वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ की पत्नी चिन्ना जी का निधन, ओम थानवी ने कुछ यूँ कहा शोक संदेश में!

विनोद दुआ — जिन्हें मैं हिंदी टीवी पत्रकारिता का आदिपुरुष कहता हूँ — और चिन्नाजी कई दिनों से मेदांता अस्पताल में चिकित्साधीन थे। कुछ रोज़ पहले विनोदजी ने फ़ेसबुक पर लिखा कि चिन्ना की दशा नाज़ुक है। बाद में उन्होंने बताया कि वे बेहतर हैं।

Update: 2021-06-12 07:28 GMT

ओम थानवी 

उन्हें रेडियोलॉजिस्ट डॉ पद्मावती के रूप में हमने कभी नहीं जाना। परिजनों के बीच वे सदा चिन्ना थीं। उनका जाना मित्र विनोद दुआ को अधूरा कर गया है। लेकिन दुआ परिवार का दायरा बहुत बड़ा है। हम भी उनमें अपने को शरीक़ मानते हैं। चिन्ना भाभी चली गईं, हमारी दुनिया भी छोटी हो गई है।

विनोद दुआ — जिन्हें मैं हिंदी टीवी पत्रकारिता का आदिपुरुष कहता हूँ — और चिन्नाजी कई दिनों से मेदांता अस्पताल में चिकित्साधीन थे। कुछ रोज़ पहले विनोदजी ने फ़ेसबुक पर लिखा कि चिन्ना की दशा नाज़ुक है। बाद में उन्होंने बताया कि वे बेहतर हैं। दरअसल विनोद वार्ड में हैं, चिन्ना आइसीयू में रोगशैय्या पर थीं। बाहर जानकारी छनकर ही आया करती है। अफ़सोस इसका भी कि जीवट भरा एक लम्बा संघर्ष सफल न हो सका।

विनोद दुआ से मेरी दोस्ती कोई तीस साल पहले हुई। वे और मशहूर पियानोवादक ब्रायन साइलस चंडीगढ़ आए थे। मित्रवर अशोक लवासा — पूर्व निर्वाचन आयुक्त — के घर जलसा था। विनोद अशोकजी के सहपाठी रहे हैं। हमें नहीं मालूम था कि विनोद गाते भी हैं। हम खाना खाकर निकलने लगे तो विनोदजी ने बड़ी आत्मीयता से रास्ता रोकते हुए, मगर तंज में, कहा कि हम सीधे दिल्ली से चले आ रहे हैं और आप महफ़िल को इस तरह छोड़कर निकल रहे हैं। और उस रोज़ की दोस्ती हमारे घरों में दाख़िल हो गई।

दिल्ली में बसने पर चिन्ना भाभी को क़रीब से जाना। उनमें विनोदजी वाली चंचलता और शरारत ज़रा नहीं थी। कम बोलती थीं, पर आत्मीय ऊष्मा और मुस्कुराहट बिखेरने में सदा उदार थीं। दक्षिण से आती थीं, मगर हिंदी गीत यों गातीं मानो इधर की ही हों। दोनों किसी न किसी दोस्ताना महफ़िल में गाने के लिए उकसा दिए जाते थे। तब लगता था दोनों एक-दूसरे के लिए अवतरित हुए होंगे। दिल्ली में विनोदजी से कमोबेश रोज़ मिलना होता था। कई दफ़ा तो दो बार; पहले टीवी स्टूडियो में, फिर आइआइसी में। लेकिन घर की बैठकें भी बहुत हुईं। चिन्ना भाभी के दक्षिण के तेवर जब-तब भोजन में हमें तभी देखने को मिले।

दस साल पहले जब हमारे बेटे मिहिर और ऋचा का जयपुर में विवाह हुआ, दुआ दम्पती घर के सदस्यों की तरह खड़े रहे। इतना ही नहीं, लंगा-मांगणियार मंडली के गायन के अंतराल में विनोदजी और चिन्ना भाभी ने गीत गाए। सिर्फ़ राजस्थानी डफ़ की ताल पर, क्योंकि वही संगत उपलब्ध थी! (राजेंद्र बोड़ा जी ने दो गाने 'इशारों इशारों में दिल लेने वाले' और 'उड़ें जब-जब ज़ुल्फ़ें तेरी' मोबाइल पर रेकार्ड कर लिए थे जो उसी रात यूट्यूब पर साझा भी किए; वहाँ अभी भी सुने जा सकते हैं)। प्रेमलताजी को रात को इस निधन की सूचना देने को मन नहीं हुआ।

अभी मार्च के महीने में चिन्ना भाभी और विनोदजी नाना-नानी बनी थीं। दोहिते से खेलने-खिलाने के दिन थे। ऐसी घड़ी में यह विदाई और भी दुखी कर गई है। दोनों बेटियों बकुल और मल्लिका का माँ से इतना जुड़ाव था कि समझना मुश्किल है वे काल का यह निर्दय प्रहार कैसे झेल पाएँगी।

विनोदजी और परिवार को सांत्वना देने को शब्द नहीं हैं। चिन्ना भाभी को आदर के साथ हमारा स्मृतिनमन।

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