अगर आपको भी है खर्राटे लेने की बीमारी, तो हो जाए सतर्क, बढ़ सकता है खतरा
जिन लोगों ने कहा कि वे पांच घंटे से कम नींद लेते हैं, उनमें 7 घंटे सोने वालों की तुलना में स्ट्रोक होने की संभावना 3 गुना ज्यादा थी.
जिन लोगों ने कहा कि वे पांच घंटे से कम नींद लेते हैं, उनमें 7 घंटे सोने वालों की तुलना में स्ट्रोक होने की संभावना 3 गुना ज्यादा थी.
सोते वक्त वैसे तो कई लोगों को खर्राटे लेने की आदत होती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ ऐसे प्रभाव देखना आम बात हो जाती है लेकिन एक सर्वे के अनुसार बताया जाता है कि शांत सोने वालों की तुलना में खर्राटे लेने वाले लोगों में स्ट्रोक होने की संभावना लगभग दो गुना ज्यादा रहती है. बताया जाता है कि खर्राटे लेने वालों में स्ट्रोक का खतरा ज्यादा रहता है. इस अध्ययन में लगभग 4500 बुजुर्ग लोगों को शामिल किया गया था. अध्ययन में इस बात पर गौर किया गया कि क्या नींद की समस्या स्ट्रोक से पीड़ित होने की संभावना से जुड़ी है या नहीं. नींद की समस्याएं किसी व्यक्ति में स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा सकती है। अगर आपको नींद से जुड़ी पांच से ज्यादा समस्या है तो आपको स्ट्रोक का खतरा ज्यादा है-
डिमेंशिया सहित कई बीमारियों का रिस्क
ये जानलेवा स्थिति आमतौर पर ब्रेन को ब्लड की सप्लाई करने वाले ब्लड वैसल्स में रुकावट की वजह से पैदा होती है. 5 में से लगभग 2 लोगों में खर्राटे लेने की समस्या सामान्य रूप से देखी जाती है जबकि पांच में से एक व्यक्ति रात में 7 से 9 घंटे की नींद नहीं लेता है, जिसकी डॉक्टर सलाह देते हैं। कम नींद लेने से भी स्ट्रोक का खतरा बढ़ सकता है। साथ ही दिल की अन्य बीमारियां भी हो सकती हैं।
नींद की कमी से बढ़ता है स्ट्रोक का खतरा!
नींद से जुड़ी समस्याओं ने स्ट्रोक के खतरे को बढ़ाने का काम किया है. स्ट्रोक से पीड़ित 2243 लोगों की तुलना 2253 लोगों से की गई, जो इस स्थिति से पीड़ित नहीं थे. जब लोगों से नींद से जुड़े पैटर्न के बारे में पूछा गया और उनसे पूछा गया कि वो रात में कितने घंटे सोते हैं, उन्हें नींद कैसे आती है, खर्राटे आते हैं या नहीं और तो और नींद के दौरान सांस लेने में दिक्कत होती है या नहीं ??
नींद के पैटर्न में करें सुधार
आपको बता दें जो लोग 5 घंटे से कम की नींद लेते हैं उनमें 7 घंटे सोने वालों की तुलना में स्टॉक होने की संभावना 3 गुना ज्यादा होती है स्लीप एपनिया वाले लोगों (सोते समय सांस लेने में दिक्कत) में भी स्ट्रोक होने की संभावना तीन गुना ज्यादा होती है. डॉ मैककार्थी कहते हैं कि नींद के पैटर्न में सुधार करने से स्ट्रोक का खतरा भी कम हो सकता है.