शाहीन बाग बंद रास्ते खुलवाने पर सुप्रीम कोर्ट में आज हुई सुनवाई, लेकिन मामला "किंतु-परंतु" में फंसा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारे पास सिर्फ एक मामला है, शाहीन बाग में रास्ता खुलवाने को लेकर, हमने वार्ताकार भेजे थे, जिन्होंने हमे रिपोर्ट सौंपी है।
नई दिल्ली। शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पिछले दो महीने से ज्यादा दिनों से चल रहे धरना-प्रदर्शन को लेकर बुधवार को एक बार फिर सुनवाई हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका। सुनवाई को दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फिलहाल इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 23 मार्च की तारीख तय की है।
मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने कहा कि, 'हम इस याचिका के दायरे का विस्तार करने नहीं जा रहे हैं. हम केवल शाहीन बाग क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन पर सुनवाई करेंगे. हमने वार्ताकारों से इस बारे में पूछा है. उन्होंने जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें किंतु-परंतु हैं. कोर्ट उनकी रिपोर्ट को देखेगी.'
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में हिंसा की घटनाओं को दुर्भाग्यपूर्ण बताया, लेकिन उससे संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वार्ताकारों ने पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारे पास सिर्फ एक मामला है, शाहीन बाग में रास्ता खुलवाने को लेकर, हमने वार्ताकार भेजे थे, जिन्होंने हमे रिपोर्ट सौंपी है। इससे पहले सोमवार को सुनवाई हुई थी। उस दिन कोर्ट द्वारा नियुक्त दोनों वार्ताकारों संजय हेगड़े और साधना रामचंद्रन ने अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट आज बीजेपी नेता नंद किशोर गर्ग और वकील अमित साहनी की भी याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में शाहीन बाग में डटे प्रदर्शनकारियों को हटाने की मांग की गई है।
हम पुलिस को हतोत्साहित नहीं कर सकते: तुषार मेहता
कोर्ट ने कहा कि, शाहीन बाग में चल रहे प्रदर्शन से जुड़ी याचिका की सुनवाई के लिए अनुकूल माहौल नहीं है. सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने इसका विरोध किया. उन्होंने दलील दी कि, हम पुलिस को हतोत्साहित नहीं कर सकते. गोली से दिल्ली पुलिस के एक हवलदार की मौत हुई है. DCP बुरी तरह घायल हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 13 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है. यह बेहद गंभीर विषय है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'सार्वजनिक जगह' प्रदर्शन की जगह नहीं होती. पुलिस अपना काम करे. कभी-कभी परिस्थिति ऐसी आ जाती है कि आउट ऑफ द बॉक्स जा कर काम करें.
जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि, 'जिस पल एक भड़काऊ टिप्पणी की गई, पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए थी. दिल्ली ही नहीं, उस मामले के लिए कोई भी राज्य हो. 13 जिंदगी छोटी नहीं है. पुलिस को कानून के अनुसार काम करना चाहिए. यह दिक्कत पुलिस की प्रोफेशनलिज्म में कमी की है. कोर्ट ने कहा कि मौजूदा याचिका में दिल्ली में हुई हिंसा के मामले को शामिल नहीं करेंगे. उस विषय पर अलग से याचिका दाखिल की जा सकती है. कोर्ट ने आगे कहा कि इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही पुलिस को नोटिस जारी कर चुका है.ये भी पढ़ें -