Air India के लिए सरकार को मिली फाइनल पेमेंट, आज से Tata की हो गई एयरलाइन, जानिए- 8 बड़ी बातें
टाटा समूह ने गुरुवार को सरकार से आधिकारिक तौर पर एयर इंडिया का अधिग्रहण कर लिया.
नई दिल्ली: टाटा समूह (Tata Group) ने गुरुवार को सरकार से आधिकारिक तौर पर एयर इंडिया (Air India) का अधिग्रहण कर लिया. टाटा संस (Tata Sons) के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन (N Chandrasekaran) ने अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी होने पर खुशी जताते हुए कहा कि टाटा समूह में एयर इंडिया को वापस पाकर हम काफी रोमांचित हैं. हम इसे विश्वस्तरीय एयरलाइन बनाने को प्रतिबद्ध हैं. चंद्रशेखरन ने आधिकारिक हैंडओवर से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की. निवेश और लोक संपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) के सचिव तुहीन कांता पांडे ने कहा, "एयर इंडिया का रणनीतिक विनिवेश लेनदेन आज सफलतापूर्वक संपन्न हुआ, जिसमें एयर इंडिया के 100 प्रतिशत शेयर प्रबंधन नियंत्रण के साथ मैसर्स टैलेस प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित किए गए. स्ट्रैटेजिक पार्टनर के नेतृत्व में एक नया बोर्ड एयर इंडिया का प्रभार लेता है."
सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में एयर इंडिया की बिक्री के लिए टाटा समूह के साथ 18,000 करोड़ रुपये में शेयर खरीद समझौता किया था. सौदे में एयर इंडिया एक्सप्रेस और उसकी इकाई एआईएसएटीएस की बिक्री भी शामिल है.
हस्तांतरण प्रक्रिया से पहले, 24 जनवरी को निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) ने एयर इंडिया लिमिटेड और एआई एसेट्स होल्डिंग लिमिटेड (एआईएएचएल) द्वारा और उनके बीच एयरलाइन की संपत्तियों के हस्तांतरण के लिए किए गए समझौते की रूपरेखा को अधिसूचित किया. एआईएएचएल की स्थापना 2019 में सरकार ने एयर इंडिया समूह की ऋण और गैर-प्रमुख संपत्ति रखने के लिए की थी.
एयर इंडिया की चार अनुषंगी - एयर इंडिया एयर ट्रांसपोर्ट सर्विसेस लिमिटेड, एयरलाइन अलाइड सर्विसेस लिमिटेड, एयर इंडिया इंजीनियरिंग सर्विसेस लिमिटेड और होटल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के साथ-साथ गैर प्रमुख संपत्तियों आदि को विशेष प्रयोजन इकाई में स्थानांतरित किया गया था.
बता दें कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के नेतृत्व में ऋणदाताओं का एक संघ घाटे में चल रही विमानन कंपनी एयर इंडिया के सुचारू परिचालन के लिए टाटा समूह को ऋण प्रदान करने पर सहमत हो गया है. सूत्रों ने बताया कि एसबीआई के नेतृत्व वाला कंसोर्टियम एयर इंडिया की आवश्यकताओं के अनुसार निश्चित अवधि और कार्यशील पूंजी ऋण दोनों देने पर सहमत हो गया है. सूत्रों के अनुसार पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया सहित सभी बड़े ऋणदाता कंसोर्टियम का हिस्सा हैं.
'महाराजा' से जुड़ीं कई दिलचस्प कहानियां हैं.
1. Air India का मालिकाना हक मिलने के बाद नए मालिक को इससे जुड़े नाम और लोगो (LOGO) को अभी 5 साल तक संभाल कर रखना होगा. टाटा ग्रुप ने 18000 करोड़ रुपये की सबसे ज्यादा बोली लगाकर एअर इंडिया को अपने नाम किया है.
2. एअर इंडिया को सबसे पहले जेआरडी टाटा (JRD Tata) ने 1932 में टाटा एअरलाइंस के नाम से लॉन्च किया था. 1946 में इसका नाम बदल कर एअर इंडिया कर दिया गया. उसके बाद साल 1954 में सरकार ने टाटा से एअर इंडिया को खरीदकर उसका राष्ट्रीकरण कर दिया.
3. आजादी के वक्त देश में कुल 9 छोटी-बड़ी विमानन कंपनियां थीं. साल 1954 में इसका राष्ट्रीकरण कर दिया गया. सभी कंपनियों को मिलाकर दो कंपनियां बनाई गईं, घरेलू सेवा के लिए इंडियन एयरलाइंस और विदेश के लिए एअर इंडिया. वर्ष 1953 तक एअर इंडिया का स्वामित्व टाटा समूह के पास था और इसके चेयरमैन जेआरडी टाटा थे.
4. मोरारजी देसाई सरकार ने अचानक 1 फरवरी 1978 को एअर इंडिया की नींव रखने वाले तत्कालीन चेयरमैन जेआरडी टाटा को पद से हटने का आदेश दे दिया था. इस आदेश के साथ ही सरकार ने जेआरडी टाटा को इंडियन एयरलाइंस और एअर इंडिया के बोर्ड से हटा दिया था. उस समय इंदिया गांधी सत्ता से बाहर थीं.
5. जब मोरारजी देसाई सरकार ने जेआरडी टाटा चेयरमैन पद से हटाया तो इस फैसले पर इंदिरा गांधी ने दुख जताया था और जेआरडी टाटा को खत लिखकर एअर इंडिया में उनकी भूमिका की खूब तारीफ की थी, आप एअर इंडिया के संस्थापक और पालक थे. इंदिरा गांधी के खत को पढ़कर जेआरडी टाटा भावुक हो गए थे. फिर 1980 में जब इंदिरा गांधी सत्ता में लौटीं तो उन्होंने जेआरडी टाटा को इंडियन एयरलाइंस और एअर इंडिया के बोर्ड में शामिल कर दिया. लेकिन चेयरमैन का पद जेआरडी टाटा को नहीं मिल सका.
6. साल 1954 को विमानन कंपनी का राष्ट्रीयकरण किया गया था. तब से लेकर साल 2000 तक यह सरकारी एयरलाइन कंपनी मुनाफे में थी. पहली बार 2001 में कंपनी को 57 करोड़ रुपये का घाटा हुआ. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि 2005 में 111 विमानों की खरीद का फैसला एअर इंडिया की आर्थिक संकट की सबसे बड़ी वजह थी. इस सौदे पर 70 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे. कहा जाता है कि इतने बड़े सौदे से पहले विचार नहीं किया गया कि ये कंपनी के लिए व्यावहारिक होगा या नहीं. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भी इस सौदे पर सवाल उठाए थे. हालांकि सौदे को लेकर खूब राजनीति हुई थी.
7. साल 2007 में एअर इंडिया में इंडियन एयरलाइंस का विलय कर दिया गया. विलय के वक्त संयुक्त घाटा 771 करोड़ रुपये का था. विलय से पहले इंडियन एयरलाइंस महज 230 करोड़ रुपये के घाटे में थी, उम्मीद की जा रही थी कि जल्द फायदे में आ जाएगी. जबकि एअर इंडिया कंपनी विलय से पूर्व करीब 541 करोड़ रुपये नुकसान में थी. ये वित्त वर्ष 2006-07 की रिपोर्ट थी. विलय के बाद कंपनी कर्ज में और डूबती गई.
8. एअर इंडिया प्रबंधन का ढुलमुल रवैया भी बर्बादी का एक कारण रहा. एअर इंडिया की फ्लाइट्स अक्सर लेट लतीफी का शिकार होती रहीं. कर्मचारियों में हड़ताल आम बात हो गई. जिस वजह से सेवाएं प्रभावित हुईं. कुप्रबंधन और सरकारी सेवा में तत्परता की वजह से एयर इंडिया का बेजा इस्तेमाल हुआ. साल 2018 एअर इंडिया के पास सिर्फ 13.3 प्रतिशत मार्केट शेयर था. एअर इंडिया के विमानों को उन रूटों को लगातार रखा गया, जिसपर प्राइवेट कंपनियां ने सेवा देने से इनकार कर दिया.