पार्टी का मतलब नेता और नेता का मतलब राष्ट्र - यह पर्याय मोदीराज में स्थापित नहीं हुआ है, आज़ादी के बाद से ही है। अभी ज़माने पुराना यह चुनावी पोस्टर बरामद हुआ। इसमें कहा गया है कि एक स्थिर, सेक्युलर और तरक्कीपसंद राज्य के लिए कांग्रेस को वोट दें।
दिलचस्प है कि दो बैलों की तस्वीर पार्टी के नेता के अनुपात में बहुत छोटी है। कहने का आशय यही है कि कुल मिला कर नेहरू को जिताएं और राजा बनाएं। फिर भाजपा यदि अपने नेता के चेहरे पर चुनाव लड़े तो इसमें किसी को क्या आपत्ति होगी। शुरू से ही इस लोकतंत्र में प्रधानमंत्री बनाने के लिए चुनाव हो रहा है।
आज भी परंपरा कायम है। मुझे लगता है बाकी 544 सीटों पर अलग अलग प्रत्याशियों का झंझट ही ख़तम कर देना चाहिए। पूरे देश से हर पार्टी का एक ही आदमी चुनाव लड़े। मने जितने दल, उतने कैंडिडेट। प्रधानमंत्री चुन लो, अपनी टीम वह बाद में चुन लेगा। वैसे भी किसी सांसद की कोई औकात तो रह नहीं गई है। काहे का पैसा फूंकना! काहे का दिखावा!