केंद्र सरकार तत्काल ऑपरेशन कगार रोके और मुठभेड़ों की न्यायिक जांच हो: जन हस्तक्षेप
मानवाधिकार वादी संगठन जन हस्तक्षेप द्वारा केंद्र सरकार से मांग की गई है कि छत्तीसगढ़ में चलाए जा रहे "ऑपरेशन कगार" को तत्काल प्रभाव से रोका जाए!
दिल्ली। प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में 18 मार्च 2025 को मानवाधिकार वादी संगठन जन हस्तक्षेप द्वारा आयोजित बुद्धिजीवियों, अध्यापकों, छात्रों, वकीलों व नागरिक समाज के अन्य विशिष्ट लोगों की बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से मांग की गई है कि छत्तीसगढ़ में चलाए जा रहे "ऑपरेशन कगार" को तत्काल प्रभाव से रोका जाए और सुरक्षा बलों को हटाया जाए तथा आदिवासियों के खिलाफ दायर किए गए फर्जी मुकदमे वापस लिए जाएं। छत्तीसगढ़ में हाल के वर्षों में हुई सभी मुठभेड़ों और मारे गए आदिवासियों के मामलों की सुप्रीम कोर्ट के पीठासीन जज की अध्यक्षता में न्यायिक जांच हो और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
जल, जमीन, जंगल से संबंधित देसी और विदेशी कॉरपोरेट कंपनियों से किए गए सभी समझौतों को रद्द किया जाए। जन हस्तक्षेप द्वारा आयोजित सभा में "ऑपरेशन कगार और छत्तीसगढ़ में मानवाधिकारों की स्थिति" विषयक चर्चा में वनवासी चेतना आश्रम के संस्थापक और आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर और नागरिक अधिकार कार्य करता नंदिनी सुंदर, सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट कोलिन गोंसाल्वेस और जेएनयू के प्रोफेसर एवं जन हस्तक्षेप के संयोजक डॉ विकास बाजपेई ने अपने विचार व्यक्त किए। इससे पूर्व वरिष्ठ पत्रकार व जन हस्तक्षेप के सहसंयोजक अनिल दुबे ने परिचर्चा के लिए विषय का प्रारूप पेश किया।
आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने कहा कि कोई भी देश अपने नागरिकों पर बमबारी नहीं कर सकता। यह संयुक्त राष्ट्र संघ व अन्य अंतरराष्ट्रीय नियमों का स्पष्ट दिशा निर्देश है, लेकिन छत्तीसगढ़ में कॉर्पोरेट घरानों की तिजोरी भरने के लिए सुरक्षा बल आदिवासियों के खेतों, घरों और गांवों पर बमबारी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज वहां की जमीनी स्थिति यह है कि आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों की बात उठाने वालों पर ही अदालतें कार्रवाई करती हैं। अपने मामले का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उन पर जुर्माना और सजा का प्रावधान किया। अदानी और अंबानी के लिए सरकार हजारों नागरिकों की हत्या कर सकती है और इस पर सुप्रीम कोर्ट की भी सहमति है। उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ की जेलों में यौन हिंसा की शिकार महिलाओं की बहुत बड़ी संख्या है। इसका उल्लेख आदिवासी कार्यकर्ता सोनी सोरी ने कई जगहों पर किया है। उन्होंने कहा कि एक-एक किलोमीटर की दूरी पर हजार-हजार पैरा मिलिट्री फोर्स के जवान तैनात हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में जारी यह युद्ध अब मैदानों में पहुंचेगा। कॉर्पोरेट के लिए कृषि भूमि के अधिग्रहण के रूप में यह उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में युद्ध के मैदान का विस्तार होगा, जो और भयानक व क्रूर होगा।
प्रोफेसर नंदिनी सुंदर ने कहा कि माओवादी युद्ध का यह मॉडल बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगा। छत्तीसगढ़ का युद्ध जारी है और हमने देखा है कि वह किसान आंदोलन के रूप में वह मैदानों में पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन ग्रीन हंट के तहत व्यापक नरसंहार का दौर शुरू हुआ था, लेकिन उस समय कुछ खबरें भी आ जाया करती थीं। उसके बाद 2016 में बड़े पैमाने पर आदिवासियों पर हमले की घटनाएं हमने देखीं। आज बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों के कैंप उन इलाकों में ही सबसे ज्यादा लगाए जा रहे हैं, जहां अदानी और कॉरपोरेट कंपनियों की खदानें हैं। उन्होंने कहा कि मूल आदिवासी बचाओ अधिकार मंच जो आदिवासियों के लिए आवाज उठाता था। उसे प्रतिबंधित कर दिया गया है और कोई कुछ नहीं कर पा रहा है। हमें सोचना होगा कि केवल जामिया, भीमा कोरेगांव व अन्य मामलों में ही लोग जेलों में नहीं हैं, बल्कि बड़ी संख्या में आदिवासी भी जेलों में हैं और हमको इन सब परिस्थितियों के बारे में विचार करना होगा। आदिवासियों पर केवल विस्थापन का ही खतरा नहीं है। उनकी संस्कृति, भाषा और विचार पर बाहरी लोग हमले कर रहे हैं और यह काम बाहर से आकर वहां स्कूल, सड़क, अस्पताल आदि व्यापारिक काम करने वाले लोग हैं।
सीनियर एडवोकेट कोलिन ने कहा कि छत्तीसगढ़ में माओवाद के खिलाफ कोई लड़ाई नहीं है। सब कुछ वहां की जमीन और खनिज संपदा की लूट के लिए हो रहा है। इसके लिए आदिवासियों को बर्बर ढंग से मारा और भगाया जा रहा है। इस संदर्भ में उन्होंने दंतेवाड़ा में फैक्ट फाइंडिंग के लिए गई एक टीम का उल्लेख किया, जहां 150 से अधिक महिलाएं आई थीं। इनमें से 70 उत्पीड़ित महिलाओं ने वहां की स्थिति का विवरण रिकॉर्ड कराया था। छत्तीसगढ़ पीयूसीएल की वेबसाइट पर यह सारे वीडियो मौजूद हैं। उन्होंने एक वीडियो क्लिप भी सभा में दिखाई, जिसमें महिलाएं बता रही हैं कि आदिवासियों को उनके खेतों, घरों और गावों से बाहर करने के लिए सुरक्षा बल किस तरह के अत्याचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वहां की जमीनी स्थिति यह है कि पैरामिलिट्री फोर्स की वहीं सबसे ज्यादा तैनाती है, जहां खनन परियोजनाएं हैं। सरकार कॉर्पोरेट के लिए एजेंट की तरह काम कर रही है। बर्बरता का यह एक नया भयानक दौर है। आदिवासियों के खिलाफ अमित शाह और कॉर्पोरेट मीडिया का प्रोपेगेंडा जारी है और न्यायपालिका मौन ही नहीं उसका पूरा समर्थन है।
डॉ विकास ने कहा कि छत्तीसगढ़ में खनिज संपदाओं की लूट और आदिवासियों के नरसंहार पर शासक वर्गों के राजनीतिक दलों में एक मत हैं। संसद में भी विपक्ष खामोश है। देश में भय का वातावरण है। ऐसे में अब जनता को ही देखना होगा कि वह इस हालात से कैसे और किस रास्ते से निपटा सकती है। यही नहीं मानवाधिकार वादी और लोकतंत्र पसंद कार्यकर्ताओं को भी अब समझना होगा कि वह इस तरह के सवालों के लिए एकजुट हों और विरोध का स्वरूप तय करें। उन्होंने कहा कि यह देखने की बात है कि हाल के वर्षों में जेलों में कैदियों की संख्या इतनी ज्यादा कैसे बढ़ गई। स्थिति निरंतर बद से बत्तर हो रही है। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन कगार के खिलाफ पंजाब, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जो स्वागत योग्य है और नागरिक समाज को इस सवाल पर सोचा होगा।
वरिष्ठ पत्रकार अनिल दुबे ने चर्चा के लिए विषय प्रस्तुत करते हुए कहा कि दशकों से सरकारें जल, जमीन, जंगल और खनिज संपदाओं की कारपोरेट लूट के लिए आदिवासियों को विस्थापित करती रही हैं। आरएसएस-भाजपा के सत्ता में आने के बाद से लंबे संघर्षों से प्राप्त वन और आदिवासी संरक्षण कानूनों को कमजोर या समाप्त किया गया है। इससे पूरे क्षेत्र में अशांति बढ़ी है। इस संदर्भ में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की 2008 की "कमेटी आन स्टेट एग्रेरियन रिलेशंस एंड अनफिनिश्ड टास्क ऑफ़ लैंड रिफॉर्म्स" रिपोर्ट में बताया गया था कि छत्तीसगढ़ में विकास परियोजनाओं के नाम पर बड़े पैमाने पर उपजाऊ जमीन और वन क्षेत्र उद्योगपतियों को दिया गया। इससे बड़े पैमाने पर आदिवासियों का विस्थापन हुआ, जिसने व्यापक अशांति को जन्म दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार "कोलंबस के बाद जमीन अधिग्रहण की सबसे बड़ी कार्यवाही छत्तीसगढ़ में हुई है"। बावजूद इसके मनमोहन सिंह सरकार के गृहमंत्री पी चिदंबरम ने ऑपरेशन "ग्रीन हंट" चलाया और आज "ऑपरेशन कगार" के नाम पर आदिवासियों की हत्या और विस्थापन का सिलसिला जारी है, क्योंकि भाजपा की रमन सरकार या कांग्रेस की बघेल सरकार अथवा पुनः भाजपा की साय सरकार में आदिवासियों के लिए नीतियों में कोई फर्क नहीं है।