गिरीश मालवीय
हमारा बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया हमसे लगातार झूठ बोल रहा है ओर यही बात देश के दूसरे सबसे बड़े बैंक 'बैंक ऑफ बड़ौदा के लिए भी लागू होती है? ये दोनों देश के सबसे बड़े बैंक अपने खाताधारकों को झूठ बोलते हुए आए हैं ओर ऐसे ही झूठ की वजह से ही भारतीय बैंकिंग प्रणाली गहरे संकट में है.
जब भारतीय स्टेट बैंक ने 2018-19 के आँकड़े जारी किए उसमे कहा गया था कि बैंक को साल भर में 862 करोड़ रुपए का शुद्ध मुनाफा हुआ है लेकिन जब रिजर्व बैंक ने एनपीए के साथ उसका एडजस्टमेंट किया तो पता चला कि बैंक को तो भारी नुकसान हुआ है।
दरअसल 2018-19 में स्टेट बैंक ने 65,895 करोड़ रुपए का एनपीए दिखाया था,लेकिन जब उसमे छिपाया गया NPA जोड़ा तो पाया गया कि बैंक का नेट एनपीए 77,827 है। यानी 11,932 करोड़ रुपए का अंतर। ऐसे में भारतीय स्टेट बैंक को अपनी बैलेंस शीट में 12036 करोड़ रुपए की प्रोविजनिंग करनी पड़ी, जिसकी वजह से बैंक का मुनाफा घाटे में बदल गया। पहले बैंक का शुद्ध मुनाफा 862 करोड़ रुपए था, जो बैलेंस शीट में एडजस्टमेंट करने के बाद 6,968 करोड़ रुपए के घाटे में बदल गया।
ठीक यही केस बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ भी है उसने भी वित्त वर्ष 2019 में फंसे कर्ज में लगभग 5,250 करोड़ रुपये अंतर दर्ज किया जब भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा आकलन किया गया तो पता चला कि वित्त वर्ष 2019 के लिए एनपीए तो 75,174 करोड़ रुपये है लेकिन जब बीओबी ने बीएसई को जानकारी दी थी तो कहा था कि बैंक ने वर्ष 2018-19 के लिए 69,924 करोड़ रुपये का जीएनपीए दर्ज किया था। इस तरह से आरबीआई और बीओबी के एनपीए आकलन में 5,250 करोड़ रुपये का अंतर पाया गया यानी बैंक ऑफ बड़ौदा भी झूठ बोलता रहा.
यानी देश के दो सबसे बड़े सरकारी बैंक NPA को लेकर झूठ बोलते हुए रँगे हाथों पकड़े गए है अब कमाल यह है कि SBI के रजनीश कुमार यस बैंक को बचाने चले है जो अपने बढ़ते NPA की ही वजह से लगभग डूब चुका है .
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक ने पिछले वित्त वर्ष के अपने फंसे कर्ज के बदलने की जानकारी दी है जिससे वर्ष 2018-19 में उनका शुद्ध घाटा और बढ़ गया। यानी NPA का संकट बहुत बड़ा है.
नए आंकड़ो की रोशनी में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पिछले तीन सालो पर नजर डालिए तो आप पाएंगे कि बैंक को 2017-18 में 6,547 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था, 2016-17 बैंक को 1805 करोड़ रुपए का घाटा हुआ ओर 2018-19 में भी SBI 6,968 करोड़ रुपए के घाटे में है.
खाताधारकों को यह पूछने का अधिकार है कि नही कि जब SBI खुद ही पिछले तीन साल से घाटे में चल रहा है..... जब चालू वित्तवर्ष में सितंबर तक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का एनपीए रिकॉर्ड 1, लाख 84 हजार ,682 करोड़ रुपए पर पहुंच चुका है। यानी सिर्फ 6 महीनों में पिछले साल के घोषित NPA से यह दोगुने से भी कही अधिक पुहंच गया है........तो वह किस मुँह से यस बैंक में निवेश की बात कर रहा है?
हिन्दी मे एक कहावत है जो प्रगतिशील मित्रों को पसंद नहीं आती 'अंधा अंधा ठेलिया दोऊ कूप पड़न्त'. NPA के बोझ से दबा SBI, NPA से डूबे यस बैंक को बचाने की जुगत कर रहा है SBI भी अंधे कुँए में गिर जाएगा थोड़ा कहा है अधिक समझिएगा..