10 सालों से कर रहे है निस्वार्थ भाव से सबकी सेवा,इस राज्य का ये डॉक्टर देता है बिल्कुल मुफ़्त इलाज

आज हम एक ऐसे ही डॉक्टर की कहानी से आपको रूबरू कराने जा रहे है जो पिछले 10 सालों से बिल्कुल निस्वार्थ भाव से सभी लोगों का मुफ़्त में इलाज करते हैं। इस डॉक्टर का नाम है डॉ. फारुल होसैन जो पेशे से एक सफल डॉक्टर है।

Update: 2023-04-12 14:58 GMT

आज हम एक ऐसे ही डॉक्टर की कहानी से आपको रूबरू कराने जा रहे है जो पिछले 10 सालों से बिल्कुल निस्वार्थ भाव से सभी लोगों का मुफ़्त में इलाज करते हैं। इस डॉक्टर का नाम है डॉ. फारुल होसैन जो पेशे से एक सफल डॉक्टर है। फारुक का जन्म पश्चिम बंगाल के सुंदरबन के बेहद ही गरीब परिवार में हुआ। बचपन से उन्होंने काफी गरीबी देखि और बचपन में ही उन्होंने खुद से एक वादा किया था वो बड़े होकर डॉक्टर बनेंगे और जरूरतमंद लोगों की मदद करेंगे। जब भी हम स्वास्थ्य से संबंधी किसी परेशानी से जूझ रहे होते तो हम भगवान को याद करते है लेकिन धरती पर अगर कोई हमारा स्वास्थ्य ठीक कर सकता है तो वो पेशा डॉक्टर का होता। एक डॉक्टर ही हमारे स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को दूर कर सकता है और हम सबने देखा कि कैसे डॉक्टरों ने कोरोना से लड़ने में हमारी मदद की और इस मुसीबत से कई हद तक बाहर निकाला। तो आईये जानते है डॉक्टर फारुक के बारे में।

डॉ. फारुक 10 सालों से सुंदरबन में चला रहे है अस्पताल

10 साल हो चुके है डॉक्टर फारुक को जरूरतमंद लोगों की सेवा करते हुए और पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में ही उनका अस्पताल चल रहा है जहाँ वो मुफ़्त इलाज करते है। यहां हर गरीब को स्वास्थ्य सेवाएं मुफ़्त में प्रदान की जाती है। प्राथमिक शिक्षा डॉ. फारुक ने अपने गांव से ही ली थी लेकिन बाद में वो कोलकाता के मिशन स्कूल में दाखिला लिया और आगे की पढ़ाई की। वही से ही उन्होंने एमबीबीएस करने का सपना देखा और फिर अपने ही सपने को सफलतापूर्वक साकार भी किया। उन्होंने अपने एमबीबीएस की पढ़ाई बांकुरा मेडिकल कॉलेज से की और फिर उन्होंने नौकरी करना शुरू कर दिया। 2014 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर गांव वापिस चले आये जहाँ उन्होंने अपने गांव के कुछ युवाओं की मदद से एक एनजीओ शुरू करने का फैसला किया।

डॉ. फारुक के एनजीओ का नाम NGO 'Naba-Diganta' है और वो हर दिन कई लोगों का मुफ़्त में इलाज करते है। यही नही डॉ. फारूक को 2021 में अपने निस्वार्थ कार्य के लिए सम्मानित भी किया गया था। डॉ. फारूक ने न केवल इंसानियत के लिए एक बड़ा काम किया है बल्कि वो कई मरीज़ो के लिए एक मसीहा भी बनकर सामने आये है।2014 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर गांव वापिस चले आये जहाँ उन्होंने अपने गांव के कुछ युवाओं की मदद से एक एनजीओ शुरू करने का फैसला किया।

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