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पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का 82 साल की उम्र में निधन
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पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का ८२ वर्ष की उम्र में निधन हो गया. श्री जसवंत सिंह पिछले कई सालों से कोमा में थे. उनको ब्रेन हेमरेज होने के बाद उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता चला गया. उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक जाहिर करते हुए कहा है कि उनका जाना एक राष्ट्रीय क्षति है. वो एक सफल सैनिक और सफल राजनैतिक हस्ती रहे. जहाँ सेना में हमेशा अच्छा कार्य किया तो अटल बिहारी सरकार में बड़े जिम्मेदार पोर्ट फोलियो का मंत्रालय संभाले.
जब उनके बेटे मानवेंद्र ने लिखी थी एक मार्मिक चिठ्ठी
मेरे पिता जसंवत सिंह आमतौर पर खेल की खबरें नहीं पढ़ते हैं, इस नाते मुझे घोर आश्चर्य हुआ जब उन्होंने 2013 में माइकल शूमाकर के एक्सीडेंट के बारे में पूछा. इससे भी ज्यादा हैरानी की बात रही कि आठ महीने बाद उन्हें भी उसी तरह सिर के गंभीर चोट से गुजरना पड़ा. मैने शूमाकर के बारे में हर खबर बढ़ी, पता चला कि कैसे उनके परिवार ने घायल होने के दौरान उनको लेकर काफी गोपनीयता बरती. अब जब मेरे पिता उसी हालत में हैं, तब मुझे उस गोपनीयता का मतलब समझ में आ रहा है. केवल नजदीकी लोग ही मुझे और इस गोपनीयता को समझ सकते हैं. पिता के करीबी दोस्त आते हैं, हालचाल पूछते हैं मगर वे मिल नहीं सकते. इकलौते दोस्त जो नियमित आते हैं, वो आडवाणी हैं. वह जब आते हैं हमेशा देखकर उनकी आंखें नम हो जाती हैं. कोई उनसे बात नहीं कर सकता, क्योंकि वह अटल बिहारी बाजपेयी की स्थिति में आ गए हैं.
मेरे पिताजी और अटल बिहारी वाजपेयी के बीच अट्टू रिश्ता रहा, यह रिश्ता हर तरह की सीमाओं से परे था. पिता को अटल जी का हनुमान का तमगा मिला था. वह जनता के प्रति जिम्मेदार नेता था. एक उदाहरण है. 1999 में विमान के अपहरण के बाद हर रात एक महिला उन्हें फोन कर अनाप-शनाप बोलती थी और आत्महत्या करने की धमकी देती थी. केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद वह खुद घर के नंबर पर आई कॉल रिसीव करते थे. वह महिला अपहृत विमान के क्रू मेंबर की पत्नी थी। वह फोन पर कहती थी कि आप लोग मेरे पति को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं. बाद में कंधार ले जाए गए विमान को जब 31 दिसंबर को सकुशल वापस लाया गया तब महिला अपने पति के साथ अगले दिन एक जनवरी को आई और उसने फूलों का गुलदस्ता देकर माफी मांगी.
मेरे पिता बाद के दिनों में काफी प्राइवेसी बरतने लगे, जब जिन्ना विवादके तूफान में लालकृष्ण आडवाणी पड़े. जनवरी 2006 के अंत में मेरे पिता 86 तीर्थयात्रियों को बलूचिस्तान के लास बेला जिले के हिंगलाज माता का दर्शन कराने ले गए, कोई भारतीय 1947 से यहां नहीं गया था. अपने राजनीतिक करियर के आखिरी समय में वह बाड़मेर का प्रतिनिधित्व करना चाहते थे मगर वह नहीं कर सके, जिसने उन्हें कष्ट दिया. हालांकि अब उनकी मदद के लिए कोई संजीवनी नहीं है, अब अटलजी के हनुमान उड़ नहीं सकते.