जिन राज्यों ने शुरुआत में कोरोना की खूब टेस्टिंग की, उन राज्यों में अब कोरोना नियंत्रण में है, जिन राज्यों ने टेस्टिंग कम की, वहां अब जाकर हालात बिगड़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश इसका उदाहरण है। जब हालात बदतर होने पर राजधानी दिल्ली में कोरोना नियंत्रण के मोर्चे पर 14 जून से गृह मंत्री अमित शाह जुटे तो उन्होंने बैठक हो या फील्ड विजिट, हर जगह एक ही बात दोहराई- कोरोना को रोकना है तो टेस्टिंग तो करनी पड़ेगी। टेस्टिंग ही नहीं घर-घर सर्वे करना होगा। रैपिड टेस्टिंग भी उन्होंने शुरू कराई। केजरीवाल सरकार और केंद्र सरकार के उचित समन्वय से दिल्ली ने पर मिलियन के अनुपात में उचित टेस्टिंग होने लगी।
दिल्ली को देखकर, उत्तर प्रदेश के नीति-नियंताओं को भी सद्बुद्धि आई। तब जाकर उत्तर प्रदेश में टेस्टिंग बढ़ाने पर जोर दिया गया। यही वजह है कि जिस यूपी की कम कोरोना केसेज के कारण चर्चा होती थी, आज वहां राजधानी लखनऊ से लेकर हर जगह खूब केस आने लगे हैं।
कुछ समय पहले केंद्र सरकार की ओर से सभी राज्यों के जारी टेस्टिंग के आँकड़ों में 24 करोड़ जनसंख्या वाले यूपी का नंबर नीचे से दूसरा था। यहां तक कि उत्तराखंड भी दस लाख आबादी पर उत्तर प्रदेश से दोगुना(6500) टेस्टिंग कर रहा था। उसके बाद से उत्तर प्रदेश का शासन-प्रशासन जागा और अब टेस्टिंग हो रही है।
टेस्टिंग हो रही है तो जाहिर सी बात है कि केसेज भी बढ़ेगे। लेकिन आगे फायदा होगा। जब टेस्टिंग होगी तो पॉजिटिव आने वाला व्यक्ति या तो होम आइसोलेशन में होगा या फिर अस्पताल मे होगा। वह समाज से दूर होगा तो समाज को अपने चंगुल में नहीं ले पाएगा। लेकिन जब आप नंबर गेम में पड़कर टेस्टिंग ही नहीं करेंगे तो संक्रमित समाज में घूम-घूमकर कोरोना बांटेंगे। कोरोना की शुरुआत में जिन राज्यो में ज्यादा केसेज आने पर वहां की सरकारों को लोग गाली देते थे, आज वही राज्य मॉडल बन रहे हैं।