हरियाणा का पिछड़ा वर्ग और भाजपा की रणनीति
Haryana's backward class and BJP's strategy
02 अक्तूबर 2023 का दिन भारतीय राजनीति में ऐतिहासिक मोड़ देने वाला दिन साबित होगा। इस दिन नीतीश और तेजस्वी यादव की जोड़ी ने बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े जारी कर पूरे देश में हलचल ही नहीं बेचैनी भी पैदा की। जातीय जनगणना रूपी ब्रहास्त्र का तोड़ फिलहाल तो किसी पार्टी के पास है नहीं। बिहार में 63 फीसदी ओबीसी की जनसंख्या का पता लगने के बाद देश में जातीय जनगणना और ‘जितनी जिसकी भागीदारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी’ की आवाज़ गूंजने लगी। राजनीतिक पार्टियां ओबीसी की संख्या के हिसाब से अपनी रणीतियों में फेरबदल करने लगी। जिसकी आहट हरियाणा में भी सुनाई देने लगी है।
देखना यह होगा कि 2024 के लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों में हरियाणा में पिछड़ा वर्ग को केन्द्र में रखकर भाजपा अपनी नैय्या पार लगा पाएगी या नहीं। प्रदेश में जाट – गैर जाट के मुद्दे पर राजनीति कर रही भाजपा सरकार का आगामी चुनाव में भी फोकस पिछड़ा वर्ग ही रहेगा।
मौजूदा हरियाणा सरकार ने पीपीपी (परिवार पहचान पत्र) के आधार पर 72 लाख परिवारों के आंकड़े जारी किए, जिनमें चार लाख परिवारों का डेटा वेरिफाई ही नहीं हुआ और हजारों परिवार ऐसे होंगे जिन्होंने आवेदन ही नहीं किया होगा। इन आंकड़ों में पिछड़ा वर्ग (ए एवं बी) की संख्या को सार्वजनिक किया गया। जिसमें पिछड़ा वर्ग (ए एवं बी) की आबादी लगभग 35 फीसदी दिखायी गयी। परन्तु प्रदेश में जातीय जनगणना करवायी जाए तो पिछड़ा वर्ग की आबादी 40 से 45 फीसदी होगी, जो मुस्लिम पिछड़ा वर्ग को जोड़ने पर 50 फीसदी तक हो सकती है। अगर पीपीपी के आंकड़ों को सही मान भी लिया जाए तो भी पिछड़ा वर्ग की आबादी के अनुपात में सरकारी एवं सह सरकारी संस्थाओं में उसका प्रतिनिधित्व बहुत कम है।
भाजपा द्वारा ओमप्रकाश धनखड़ के स्थान पर कुरुक्षेत्र से सांसद नायब सैनी को पार्टी प्रदेशाध्यक्ष बनाने पर यह साफ हो गया है कि भाजपा अब खुलमखुल्ला ओबीसी यानी पिछड़ा वर्ग की पिच पर खेलेगी। पिछले दोनों चुनावों में भी भाजपा ने जाट – गैर जाट के नाम पर चुनावी ध्रुवीकरण किया और सत्ता हासिल करने में कामयाब भी रही।
राजनीति के इस अखाड़े की जमीन हरियाणा कांग्रेस नेता मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा पहले ही तैयार कर चुके थे। जनरल केटेगरी में शामिल जातियों को अतिरिक्त आरक्षण देकर पहले ही जाट – गैर जाट का बीज बो दिया जिसकी फसल भाजपा ने जमकर काटी।
2013 में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने जाट, जट सिख, रोड़,त्यागी,बिश्नोई और मुल्ला जाट यानी 06 जातियों को मिलाकर बीसी (सी) वर्ग बना दिया। साथ ही जनरल वर्ग की वो जातियां जो आर्थिक रूप से कमजोर थी उनके लिए ईबीपीजी कैटेगरी बना दी। हुड्डा ने बीसी (सी) तथा ईबीपीजी के लिए क्लास ए और बी के पदों पर 5-5 फीसदी आरक्षण और क्लास सी-डी के पदों पर 10-10 फीसदी आरक्षण लागू कर दिया। जबकि पिछड़ा वर्ग की 45 फीसदी आबादी को क्लास ए – बी में मात्र 10 फीसदी आरक्षण ही मिलता रहा, जो लम्बे संघर्ष के बाद 2014 में बढ़ाकर 15 फीसदी किया गया। कांग्रेस द्वारा पिछड़ा वर्ग की अनदेखी तथा भाजपा की रणनीति ने हरियाणा में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया।
भाजपा ने सरकार में आने के बाद पहले प्लान में ग्रुप डी तथा सी की भर्तियों में इंटरव्यू खत्म करके बड़ा काम किया। जिससे मेरिट में आए एससी और बीसी के लोगों को आरक्षित के साथ – साथ अनारक्षित सीटों पर भी जगह मिली। इंटरव्यू खत्म होने से वह सामंती ढांचा भी टूटा, जिसमें नौकरी पाने के लिए परिवारों को पार्टी के नेताओं या चौधरियों की खाट की पैंध तोड़नी पड़ती थी यानी जी-हुजूरी करनी पड़ती थी। अब प्रदेश में बात प्रचलित है कि जो पढ़ेगा वो नौकरी ले लेगा। यह अलग मसला है कि नौकरियों में ‘एक अनार सौ बीमार’ वाली बात है और हरियाणा में बढ़ती बेरोजगारी दर को रोकने में सरकार नाकामयाब साबित हो रही है।
प्रदेश में पिछड़ा वर्ग ए की संख्या के अनुसार राजनीति में भागीदारी लगभग नदारद थी। भाजपा सरकार के कार्यकाल में पिछड़ा वर्ग (ए) को पंचायती राज और शहरी स्थानीय निकायों में 8 फीसदी आरक्षण मिलने से उनकी राजनैतिक भागीदारी तो बढ़ी है। भाजपा के इस मास्टर स्ट्रॉक से पार्टी को प्रदेश में मजबूती मिलने के साथ ही पिछड़ा वर्ग – ए का पलड़ा भारी हुआ है जिसके बलबूते वे अपने हकों की आवाज़ बुलंद कर पाएंगे।
अब देखना यह होगा कि पिछड़ा वर्ग से भाजपा प्रदेशाध्यक्ष बनाकर भाजपा 2024 के चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण कर पाएगी या नहीं। भाजपा के लिए अब यह राह इतनी आसान नहीं रही क्योंकि दो बड़े मुद्दे पिछड़ा वर्ग को भाजपा की नियत पर सवाल उठाने को मजबूर कर रहे हैं।
पहला - हरियाणा में पिछड़ा वर्ग को क्लास ए और बी के पदों पर जो बीसी (ए) को मात्र 11फीसदी और बीसी (बी) को मात्र 06 फीसदी आरक्षण प्राप्त है, वह ग्रुप सी तथा डी की तर्ज पर 27 फीसदी मिलना चाहिए। पिछड़ा वर्ग में इस बात को लेकर गुस्सा है कि क्या सरकारें उन्हें सिर्फ छोटे पदों पर ही रखना चाहती हैं। पिछड़ा वर्ग की राजनीति करने वाली भाजपा सरकार से 27 प्रतिशत आरक्षण की उम्मीद करने वाला पिछड़ा वर्ग निराशा की ओर जा रहा है जिसका परिणाम सरकार को आगामी चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।
वर्ष 2021 में आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार KUK, MDU रोहतक, GJU हिसार तथा हरियाणा के एडिड कॉलेजों से टीचिंग स्टॉफ में पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी 6 फीसदी से भी कम है यानी घोषित 15 फीसदी आरक्षण से भी बहुत कम। 27 फीसदी या संख्या के आधार पर आरक्षण तो अभी बहुत दूर की बात है।
दूसरा - हरियाणा में बीसी क्रीमीलेयर की आमदनी सीमा 8 लाख से घटाकर 6 लाख कर दी गई और उसमें भी सभी स्रोतों(कृषि और नौकरी) से प्राप्त आय को जोड़ दिया गया। सरकार के इस कदम से पिछड़ा वर्ग में रोष है और इस संबंध में पिछड़ा वर्ग द्वारा कोर्ट में लड़ाई भी लड़ रहा है।
यह जरूर है कि भाजपा ने पिछड़ा वर्ग के लिए धरातल पर कुछ काम किए हैं। परिणामत: पिछले नौ साल तक भाजपा को सत्ता में बनाए रखने के लिए पिछड़ा वर्ग की मुख्य भूमिका रही है। वर्तमान में नायब सैनी को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर भाजपा पिछड़ा वर्ग के दिमाग में नैरेटिव तैयार करना चाहती है कि पिछड़ा वर्ग के असली हितैषी हम हैं। लेकिन हरियाणा में क्लास ए और बी के पदों में 27 फीसदी आरक्षण न होना और क्रीमीलेयर की नयी अधिसूचना को लेकर पिछड़ा वर्ग में रोष है। पिछड़ा वर्ग की इन जमीनी और जरूरी मांगों को पूरा नहीं किया गया तो एंटीइनकम्बेंसी और पिछड़ा वर्ग भाजपा का सूपड़ा साफ कर सकते हैं।
------डॉ. मलखान सिंह