राहुल गांधी के हलफनामे के मुताबिक उन पर पहला केस 2014 में महाराष्ट्र के भिवंडी में दर्ज किया गया था। राहुल पर 2014 से अब तक 20 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हो चुके हैं। साल 2019 में सबसे ज्यादा 5 मुकदमे दर्ज किए गए। एक में हाल में उनपर 200 रुपये का जुर्माना हुआ है जबकि एक मामले में निजी उपस्थिति से छूट मिली है। भारतीय अदालतों में मुकदमे हो सकते हैं इसलिये हुए हैं। पर ये मुकदमे अलग हैं। एक तो उनकी नागरिकता को लेकर भी है। होने को तो चोर को चोर कहने पर भी मुकदमा हो सकता है लेकिन वह अलग मुद्दा है।
अभी मुद्दा यह है कि देश में जज की हत्या से लेकर जज को ईनाम मिलने तक के उदाहरण हैं। और बात सिर्फ हत्या की नहीं उसकी जांच नहीं होने देने की भी है। इसमें कहा जाता है कि वे जमानत पर हैं और हम क्लीनचिट वाले।
बलात्कारियों के रिहा हो जाने उनके सम्मान और फिर मामले को महीनों सुप्रीम कोर्ट में नहीं सुने जा सकने के उदाहरण हैं। और भी कई मामले हैं। किसी को वर्षों जमानत नहीं मिलती है पर अर्नब गोस्वामी को एक हफ्ते में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने का रिकार्ड है।
ऐसे में राहुल गांधी ने वीर सावरकर के खिलाफ कुछ कहा उसके लिए मुकदमा हो गया। राहुल गांधी के खिलाफ कितना कुछ कहा गया है - मुकदमा नहीं है और उपाय यह नहीं है कि राहुल गांधी या उनके समर्थक भी वही करें। संक्षेप में यह कि राहुल गांधी जो राय रखते हैं बोल नहीं सकते, उनके खिलाफ झूठ बोलने की आजादी है।
दूसरी ओर महात्मा गांधी पर भी बात नहीं हो पा रही है। उन्हें भी गाली देने वाले हैं। प्रमुख पत्रकार और लेखक अरविन्द मोहन ने गांधी पर गंभीर काम किया है। लेकिन, गांधी विरोधी ताकतों ने उन्हें उनके अपने जिले तक में बोलने से रोक दिया गया। (बिहार में हिन्दुत्व को भड़काने के जो प्रयास चल रहे हैं वह अलग कहानी है)।
अरविन्द मोहन ने लिखा है, गांधी पर अयोजित अपने दो व्याख्यानों का आयोजन बिना कारण बताए रद्द किए जाने से आहत हूँ। पहला व्याख्यान चंपारण सत्याग्रह के प्रमुख स्थल जसोली पट्टी गाँव में था। यह कार्यक्रम दो मार्च को था। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में बिटिया महोत्सव के तहत नौ मार्च को गांधी और महिला नेतृत्व पर बोलना था। सारी तैयारियां हो गई थीं और तभी एक स्थानीय अखबार ने जाने क्या खबर छपी और शासन से पूरा कार्यक्रम रद्द करने का आदेश आ गया।
कहने की जरूरत नहीं है कि राहुल गांधी को बदनाम करने की सोची-समझी साजिश चल रही है और ऐसा ही जवाहर लाल नेहरू के साथ भी है। आज ट्वीटर पर डेक्कन क्रोनिकल का एक पुराना कतरन दिखा। उसके अनुसार, नेहरू जी ने खुद कहा था, शिक्षा से मैं अंग्रेज हूं, विचारों से मैं अन्तर्राष्ट्रीयवादी हूं, संस्कृति से मैं मुसलमान हूं और जन्म (की दुर्घटना) से मैं हिन्दू हूं। तथ्य यह है कि द नेहरूज : मोतीलाल एंड जवाहरलाल, लेखक बीआर नंदा के अनुसार, हिन्दू महासभा के एनबी खरे ने यह बात नेहरू के लिए कही था। यह किताब 1959 में आई थी।
व्हाट्सऐप्प यूनिवर्सिटी और अब के बच्चों और भक्तों के लिए नेहरू या खरे का कहना एक ही बात हो सकती है। दरअसल, भाजपा प्रचार सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने 14 नंबर 2015 को ट्वीट किया था (और यह अभी भी है) उसके बाद से शेयर हो रहा है, लोग कहे जा रहे हैं। कुछ वेबसाइट पर भी है। गूगल करने पर मिल जायेगा। लेकिन यह तथ्य नहीं है।
मैं नहीं जानता कि इस विषय में इतना ही है या कुछ और है जो मुझे पता नहीं है और तथ्य कुछ और हो। इस मामले में एक स्क्रीन शॉट, ‘नेहरू खान वंश’ नामक पुस्तक का भी है। हालांकि इसकी शुरुआत एनबी खरे की किताब, दि एंग्री एरिस्टोक्रेट से हुई लगती है। इसलिए डेक्कन क्रोनिकल ने जो लिखा है वह किताब में भी है। नेहरू की आत्मकथा पढ़ चुके लोग बतायेंगे कि यह दावा सही है या गलत। नेहरू के खिलाफ अभियान तब से चल रहा है। इस रफ्तार से कब कामयाब होगा सोचिये। इस बीच इंदिरा गांधी, राजीव गांधी प्रधानमंत्री बन चुके। संजय गांधी का असमायिक निधन नहीं हुआ होता तो कहानी कुछ और होती। राहुल गांधी चाहते तो 2005 या 2009 में बन ही सकते थे। फिर भी राहुल गांधी का विरोध चल रहा है। इस सरकार में इस विरोध को सबसे प्रभावी कहा जाना चाहिये लेकिन राहुल गांधी ने सीटें कम करवा ही दीं। ईवीएम और केंचुआ की बात नहीं करें तब भी।
ऐसे में भक्तों को कामयाबी कब मिलेगी कि उनकी सरकार चुनाव जीतने की कोशिश छोड़कर काम कर सके। राम जानें। काश! राहुल गांधी को प्रधानमंत्री होने की जल्दी होती तो देश का ये हाल नहीं होता। कोई और योग्य होता तो अब तक सामने आ गया होता।
नेहरू को बदनाम करने की इस छोटी सी कहानी का विवरण अल्ट न्यूज से लिया है।