जानिए महान मैथमेटिशियन रामानुज के बारे में और उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों को
जब भी हम मैथमेटिक्स की बात करते हैं, तो हमारे दिमाग में सबसे पहले नाम आता है रामानुजन का। रामानुजन दुनिया के सबसे महान मैथमेटिशियनों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी विशेष विद्या के जरिए दुनिया को विस्मित कर दिया।
जब भी हम मैथमेटिक्स की बात करते हैं, तो हमारे दिमाग में सबसे पहले नाम आता है रामानुजन का। रामानुजन दुनिया के सबसे महान मैथमेटिशियनों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी विशेष विद्या के जरिए दुनिया को विस्मित कर दिया।
उनकी विशेषता थी कि वे मैथमेटिक्स के सभी क्षेत्रों में महारत हासिल कर लेते थे।श्रीनिवास अयंगर रामानुजन दुनिया भर के मैथमेटिशियन के लिए एक प्रेरणा हैं. उन्होंने बहुत कम उम्र का ही जीवन जिया, लेकिन काफी सर्वक्षेष्ठ जीवन जिया.
आज के समय में उन्हें व्यापक रूप से भारत का सबसे बड़ा मैथमेटिशियन माना जाता है. रामानुजन का टीबी की बिमारी से पीड़ित होने के कारण महज 32 साल की आयु में अप्रैल, 1920 को निधन हो गया था. हालांकि, आज वह अपने किए हुए काम के माध्यम से लोगों के बीच जीवित है.
रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के एक साधारण परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा में कोई खास दम नहीं था, लेकिन वे जल्दी ही मैथमेटिक्स में रुचि लेने लगे थे। उनके परिवार वालों को भी यह बात पता चल गई थी कि वे कुछ खास हैं।
रामानुजन के संबंध में एक और रोचक बात है कि वे संख्या 1729 को "हैप्पी नंबर" कहते थे। इस संख्या को हम "करमिक" संख्या भी कहते हैं। रामानुजन को इस संख्या से प्रेरणा मिली थी, क्योंकि यह संख्या सामान्य होने के बावजूद अनेक प्रकार से विशेष होती है।1913 में, रामानुजन का सामना ब्रिटिश मैथमेटिशियन गॉडफ्रे एच. हार्डी से हुआ, जो संख्या सिद्धांत (Number Theory) पर अपने काम के लिए जाने जाते हैं.
इससे उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय से छात्रवृत्ति प्राप्त करने में मदद मिली और उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से भी अनुदान (Grant) प्राप्त हुआ. इसके बाद वे इंग्लैंड चले गए और हार्डी के साथ काम करने लगे.
रामानुजन को 1913 में केम्ब्रिज में स्टीवन्सन प्राइज मिला था। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक मैथमेटिक्स में अपना समय बिताया था। उनकी असाधारण विद्या को देखते हुए, उन्हें 1918 में लंडन के "रॉयल सोसाइटी" का सदस्य बनाया गया था।
प्रोफेसर हार्डी ने एक ऐसा पैमाना बनाया था, जो किसी व्यक्ति की गणितीय क्षमता का मूल्यांकन करता था. जिसमें 0 से 100 की एक लिमिट सैट थी और इस पैमाने पर हार्डी ने खुद को 25 का दर्जा दिया था, जबकि उन्होंने रामानुजन को पूरे 100 का दर्जा दिया.
1919 में रामानुजन भारत लौट आए, लेकिन उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और एक साल बाद 32 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई.
उन्होंने अपना काम तीन नोटबुक और पेपरों के एक विशाल ढेर में छोड़ दिया था, जिसमें अप्रकाशित परिणाम थे. उनकी मृत्यु के बाद कई वर्षों तक इन्हें दुनिया भर के मैथमेटिशियनों द्वारा वेरिफाई किया गया था.
रामानुजन के जीवन से जुड़े ये कुछ रोचक तथ्य हमें उनकी महानता को समझने में मदद करते हैं। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि मैथमेटिक्स हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती है, और हमें इसे समझने की कोशिश करनी चाहिए।