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कविता : रोज टूटते हैं कुछ सपने, नहीं मिलते कोई अपने

कविता : रोज टूटते हैं कुछ सपने, नहीं मिलते कोई अपने

शहर..रोज टूटते हैं कुछ सपनेनहीं मिलते कोई अपनेरिश्तों में घुल रहा जहरशायद इसी को कहते हैं शहरयहाँ दुःख और दर्द की हैं ऐसी कितनी रातें जिनकी होती नहीं पहर शायद इसी को कहते हैं शहर जुड़ते हैं सब संबंध...

20 Sept 2021 8:02 PM IST