कोरोना से दिल्ली में 1000 मौतों का डेटा कागजों में 'गायब', जानिए पूरा मामला
कोरोना कहर बनकर लोगों पर टूट रहा है। लेकिन सरकारों के चेहरे पर कोई शिकन नहीं दिखाई देती है। लोगों को सुविधा मुहैया कराने की बजाए सरकार आंकड़ों को मैनेज करने में लगी है। दिल्ली में सरकारी रिकार्ड के हिसाब से 18 से 24 अप्रैल के बीच 1938 मौतें हुईं जबकि शमशान घाटों का रिकार्ड बताता है कि इस दौरान मरे 1150 लोगों का आंकड़ा केजरीवाल सरकार गोल कर गई।
दिल्ली में इलाज न मिलने की वजह से लोग मौत के मुंह में समाते जा रहे हैं। आलम यह है कि न तो अस्पतालों में बिस्तर हैं और न ही जरूरी सुविधाएं। ऑक्सीजन न मिलने की वजह से मरीजों के मरने का सिलसिला जारी है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार सरकार लोगों को सुविधा तो दे नहीं पा रही, दूसरी तरफ आंकड़ों को दबाकर अपनी नाकामी को छिपाने की पुरजोर कोशिश कर रही है।
टीवी चैनल की रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली के म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के तहत 26 शमशान घाट चल रहे हैं। 18 से 24 अप्रैल के दौरान यहां पर कुल 3096 लोगों के अंतिम संस्कार हुए। कॉरपोरेशन उन मौतों को ही कोरोना के आंकड़े में शुमार करती है जो अस्पताल से सीधे शमशान में लाए जाते हैं। आंकड़ों की बाजीगरी कहां पर हुई ये बात समझ से परे है।
गाजीपुर शमशान के एक स्टाफ अनुज बंसल का कहना है कि जो लोग घर पर अंतिम सांस ले रहे हैं, उनका आंकड़ा कोरोना से होने वाली मौतों में शामिल नहीं किया जाता। उनका कहना है कि घर पर होने वाली मौत को वो कोविड में इस वजह से शामिल नहीं करते, क्योंकि मौत का कारण स्पष्ट नहीं होता। ऐसे मामलों में मौत चाहें कोरोना से हुई हो पर उसे साधारण केस के तौर पर माना जाता है।
बंसल का कहना है कि अगर परिवार कोरोना से मौत का दावा करता है तो उसे एक अलग कोरोना की संदिग्ध श्रेणी में रखा जाता है। दिल्ली के सबसे बड़ा और प्राचीन शमशान निगम बोध की बात की जाए तो यहां पर शवों की आमद पहले की अपेक्षा दोगुनी हो गई है। लोगों को अंतिम संस्कार कराने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। सराय काले खां के शमशान के भी हालात जुदा नहीं हैं।
नियम कहते हैं कि सराय काले खां में 20 शवों का ही अंतिम संस्कार कराया जा सकता है, लेकिन अभी यहां 60 से 70 शवों का रोजाना अंतिम संस्कार कराया जा रहा है। हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि पास के पार्क में 100 नई चिताएं बनाई गई हैं। नार्थईस्ट दिल्ली के शमशान की भी हालत बाकियों जैसी दिखाई देती है। शमशानों पर लगने वाली लाइनें कितनी लंबी हो चली हैं, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि लोग यहां वहां गिरकर बेसुध हो रहे हैं।