Delhi News Hindi: नौ धर्मों के धर्मगुरुओं ने लिया बाल विवाह मुक्त भारत का संकल्प
Delhi News Hindi: बाल विवाह मुक्त भारत, राज्यों के साथ मिलकर जागरूकता फैलाने और कानूनी हस्तक्षेप के जरिए बाल विवाह की रोकथाम के लिए काम कर रहा है। इस अभियान का उद्देश्य बाल विवाह के खिलाफ समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाना है।
Delhi News Hindi: बाल विवाह मुक्त भारत, राज्यों के साथ मिलकर जागरूकता फैलाने और कानूनी हस्तक्षेप के जरिए बाल विवाह की रोकथाम के लिए काम कर रहा है। इस अभियान का उद्देश्य बाल विवाह के खिलाफ समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाना है।
अंतर धार्मिक संवाद में एक सुर में धर्मगुरु
नई दिल्ली में आयोजित अंतर धार्मिक संवाद में 17 धार्मिक नेताओं ने एक सुर में कहा कि कोई भी धर्म बाल विवाह की इजाजत नहीं देता। उन्होंने सभी धार्मिक स्थलों पर बाल विवाह के खिलाफ जानकारी प्रदर्शित करने का समर्थन किया। इस अनूठे संवाद का आयोजन बाल विवाह मुक्त भारत के गठबंधन सहयोगी इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन ने किया।
धर्मगुरुओं का संकल्प
सभी धर्मों में बाल विवाह की स्वीकार्यता और सामाजिक धारणाओं में महत्वपूर्ण बदलाव लाने की दिशा में कदम उठाते हुए, नौ धर्मों के धार्मिक नेताओं ने बाल विवाह मुक्त भारत बनाने का संकल्प लिया। कार्यक्रम में उपस्थित धार्मिक नेताओं ने एक स्वर से कहा कि कोई भी धर्म बाल विवाह का समर्थन नहीं करता और किसी भी धर्मगुरु या पुरोहित को बाल विवाह संपन्न नहीं कराना चाहिए।
धर्मस्थलों में जागरूकता का प्रसार
धर्मगुरुओं ने सभी धर्मस्थलों में बाल विवाह के खिलाफ संदेश देने वाले पोस्टर और बैनर लगाने का समर्थन किया। उन्होंने अपने समुदायों के बीच बाल विवाह की कुप्रथा के खात्मे के लिए काम करने पर सहमति जताई। हिंदू, इस्लाम, सिख, ईसाई, बौद्ध, बहाई, जैन, यहूदी और पारसी धर्म के इन धर्मगुरुओं ने इस साझा लक्ष्य की प्राप्ति में एकता के महत्व पर जोर दिया।
बाल विवाह के खिलाफ कानून का समर्थन
धर्मगुरुओं ने जोर देकर कहा कि सभी बच्चों की सुरक्षा, शिक्षा और विकास तक पहुंच होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जो भी बाल विवाह संपन्न करा रहा है या इसे प्रोत्साहित करता है, उसके खिलाफ कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए।
धार्मिक नेताओं की बड़ी भूमिका
भारत जैसे अत्यधिक धार्मिक देश में सामाजिक मानदंडों और प्रथाओं को आकार देने और उन्हें कायम रखने में धार्मिक नेताओं की बड़ी भूमिका होती है। वे अक्सर सामाजिक और नैतिक दोनों स्तरों पर सामुदायिक गतिविधियों का नेतृत्व करते हैं। बाल विवाह के कानूनन अपराध होने के बावजूद विभिन्न समुदाय अक्सर इस कुप्रथा को जारी रखने के लिए धर्म की आड़ लेते हैं जो बाल विवाह को समाप्त करने के रास्ते में एक बड़ी चुनौती है।
सर्व धर्म संवाद का महत्व
बाल विवाह मुक्त भारत के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा, “बाल विवाह जैसे सामाजिक रूप से स्वीकृत अपराध को तभी खत्म किया जा सकता है जब सभी समुदाय इसके खिलाफ लड़ाई में साथ आएं। आस्था, धर्म और कानून सभ्यता की आधारशिला हैं और बाल विवाह को जड़मूल से खत्म करने के लिए इन्हें मिलकर काम करने की जरूरत है।”
धार्मिक नेताओं के विचार
इस्लाम में बाल विवाह के बारे में प्रचलित धारणाओं का खंडन करते हुए जमात-ए-इस्लामी हिंद के डॉ. एम. इकबाल सिद्दीकी ने कहा, “इस्लाम में विवाह की किसी उम्र का प्रावधान नहीं है लेकिन इस्लाम निश्चित रूप से कहता है कि दूल्हे और दुल्हन दोनों को विवाह पर सहमति देनी होगी और यह एक खास उम्र और परिपक्वता के बाद ही आ सकती है।” वर्ल्ड पीस आर्गेनाइजेशन के महासचिव मौलाना मोहम्मद एजाजुर रहमान शाहीन कासमी ने कहा कि इस्लाम बाल विवाह की इजाजत नहीं देता है। भारतीय सर्व धर्म संसद के राष्ट्रीय संयोजक गोस्वामी सुशील जी महाराज ने कहा, “बाल विवाह की समस्या सभी धर्मों और समुदायों में है और हम सभी धार्मिक नेता साथ मिलकर इस समस्या के समाधान की कोशिश में हैं।”
बाल विवाह मुक्त भारत का अभियान
बाल विवाह के खात्मे के लिए बाल विवाह मुक्त भारत देश का सबसे बड़ा जनजागरूकता अभियान चला रहा है। इसके तहत गांवों में लोगों को बाल विवाह के खिलाफ शपथ दिलाने और कानूनी हस्तक्षेपों के अलावा धर्मगुरुओं को भी इससे जोड़ा जा रहा है। पूरे देश में मंदिरों, मस्जिदों और गिरिजाघरों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं और सभी धर्मों के पुरोहितों को शपथ दिलाई जा रही है कि वे बाल विवाह नहीं कराएंगे।
संवाद में शामिल प्रमुख धार्मिक नेता
संवाद में मौलाना मोहम्मद एजाजुर रहमान शाहीन कासमी, सुश्री कार्मेल एम. त्रिपाठी, स्वामी चंद्र देवजी महाराज, रब्बाई ईजेकील मालेक्कर, डॉ. इमाम उमर अहमद, सुश्री जसमिंदर कस्तूरिया, रेवरेंड डॉ. रॉबी कन्ननचिरा, रेव. डॉ. मैथ्यू कोइकल, मरज़बान नरीमन ज़ैवाला, सुश्री नीलाक्षी राजखोवा, श्रीमती रिनचेन लामो, गोस्वामी सुशील जी महाराज, आचार्य विवेक मुनि जी महाराज, और तिब्बती सर्वोच्च न्याय आयोग के बौद्ध आचार्य येशी फुनस्टॉन्ग भी उपस्थित थे।