दुनिया में मची हाहाकार तब मोदी सरकार के लिए सबसे अच्छी खबर क्यों?
वहां की इकोनॉमी गड़बड़ होने का मतलब है इस रोजगार पर संकट आना. इसके अलावा भारत के निर्यात का बड़ा हिस्सा खाड़ी देशों को जाता है, यह भी प्रभावित होने की आशंका है.
कोरोना वायरस की वजह से दुनियाभर की इकोनॉमी रेंगती हुई नजर आ रही है. कच्चे तेल के भाव भी अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं. बीते सोमवार को अमेरिका के वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) मार्केट में कच्चे तेल का भाव माइनस में चला गया. ये WTI मार्केट के इतिहास में सबसे बड़ी गिरावट है.
भारत पर क्या होगा असर?
सीधे तौर से अमेरिकी बाजार में कच्चे तेल के भाव में गिरावट का भारत पर फर्क नहीं पड़ने वाला है. दरअसल, भारत जो तेल आयात करता है उसमें करीब 80 फीसदी हिस्सा तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक (ऑर्गेनाइजेन ऑफ द पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज) का होता है. यहां आपको बता दें कि ओपेक देशों की अगुवाई सउदी अरब करता है. इसमें अधिकतर खाड़ी देशों शामिल हैं. यानी जब खाड़ी देशों में हलचल मचती है, तब भारत प्रभावित होता है.
ओपेक देशों पर असर नहीं है?
कच्चे तेल की डिमांड कम होने की वजह से ओपेक देश भी प्रभावित हुए हैं. इन देशों के पास तेल का भंडार पड़ा हुआ है. ऐसे में कच्चे तेल के भाव अपने रिकॉर्ड निचले स्तर पर चल रहे हैं. इस हालात से निपटने के लिए बीते दिनों ओपेक और अन्य तेल उत्पादक देश (मुख्यतः रूस और अमेरिका) ने तय किया है कि तेल के उत्पादन में 10 फीसदी की कटौती की जाएगी.
भारत के लिए राहत की बात!
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का सस्ता होना, भारत के लिए कुछ मोर्चों पर अच्छी खबर मानी जा सकती है. केडिया कमोडिटी के प्रमुख अजय केडिया के मुताबिक हम भंडारण क्षमता बढ़ाकर इस मौके का फायदा उठा सकते हैं. इसके अलावा सरकार एक बार फिर टैक्स बढ़ा, तेल से कमाई कर राजकोषीय घाटे को कम कर सकती है.
हालांकि, आम जनता के लिहाज से ये थोड़ा सही नहीं है. लेकिन सरकार को अभी राजकोषीय घाटे को कम करने की जरूरत भी है. बता दें कि फिच रेटिंग एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि भारत का राजकोषीय घाटा 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.2 फीसदी तक जा सकता है जबकि सरकार ने इसके 3.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया है. इसके अलावा भारत के व्यय पर भी काबू किया जा सकेगा. इस सुधार से देश की इकोनॉमी पटरी पर आ सकती है.
नुकसान का भी जोखिम
कच्चे तेल के भाव कम होने से नुकसान का भी जोखिम बढ़ जाता है. एनर्जी एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा के मुताबिक खाड़ी देशों की इकोनॉमी पूरी तरह से तेल पर निर्भर है. वहां करीब 80 लाख भारतीय काम करते हैं जो हर साल करीब 50 अरब डॉलर की रकम भारत भेजते हैं. वहां की इकोनॉमी गड़बड़ होने का मतलब है इस रोजगार पर संकट आना. इसके अलावा भारत के निर्यात का बड़ा हिस्सा खाड़ी देशों को जाता है, यह भी प्रभावित होने की आशंका है.
क्यों तेल की खपत कम हुई?
कोरोना संकट से निपटने के लिए अधिकतर संक्रमित देशों ने लॉकडाउन लगा रखा है. इस लॉकडाउन की वजह से लोग घरों में कैद हैं. वहीं ट्रांसपोर्टेशन भी पूरी तरह से ठप है. ऐसे में पेट्रोल और डीजल की खपत भी लगातार कम हो रही है. जाहिर सी बात है, पेट्रोल-डीजल की खपत कम होने की वजह से कच्चे तेल की डिमांड कम हो गई है. इसका नतीजा ये हुआ है कि तेल उत्पादक देशों से कच्चे तेल का आयात करने वाले देश अब खरीदने से इनकार कर रहे हैं.