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गोधरा कांड क्यों नहीं थी मॉब लिंचिंग? कौन देगा जबाब!
मॉब लिंचिंग निन्दनीय घटना है और इसे हर हाल में रोका जाना चाहिए। पंजाब में लगातार घटी मॉब लिंचिंग की घटनाओं के बीच राहुल गांधी का यह बयान हास्यास्पद है कि 2014 से पहले 'लिंचिंग' सुनने को नहीं मिलता था। आश्चर्य है कि राहुल गांधी ने पंजाब में लिंचिंग की घटनाओं पर चुप रहने का फैसला किया और लिंचिंग को लेकर ऐसी बहस छेड़ी है जिसमें कोशिश बीजेपी को घेरने की है लेकिन फंसते वे खुद नज़र आ रहे हैं।
मॉब लिंचिंग कब नहीं हुई? कभी डायन कहकर, कभी चोर समझकर, कभी डकैत पकड़कर, कभी धर्मांतरण के नाम पर, कभी ईश निन्दा के बहाने, कभी जातीय गरूर के कारण, कभी सांप्रदायिकता की वजह से- लिंचिंग समय-समय पर हर कालखंड में होती रही है। मोहब्बत करने वालों को भी मॉब लिंचिंग का सामना करना पड़ा है। ऑनर किलिंग या हॉरर किलिंग भी लिंचिंग का उदाहरण है जो समाज के हर हिस्से में व्याप्त रहा है।
गोधरा कांड क्यों नहीं थी मॉब लिंचिंग?
क्या कभी राहुल गांधी गोधरा में ट्रेन की बॉगी में आग लगाकर राम सेवकों को जिन्दा जलाने देने की घटना को लिंचिंग कहने की हिम्मत करेंगे? क्या वे ऐसी हिम्मत इसलिए नहीं दिखलाएंगे कि हिन्दुओं की लिंचिंग से वे बेफिक्र हैं या फिर लिंचिंग करने वाली मॉब से उन्हें हमदर्दी है?
1984 में सिख विरोधी दंगा जो वास्तव में एकतरफा कत्लेआम था। उस घटना से बड़ी मॉब लिंचिंग की घटना भी हो सकती है क्या? इस घटना के बाद राहुल के पिता और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जो बयान दिया था वह कितना शर्मनाक था! - "जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है।" क्या कभी राहुल गांधी उस बयान के लिए माफी मांगेंगे?
बेलछी नरसंहार क्यों भूल गये राहुल गांधी?
जातीय या सांप्रदायिक दंगों में बहुत सारी घटनाएं मॉब लिंचिंग का उदाहरण है। याद है बिहार का वह बेलछी कांड जिसके बाद इंदिरा गांधी हाथी पर सवार होकर वहां पहुंची थीं। तब देश में जनता पार्टी की सरकार थी। 11 दलितों को जो खेत मजदूर थे, मौत के घाट उतार डाला गया था। वह भी मॉब लिंचिंग थी। उस घटना में आवाज़ बुलंद कर इंदिरा गांधी ने सत्ता में वापसी की थी।
कांग्रेस नेताओं की भी हुई थी मॉब लिंचिंग!
छत्तीसगढ़ में खुद कांग्रेस के नेताओं की सामूहिक हत्या 2013 में कर दी गयी थी जिसमें पूर्व विदेश मंत्री विद्याचरण शुक्ल समेत 29 कांग्रेस नेता मारे गये थे। क्या यह मॉब लिंचिंग नहीं थी। तब प्रदेश में बीजेपी और केंद्र में यूपीए की सरकार थी।
देश के अलग-अलग हिस्सों में दलितों के घरों को जला डालना, आदिवासियों पर हमले, पूर्वोत्तर में जातीय हमले, जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाओं के बीच सामूहिक हत्या, पंजाब में आतंकवाद के दौर में बिहारी मजदूरों को इकट्ठा कर गोली मार देने की घटनाएं सभी मॉब लिंचिंग ही रही हैं। इस दौरान सत्ता में रहने वाली पार्टी कांग्रेस ही थी। फिर ऐसा क्यों है कि राहुल गांधी को 2014 के बाद की ही मॉब लिंचिंग की घटनाएं याद रह जाती हैं?
मॉब लिंचिंग को लेकर बदलनी होगी एकतरफा सोच
बीजेपी सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करना विपक्ष का अधिकार है। मगर, घटनाओं को एक आंख से देखने का फायदा विपक्ष को नहीं मिल सकता। मॉब लिंचिंग के लिए केवल बीजेपी को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश में राहुल गांधी कभी सफल नहीं हो सकते। वे एक उंगली दिखाएंगे तो बाकी उंगलियां उनकी ओर ही उठ जाएंगी। यही वजह है कि पूरा देश राहुल गांधी के बयान के बाद उनसे मॉब लिंचिंग का इतिहास पूछ भी रहा है और बता भी रहा है।
सेलेक्टिव सियासत इस देश की गंभीर समस्या बन चुकी है। सुविधानुसार घटनाओं पर चुप्पी और मुखर होने से मॉब लिंचिंग जैसे मुद्दे पर भी बहस बिखर जाती है। मॉब लिंचिंग के खिलाफ एकजुट प्रयास को इससे चोट पहुंचती है। मॉब लिंचिंग के खिलाफ पूरे देश को एकजुट होना चाहिए। यह सिर्फ बीजेपी या कांग्रेस या किसी अन्य पार्टी की सरकार का मसला नहीं है। यह देश की समस्या है और समाज को कलंकित करने वाली घटनाएं हैं। इससे पूरी दुनिया में भारत की गलत तस्वीर बनती है। क्या हमारी राजनीति गंभीरता से मॉब लिंचिंग की समस्या पर विचार कर पाएगा? क्या राहुल गांधी और दूसरे नेता भी अपने रुख पर पुनर्विचार करने की जरूरत को महसूस करेंगे?