आखिरकार एयर इंडिया टाटा के पास ही वापस चली गयी जेआरडी टाटा ने 1932 में टाटा एयरलाइंस लॉन्च की थी जिसका नाम 1946 में बदल कर के एयर इंडिया कर दिया गया और 1953 में सरकार ने इसको टाटा से खरीद लिया था। साल 2000 तक एयर इंडिया मुनाफे में चलती रही। 2001 में कंपनी को 57 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। सबसे बड़ी गलती UPA सरकार ने यह की कि उसने 2007 में एयर इंडिया में इंडियन एयरलाइंस का विलय कर दिया इस विलय के वक्त संयुक्त घाटा 770 करोड़ रुपये था, जो विलय के बाद बढ़कर के 7200 करोड़ रुपये हो गया।
एयर इंडिया ने घाटे की भरपाई के लिए अपने तीन एयरबस 300 और एक बोइंग 747-300 को 2009 में बेच दिया था। लेकिन उसे ऑपरेशन के लिए लगातार कर्ज लेना पड़ा
कर्ज का बोझ बढ़ता ही चला गया
सरकार ने 2018 में एअर इंडिया की 76 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने और 5.1 अरब डॉलर कर्ज उतारने की कोशिश की थी लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हुआ था, उस वक्त एयर इंडिया के खरीददार नहीं मिलने पर मोदी सरकार ने कहा कि पूरे हिस्सेदारी बेचने को वह तैयार है, बस खरीददार कर्ज का बोझ भी उठा ले।
एअर इंडिया पर 31 मार्च 2019 तक कुल 60,074 करोड़ रुपए का कर्ज था। एयर इंडिया के खरीदारों को लुभाने के लिए मोदी सरकार कंपनी पर आधे से अधिक कर्ज को माफ कर रही है, मूल योजना यह बनाई गई थी जो भी एअर इंडिया को खरीदेगा, उसे इसमें से 23,286.5 करोड़ रुपए का कर्ज का बोझ उठाना होगा।
टाटा की बोली आज मंजूर की गई है अभी देखते हैं कि टाटा ने यह डील किन शर्तो पर की है ? 2018 में 118 एयरक्राफ्ट के साथ एयर इंडिया का बेड़ा इंडिगो के बाद दूसरे नंबर पर था, इसलिए एविएशन इंडस्ट्री के लिए फिलहाल यह राहत भरी खबर है