सुप्रीम कोर्ट करप्शन केस में सरकारी अफसरों के 'कवच' को चुनौती देने वाली याचिका पर करेगा सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में करप्शन के मामले से अगर कोई सरकारी अफसर जुड़ा है तो उनके खिलाफ केस चलाने के लिए एजेंसियों के सामने बड़ी शर्त होती है। पहले उन्हें संबंधित अथॉरिटी से मंजूरी लेनी होती है। मंजूरी नहीं मिली तो चाहे जितने पुख्ता सबूत हों, केस नहीं चल सकता। इस बात को चुनौती दी गई है।

Update: 2023-10-10 12:16 GMT

भ्रष्टाराचर निरोधक कानून के एक प्रा‌वधान को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सहमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह इस मामले में दाखिल याचिका पर 20 नवंबर को सुनवाई करेगा। भ्रष्टाचार निरोधक कानून (Prevention of Corruption Act) के उस प्रावधान को चुनौती दी गई है जिसके तहत किसी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में उसके खिलाफ जांच शुरू करने से पहले संबंधित अथॉरिटी से मंजूरी लेना अनिवार्य किया गया है। जस्टिस बीवी नागरत्ना की अगुआई वाली बेंच ने कहा कि सुनवाई 20 नवंबर को होगी।

2018 में नोटिस जारी हुआ था

सुप्रीम कोर्ट में 20 जुलाई को मामला उठाया गया था। याची ने कहा था कि इस मामले में दाखिल याचिका पर 26 नवंबर 2018 को ही नोटिस जारी किया गया था। इस मामले में जारी नोटिस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 15 फरवरी 2019 तक जवाब दाखिल करने को कहा था। याचिका में भ्रष्टाचार निवारण एक्ट की संशोधित धारा 17(ए) (1) की वैधता को चुनौती दी गई है। भ्रष्टाचार निरोधक कानून में बदलाव कर सरकारी कर्मियों के खिलाफ केस के लिए मंजूरी अनिवार्य कर दिया गया।

केंद्र सरकार से माँगा गया जवाब

याचिकाकर्ता एनजीओ ने कहा है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून में बदलाव कर सरकार ने जो नया प्रावधान किया है उसे निरस्त किया जाए। नए प्रावधान के तहत ये तय किया गया है कि सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ मामले की छानबीन शुरू करने से पहले सरकार की संबंधित अथॉरिटी के मंजूरी लेनी होगी। सुप्रीम कोर्ट में एनजीओ सेंट्रल फॉर पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की ओर से प्रशांत भूषण ने अर्जी दाखिल कर कहा था कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा में जो बदलाव किया गया है और कानून में धारा-17 ए (1) के तहत जो नया प्रावधान किया गया है वह गैरसंवैधानिक है। मामले में केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था।

भ्रष्टाचार निरोधक कानून में हुआ बदलाव

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि धारा-17 ए (1) के तहत प्रावधान किया गया है कि सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ जब मामले की छानबीन शुरू करनी हो तो उसके लिए संबंधित अथॉरिटी से मंजूरी लेनी होगी और इस तरह से ये संविधान के अनुच्छेद-14 व 21 का उल्लंघन है और इस तरह से भ्रष्टाचार निरोधक कानून प्रभावहीन हो जाएगा। ये पहले के प्रावधान को कमजोर करता है इससे करप्शन के मामले में बढ़ोतरी होगी। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर उक्त प्रावधान को निरस्त करने की गुहार लगाई गई है और कहा गया है कि उसे गैरसंवैधानिक घोषित किया जाए।

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