नई दिल्ली। विरोध प्रदर्शनों के दौरान सरकारी बस को आग लगाने वाले, तोड़-फोड़ करने वाले या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले लोग अब बख्शे नहीं जाएंगे अक्सर विरोध प्रदर्शनों में सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान होता है. कभी बसें जला दी जाती हैं, कभी ट्रेनों पर पथराव होता है, कभी सरकारी इमारतों में तोड़-फोड़ होती है, तो कभी सरकारी ट्रांसपोर्ट व्यवस्था का नुकसान किया जाता है. सवाल है कि क्या इसको लेकर कोई कानून नहीं है? अगर विरोध प्रदर्शन में सरकारी संपत्ति का नुकसान होता है तो इसका जिम्मेदार कौन है? आगजनी, पथराव और तोड़फोड़ में सरकारी संपत्ति के नुकसान पर कानून क्या कहता है?
सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति को लेकर सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम 1984 है. इसके प्रावधानों के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का दोषी साबित होता है तो उसे 5 साल की सजा हो सकती है. इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है. ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है।
गौरतलब है कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर पांच साल जेल और जुर्माने की सजा हो सकती है. अगर वह संपत्ति जल या बिजली के उत्पादन या वितरण से जुड़ी हो या सीवेज पाइपलाइन, तेल अधिष्ठान से जुड़ी हो तो दोषी को 10 साल तक की जेल हो सकती है.
इस एक्ट में सार्वजनिक संपत्ति इस तरह की संपत्तियों को माना गया है- वाटर प्रोड्यूस या डिस्ट्रीब्यूट करने वाला किसी तरह का इंस्टालेशन या इमारत, बिजली या उर्जा से संबंधित किसी तरह का सरकारी उपक्रम या इमारत, तेल का कोई भंडार, नाले नहर वाली कोई सरकारी व्यवस्था, किसी तरह का खदान या फैक्ट्री, पब्लिक ट्रांसपोर्ट या टेलीकम्यूनिकेशन के साधन या फिर लोगों के सार्वजनिक उपयोग वाली किसी तरह की बिल्डिंग या इमारत.सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान पर सुप्रीम कोर्ट ने बनाई थी कमिटी
सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान को रोकने के लिए कानून हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट को हमेशा लगता रहा है कि इस मामले में और भी उपाय किए जाने की जरूरत है. 2007 में सार्वजनिक संपत्ति के भीषण नुकसान की खबरों पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था. उस वक्त हिंसक विरोध प्रदर्शन, बंद और हड़ताल में सरकारी संपत्ति का खूब नुकसान हुआ था।