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केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश शासन की तारीफ करते हुए कहा है कि राज्य अब बीमारू नहीं है। आज यह खबर और शीर्षक हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर है। आज नवोदय टाइम्स और द हिन्दू में भी यह खबर पहले पन्ने पर है। हालांकि द हिन्दू में शीर्षक में नहीं है। पर नवोदय टाइम्स का शीर्षक वैसे ही जैसे कोई प्रचारक श्रेय लेना और अपनी सरकार को देना चाहेगा। इससे पहले ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट में 10 फरवरी 2023 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था, उत्तर प्रदेश को पहले बीमारू राज्य कहा जाता था, अब सुशासन है पहचान।
नवभारत टाइम्स ने इस शीर्षक को पीएम मोदी का विपक्ष पर बड़ा हमला कहा था। तब मैंने लिखा था, नभाटा का शीर्षक और तथ्य। बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान - तीन राज्यों के नाम के अंग्रेजी के पहले दो अक्षरों और उत्तर प्रदेश के एक यानी यू को मिलाकर अंग्रेजी में बिमारू या बीमारू बनता है। यह अंग्रेजी में ही लिखा जाता रहा है। हिन्दी में इसका प्रयोग याद भी नहीं है।
भले ही, यह अंग्रेजी का शब्द नहीं है और इसका हिन्दी के बीमार से भी कोई संबंध नहीं है। इसमें बिहार सबसे पहले आता है तो इसलिए कि बी अंग्रेजी वर्णमाला क्रम में पहले आता है और उत्तर प्रदेश अंत में क्योंकि यू सबसे बाद में आता है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि चार राज्यों को जानबूझकर इस क्रम में रखा गया है कि बिमारू या बीमारू ही बने। राज्य भले बीमार न हों पर वहां बीमारों की हालत पर पहले ही काफी कुछ कहा जा चुका है और ऐसे में कोई कारण नहीं है कि राज्य को बीमार न माना जाये। पर प्रचारकों के दावे का क्या कर सकते हैं।
बीमारू राज्यों की जो हालत है वह तो है ही पर इससे अलग गुजरात से लोग अवैध ढंग से पलायन करते हैं। ऐसे ही एक परिवार की मौत पर मैंने 29 जनवरी 2022 को लिखा था, तीन राज्यों के नाम के दो अक्षर और उत्तर प्रदेश का एक ही मिलकर बिमारू बनता है - पर प्रधान सेवक कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश को 'बीमारू' कहा जाता था। यह 2000 से पहले की बात है और भाजपा की पिछली सरकार ने जब इन राज्यों से झारखंड, उत्तरांचल और छत्तीसगढ़ को अलग कर दिया तो बिमारू कहने का प्रचलन बंद हो गया। हालांकि चारों राज्य तो वैसे ही हैं। शायद बीमारू में अलग हिस्से को भी शामल करना उचित रहता और तब नाम बिमारू नहीं कुछ और होता।
यह अलग बात है कि चार में से तीन राज्यों के छोटे होने और कमाई वाले हिस्से के अलग होने से 'बीमारी' बढ़ी ही होगी पर पुराना संदर्भ नहीं रह गया तो बिमारू कहने का प्रचलन भी खत्म हो गया। इसका भाजपा शासन या डबल इंजन से कोई संबंध नहीं है और ना इस बिमारू का संबंध बीमार या बीमारी से है। पर प्रधानसेवक हैं जो बोल दें वह पत्थर की लकीर। व्हाट्सऐप्प यूनिवर्सिटी का पाठ बन जाएगा सो अलग।
संभव है, अंग्रेजी पढ़ने-लिखने-बोलने वाले औपनिवेशिक सोच के लोग इसके जरिए यह कहना चाहते हों कि हिन्दी भाषी या गोबरपट्टी के ये चार राज्य एक साथ मिलकर हिन्दी में बीमार हो जाएंगे या देश को बीमार बनाएंगे तो उसपर विचार करने की जरूरत है उसमें से उत्तर प्रदेश को अलग निकालकर सिर्फ उसकी प्रशंसा का कोई मतलब नहीं है।
अब नभाटा से कोई पूछे कि पिचकारी के इस हमले से विपक्ष का क्या बिगड़ना है और शीर्षक अगर यह कुंठा निकालने के लिए है तो इससे बीमारी का स्तर ही पता चलता है। पर वह सब फिर कभी। अभी निवेशक सम्मेलन में निवेश आकर्षित करने के लिए किए गए कुछ वायदे शीर्षक के रूप में पढ़िये
1.भारत विभिन्न क्षेत्रों में निवेश के लिए बेहतरीन अवसर प्रदान करता है
2. पीएम मोदी बोले- 'हर कोई यूपी से अपनी उम्मीद छोड़ चुका था, लेकिन यूपी ने पहचान बदल ली है'। इससे पहले मध्य प्रदेश में ऐसा ही सम्मेलन हुआ था तब उन्होंने कहा था,
3. सदी के भीषण संकट के वक्त भी नहीं छोड़ी सुधारों की राह, इन्वेस्टर्स की पसंद बना भारत: पीएम मोदी।
कहने की जरूरत नहीं है कि निवेशकों को आकर्षित करने के लिए यह दाना डालना था और कितना प्रभावी है यह आप तय कीजिए। मेरा मानना है कि भारत में निवेश का मामला इतना ही अच्छा है तो क्यों नहीं ठोस उदाहरण दिया जाता है। जैसा कि आप जानते हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में अडानी समूह की संपत्ति में भारी वृद्धि हुई और वे दुनिया के दूसरे नंबर के उद्योगपति बन गए थे। हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद सरकार ने कहा कि उसका अडानी से कोई संबंध नहीं है, यह प्रचार भी चल ही रहा है कि हिन्डनबर्ग पर कितने आरोप हैं और वह पहले भी ऐसा कर चुका है और उसका यही काम है आदि आदि। कहने का मतलब कि यह मोदी के मित्र के बहाने भारत और उसकी सफलता पर हमला है आदि आदि।
अगर ऐसा है और अडानी की दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि में सरकार का योगदान और उनका काला-सफेद कारनामा नहीं है तो सरकार को कहना चाहिए कि यह देश के अच्छे कारोबारी माहौल के कारण संभव हुआ और विदेशी निवेशक भी ऐसा लाभ कमा सकते हैं और बुरा हो हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट का – अब वह ऐसा नहीं होने देगी और अब अगर कभी ऐसी कोई रिपोर्ट आई तो उसका हश्र बीबीसी की फिल्म जैसा किया जाएगा।
मुझे लगता है कि यह आश्वासन बहुत कारगर होता और कौन नहीं चाहेगा कि वह बीसवें या तीसवें से एक नंबर पर पहुंचे या पचासवें से 10वें पहुंच जाए। ऐसी व्यवस्था, स्थिति का संरक्षण का प्रचार करके देश में अगर कुछ निवेश हो जाए तो देश का भला ही होना है। प्रधानमंत्री न जाने क्यों देश को छोड़कर उत्तर प्रदेश और बिमारू की बात करने लगे जिसे 20 साल पहले ही लोग भूल गए थे।
संयुक्त बिहार झारखंड पिछड़ा था। बीमारू था। उससे झारखंड अलग कर दिया गया। आवश्यक विकास नहीं हुआ तो पलायन हुआ। पढ़े लिखे हों या अनपढ़, सॉफ्टवेयर इंजीनियर या कृषि मजदूर हर तरह के बिहारी दुनिया भर में फैले हुए हैं। पर गुजरात तो विकसित है। विकास का गुजरात मॉडल लागू हुआ है। पर ये अवैध रूप से लोग पलायन क्यों करते हैं और अभी भी क्यों कर रहे हैं। मुझे अक्सर लगता है कि बिहार में संभावनाएं नहीं थीं तो लोगों को दुनिया भर में फैलना पड़ा। देशभर में संभावनाएं कम होंगी तो आने वाली पीढ़ी कहां जाएगी। क्या करेगी? भाजपा तो सबसे ज्यादा पैसे वाली पार्टी बन गई। मैंने पूछा, सात राष्ट्रीय दलों की कुल संपत्ति में भाजपा की हिस्सेदारी 69.37, बसपा की 9.99 और कांग्रेस की 8.42 फीसदी है -भ्रष्ट और वंशवादी कौन? एक मित्र का कहना है, कांग्रेस ज्यादा भ्रष्ट है उन्होंने पैसे पार्टी फ़ंड मे भी नहीं दिए, सीधे देश से बाहर भेज दिये! इसपर मैंने पूछा कि फिर भी मोदी सरकार सात (अब 10) साल में कांग्रेस के खिलाफ कोई मामला नहीं बना पाई। यह है प्रचार का असर। बाकी जो है सो हईये है। जय श्री राम कहिए। मस्त रहिये।