनमें से शायद ही किसी ने हिंदू धर्म का गहराई से अध्ययन किया हो। उनकी आलोचना में ईमानदार विश्लेषण कम, दुराग्रह अधिक दिखाई देता है। यह सच है कि हिंदू धर्म की कई बातें विकृत और अप्रासंगिक हो चुकी हैं और उन्हें बदलना चाहिए, लेकिन उन कमियों के कारण पूरी व्यवस्था को ही खारिज कर देना बुद्धिमानी नहीं है। यह तो ऐसा ही है जैसे कोई गंगा नदी के किनारे कीचड़ से सना और ठहरा हुआ पानी देखकर गंगोत्री से गंगासागर तक की पूरी गंगा नदी को ही अशुद्ध घोषित कर दे।
मेरी दृष्टि में हिंदू धर्म एक पुराना महल है, जिसका प्रांगण बहुत विशाल है, उसकी नींव गहरी है, दीवारें मजबूत हैं और छत भी अच्छी हालत में है। हां इसके प्लास्टर कई जगह उखड़ गए हैं और इंटीरियर भी कई जगर खराब हो चुका है। मुझे खुशी है कि विरासत में मुझे यह महल मिला है, कोई दो-तीन कमरों का बिल्डर फ्लैट नहीं जिसमें मैं कुछ भी नया नहीं बना सकता।
मिशन तिरहुतीपुर के अंतर्गत जब मैं साफ्टवेयर पर काम करने और सिस्टम-1 से बात करने की बात करता हूं, तो मेरी दृष्टि हमेशा हिंदू धर्म के उस विशाल मेगा स्टोर की ओर देखती है जहां मान्यताओं, पद्धतियों, रीति-रिवाजों और सामाजिक व्यवस्थाओं का विशाल भंडार पड़ा है। इस स्टोर में मिलने वाला सामान ब्रांडेड नहीं है, उसकी चमक फीकी पड़ गई है, लेकिन उसमें गजब की मजबूती और अनलिमिटेड वेराइटी है। मुझे खुशी है कि मेरे लिए इस स्टोर का हर-एक सामान सहज ही उपलब्ध है। उसमें से मैं मनचाही चीज ले सकता हूं और बिना कीमत या रायल्टी दिए उसका इस्तेमाल भी कर सकता हूं। मेरा भाग्य तो देखिए, मुझे इसके लिए किसी से अनुमति भी नहीं लेनी है।
हिंदू धर्म की पहचान उसमें प्रचलित कुछ ऐसी व्यवस्थाओं से होती है जो बाहर से सबको स्पष्ट दिखाई देती हैं। जाति प्रथा, गोत्र की व्यवस्था, व्रत-उपवास के नियम, कर्मकांड, देवी-देवताओं की लंबी श्रंखला जिसमें ग्राम देवता और कुलदेवता भी आते हैं, ये सब हिंदू धर्म के बाह्य चिन्ह हैं। इसके साथ ऐसी बहुत सी मान्यताएं हैं जो एक व्यक्ति को सोच से हिंदू बनाती हैं। मिशन तिरहुतीपुर की कोशिश होगी कि इन सबका व्यवस्था परिवर्तन के मार्ग में सार्थक उपयोग हो। हम धर्म को निजी आस्था का ही नहीं बल्कि सार्वजनिक जीवन का भी अभिन्न अंग मानते हैं। धर्म और परंपरा से दूर रहते हुए केवल कानून के भरोसे समाज का काम करना हमारी प्रकृति नहीं है।
ऐसा नहीं है कि मिशन तिरहुतीपुर केवल हिंदुओं के लिए ही है। वास्तव में यह सबके लिए है। हमें जब भी मौका मिलेगा, हम दूसरे 'धर्मावलंबियों' के लिए भी काम करेंगे। हम जिस भी 'धर्म' के लोगों के बीच काम करेंगे, हमारी कोशिश होगी कि उनकी सामाजिक-धार्मिक मान्यताओं की जनहित में यथासंभव मदद ली जाए। इसे हम कारगर संवाद की कुंजी मानते हैं।
तथापि, धार्मिक प्रतीकों और मान्यताओं की मदद लेने में अभी देर थी। फिलहाल तो हम दिल्ली में अपने जिओडेसिक डोम के लिए आवश्यक खरीददारी में लगे थे जो 22 नवंबर को जाकर पूरी हुई। इसके बाद मेरा मन जल्दी से जल्दी गांव पहुंचने और वहां अपने प्रयोग को आकार देने के लिए अधीर हो उठा।
इस डायरी में फिलहाल इतना ही। अगली बार हम चर्चा करेंगे तकनीक के एक साइड इफेक्ट की जिसके हम खुद शिकार हो गए। मिलते हैं इसी दिन इसी समय, रविवार 12 बजे। तब तक के लिए नमस्कार।