कह कर निलंबित होने का आरोप और निलंबन के खिलाफ धरने की खबर गायब!
इस राजनीति और पत्रकारिता को समझिये – इसमें आपका पैसा तो लगा ही है, भविष्य भी है
संजय कुमार सिंह
इंडियन एक्सप्रेस ने आज बजरंग पूनिया के पद्मश्री लौटाने की खबर को पांच कॉलम में दो कॉलम की फोटो के साथ लीड छापा है। यह खबर टाइम्स ऑफ इंडिया और द टेलीग्राफ में सेकेंड लीड है। द हिन्दू में यह खबर पहले पन्ने पर चार कॉलम में बॉटम स्प्रेड है। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर तीन कॉलम में है। अमर उजाला और नवोदय टाइम्स में भी यह खबर पहले पन्ने पर है लेकिन आज की सबसे बड़ी खबर यही नहीं है। तभी तो दूसरे अखबारों की लीड अलग है। उदाहरण के लिए आज द हिन्दू की लीड का शीर्षक है - इंडिया ब्लॉक ने कहा, सरकार लोगों का मुंह बंद कर रही है, विपक्ष की आवाज दबा रही है। उपशीर्षक है, विपक्षी दलों ने सांसदों के निलंबन के खिलाफ जंतर मंतर पर धरना दिया। राहुल गांधी ने संसद की सुरक्षा में सेंध के लिए मोदी सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया और खरगे ने कहा कि उन्हें सदन में बोलने नहीं दिया गया, राज्यसभा अध्यक्ष धनखड़ की आलोचना की।
अखबार ने अपनी इस लीड खबर के साथ सिंगल कॉलम की दो छोटी खबरें भी छापी हैं। एक का शीर्षक है - संसदीय मामलों के मंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा, विपक्षी सांसदों ने निलंबित किये जाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा है कि कई सांसदों ने ऐसा आग्रह राजनीतिक लाभ के लिए किया। प्रहलाद जोशी मंत्री हैं, कहा है, अखबार में छपा है तो मान लेना चाहिये और जाहिर है कि कहा है तो अखबार में छपने के लिए ही है। जो कहा है उसका सार है, विपक्षी सांसदों ने राजनीतिक लाभ के लिए कहकर निलंबन करवाया। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसा तभी होता जब इसे सार्वजनिक नहीं किया जाता। अगर सार्वजनिक करने से कुछ फायदा होता तो विपक्ष ने वह भी किया होता और मतलब यह है कि विपक्षी सांसदों ने कह कर अपना निलंबन करवाया और संसदीय कार्यमंत्री ने उसे सार्वजनिक कर दिया - देश हित में या पार्टी हिट में या राजनीति ही कर रहे हैं। जनता को तय करना है, कर लेगी।
सिंगल कॉलम की दूसरी छोटी खबर का शीर्षक है, धनखड़ ने विपक्ष के मिलने से मना करने पर प्रतिक्रिया जताई। खबर के अनुसार धनखड़ ने खरगे को चिट्ठी लिखकर उनसे नहीं मिलने पर नाराजगी जताई है। पर मुझे लगता है कि निलंबित होने के बाद या निलंबित सांसदों के प्रतिनिधि के रूप में खरगे को धनखड़ से क्यों मिलना चाहिये? खासकर तब जब संसद के बाहर धनखड़ की मिमिक्री का वीडियो बनाने के लिए राहुल गांधी को दोषी माना गया है। इसे जाट और राज्यसभा के अध्यक्ष के सम्मान से जोड़ा जा चुका है और राष्ट्रपति भी इसपर चिन्ता जता चुकी है और धनखड़ बोल चुके हैं कि प्रधानमंत्री ने उन्हें फोन किया था और वे भी जाट नेता या उपराष्ट्रपति के अपमान से दुखी हैं। स्पष्ट है कि हर कोई राजनीति कर रहा है। और अगर सांसदों के कहने से ही निलंबन किया गया है जैसा प्रहलाद जोशी कह रहे हैं तो निलंबित सांसद (खरगे ही) धनखड़ से मिल क्यों नहीं रहे हैं? अगर कहना यह हो कि खरगे को उनके आचरण के कारण और बाकी के सांसदों को उनके कहने पर निलंबित किया है तो भी सच क्या होगा आप समझ सकते हैं।
दूसरी ओर, मुद्दा यह भी है कि विपक्षी सांसदों ने निलंबन के खिलाफ धरना दिया, रैली की, भाषण हुए क्या उन्हें डर या चिन्ता नहीं थी कि प्रह्लाद जोशी इसे सार्वजनिक कर देंगे तो क्या संदेश जाएगा। सरकार समर्थक मीडिया ने इसे महत्व देने की बजाय धरने की खबर को क्यों गायब कर दिया है? आइये देखें कि इंडियन एक्सप्रेस ने द हिन्दू की इन दोनों खबरों को कैसे छापा है। फ्लैग शीर्षक है, इंडिया ब्लॉक विरोध को संसद के बाहर ले गया, सरकार ने पलटवार किया। चार कॉलम के इस फ्लैग शीर्षक के तहत दो कॉलम की दो खबरें हैं। एक का शीर्षक है - विपक्षी गठजोड़ ने कहा, निलंबन लोकतंत्र को नष्ट करने, हमें चुप करने की राजनीति है। दूसरी खबर का शीर्षक है - सरकार ने कहा, विपक्षी सांसदों ने निलंबित करने के लिए कहा, ध्यान हटाने की कोशिश। लोकतंत्र को नष्ट करने का आरोप और जवाब ध्यान बांटने का - मुझे बराबर का मामला नहीं लगता है। आरोप में दम है पर ध्यान बांटने का आरोप सही भी हो तो कौन सा गुनाह है? ध्यान बांटना भी विधान सभा चुनाव में हार से?
कहने की जरूरत नहीं है कि विधानसभा चुनाव में हार से ध्यान बांटने की कोशिश में अगर कहकर निलंबन करवाया गया है तो सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी को निलंबन की व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए। हालांकि, ध्यान दिया भी होगा और संभव है उसी क्रम में राहुल गांधी का वीडियो बनाना तथा उपराष्ट्रपति की जाति आदि का ख्याल आया हो क्योंकि खरगे का यह कहना ज्यादा भारी था कि, मैं भी कहूं कि मुझे दलित होने के कारण बोलने नहीं दिया जाता है। वैसे भी विधानसभा चुनाव में हार का कारण - ईवीएम हो सकता है। इंडिया समूह हार से ध्यान हटाने के लिए कहकर संसद से निलंबित हो गया और करने वालों ने कर भी दिया यह भाजपा की फेल होती राजनीति ही नहीं हेडलाइन मैनेजमेंट का भी उदाहरण है। आपको याद होगा कि तीन राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद संसद सत्र की घोषणा के मौके पर प्रधानमंत्री ने विपक्ष से कहा था, हार का गुस्सा संसद में न निकालें। इस आधार पर कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सांसदों की मांग के बवजूद संसद में न आकर जीत का घमंड दिखा दिया। पर अखबारों में खबरें ऐसे नहीं छपती हैं।
द टेलीग्राफ ने चार कॉलम की अपनी लीड में इन्हीं दो खबरों को अलग ढंग से प्रस्तुत किया है। फ्लैग शीर्षक है, 2024 के चुनाव का बिगुल जल्दी बज गया (या 2024 के चुनाव की शुरुआती चालें)। दो कॉलम की दो खबरों में एक शीर्षक विपक्ष की तैयारी बताता है तो दूसरे में कहा गया है कि मोदी भी युद्ध यानी चुनाव के मोड में हैं। आक्रोश मोड में: विपक्ष - शीर्षक से संजय के झा ने लिखा है, विपक्षी इंडिया गठजोड़ ने शुक्रवार को लोगों से आह्वान किया कि अगर वे देश में संवैधानिक शासन और लोकतंत्र चाहते हैं तो नरेंद्र मोदी को सत्ता से बाहर करें। इसके साथ उन्होंने सत्तावादी प्रवृत्तियों से लड़ने के अपने उद्देश्य में एकजुट रहने का वादा किया। 146 सांसदों के अभूतपूर्व निलंबन की निंदा करते हुए, जंतर-मंतर पर एक विरोध सभा में अधिकांश वक्ताओं ने कहा कि जो कुछ हुआ वह न केवल कुछ सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि संसदीय लोकतंत्र को नष्ट करने की एक और भयावह साजिश है।
युद्ध के मोड में मोदी - शीर्षक से जेपी यादव ने लिखा है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक चुनावी रणनीति बैठक को संबोधित करने के लिए शुक्रवार शाम को भाजपा मुख्यालय पहुंचे। सूत्रों ने कहा, उन्होंने वस्तुतः 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए बिगुल बजा दिया है। समझा जाता है कि बंद कमरे में हुई बैठक में मोदी ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से चुनावी लड़ाई में कूद पड़ने का आह्वान किया, जो अब कुछ ही महीने दूर है। सूत्रों ने कहा कि भाजपा चुनाव आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम घोषित करने से पहले ही अपने उम्मीदवारों की घोषणा करने की योजना बना रही है। इस शीर्षक और ऐसी खबरों के बीच आज टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड दिल्ली के प्रदूषण पर है। खबर के अनुसार दिल्ली में हवा की 'गुणवत्ता' फिर गंभीर हो गई है इसलिए निर्माण और कारों पर प्रतिबंध शुरू हो गया है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने भी प्रदूषण की ही खबर को लीड बनाया है। शीर्षक है, "प्रदूषित वायु की समस्या का अंत नहीं : एक्यूआई फिर गंभीर जोन में"।
यह पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर है लेकिन मुख्य अखबार की लीड देश की राजनीति से संबंधित खबर ही है। संसद की सुरक्षा में सेंध, निलंबन के मुद्दे पर इंडिया समूह सड़कों पर आया। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस खबर के साथ एक और खबर छापी है, 2024 की चुनाव की तैयारियों में मोदी ने भाजपा नेताओं से मिशन मोड में काम करने के लिए कहा। नवोदय टाइम्स का पहला पन्ना विज्ञापनों से भरा है और खाली जगह में ग्रैप 3 लागू लीड और पद्मश्री लौटायेंगे बजरंग पूनिया, पीएम को लिखा पत्र तीन कॉलम में छोटी सी खबर है। लेकिन अखबार ने अपने दूसरे पहले पन्ने पर सड़कों पर इंडिया (I.N.D.I.A), देश भर में प्रदर्शन को लीड बनाया है। अमर उजाला में हवा खराब, ग्रैप तीन लागू बॉटम स्पेड है जबकि पुंछ में आतंकियों ने चलाई स्टील की गोलियां, जांच करने पहंची एनआईए लीड है। भाजपा, कांग्रेस चुनाव और तैयारियों की खबर यहां पहले पन्ने पर नहीं है।
आज के अखबारों में दिख रहा है कि मिशन मोड में क्या है। अमर उजाला और नवोदय टाइम्स के लिये यह बहुत महत्वपूर्ण खबर नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस ने दोनों पक्षों को बराबर दिखाने की कोशिश की है और इस चक्कर में पूनिया के पद्मश्री लौटाने की खबर को ज्यादा महत्व दिया है। बेशक यह एक दुखद खबर है पर कई खबरों की श्रृंखला में एक है और मेडल को गंगा में प्रवाहित करने के निर्णय पर जब कुछ नहीं हुआ तो अपेक्षित था। इसके अलावा इसी दिन अगर सांसदों के निलंबन के खिलाफ धरने की खबर थी तो निश्चित रूप से वह बड़ी खबर है। खासकर तब जब कांग्रेस के समर्थक भी मानते हैं कि कांग्रेस को भाजपा का विरोध सड़क पर करना चाहिये। कांग्रेस ने 2024 के चुनाव के दबाव में भी ऐसा किया तो यह महत्वपूर्ण है और इसपर भाजपा की प्रतिक्रिया या इस रणनीति का मुकाबला जानने की उत्सुकता किसी को भी रहेगी। इसे बताने का एक तरीका इंडियन एक्सप्रेस का है और दूसरा द हिन्दू का। बीच में हिन्दुस्तान टाइम्स भी है। जिनलोगों ने खबर पूरी तरह गोल कर दी वो तो हैं ही।
मुझे नहीं लगता कि इस तरह का हेडलाइन मैनेजमेंट फोन करके, आदेश देकर या दबाव डालकर करवाया जा सकता है। यह खास विचारधारा के लोगों को पत्रकारिता में प्लांट किये जाने का असर हो सकता है। मेरा अनुमान और अनुभव यही कहता है पर मैं गलत हो सकता हूं। पत्रकारिता और राजनीति का यह कॉकटेल समाज के लिए चिन्ता का विषय है। इसपर बात होनी चाहिये।