अंथनी गुटारेस ने अपनी शामत खुद ही बुलायी है। बताइए, इस्राइल वालों को नाराज कर दिया, इतना नाराज कर दिया कि उन्होंने इस्तीफा ही मांग लिया। अरे, संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव हो, तो इसका मतलब यह थोड़े ही है कि किसी के भी झगड़े में टांग अड़ा दोगे। किसी और के नहीं, इस्राइल के झगड़े में, जिसकी पीठ, कमर, नितंब, सब पर अमरीका और उसके सब भाई बंदों का हाथ है। भड़ से मुंह खोला और लगे मानवतावादी युद्धविराम मांगने!
कहां तो तेल अवीब में बाइडन के बाद सुनक, सुनक के बाद जर्मन, जर्मन के बाद फ्रांसीसी, फ्रांसीसी के बाद कनाडाई, कंधे थपथपाने वालों की तू निकल, मुझे आने दे लगी हुई है। फौजी मदद के वादे और एलान शुरू ही हुए हैं। और कहां ये आ गए युद्ध विराम मांगने। कहते हैं, छ: हजार से ज्यादा फिलिस्तीनी मारे गए, इसलिए युद्ध विराम होना चाहिए। गाजा पट्टी पर रहने वाले बीसियों लाख लोगों में जो जिंदा हैं, उनकी हालत खराब है, इसलिए युद्ध विराम चाहिए। दवा, पानी, खाना, ईंधन, सब का अकाल पैदा हो गया है, सबको मदद पहुंचानी है, इसलिए मानवतावादी युद्ध विराम चाहिए। पर इस्राइल ने युद्ध तो अभी शुरू भी नहीं किया है, अभी से युद्ध विराम कैसे?
हवाई हमलों में पांच-छ: हजार का मरना तो कोई युद्ध नहीं है; ऐसे तो हवाई हमलों में इस्राइल शांतिकाल में भी हजारों नहीं, तो सैकड़ों तो मारता ही रहा है। तब तो किसी ने नहीं कहा कि युद्ध विराम करो! फिर मरने वालों की गिनती हजारों में पहुंचते ही युद्ध विराम, युद्ध विराम का शोर क्यों? खामखां में मोदी जी जैसों के लिए दुविधा खड़ी हो जाती है कि बाकी दुनिया की तरह युद्ध रोकने का समर्थन करें या अपने पश्चिमी दोस्तों की तरह युद्ध जारी रखने का या फिर इसमें भी मणिपुर नीति अपनाएं और चुप लगा जाएं।
वैसे इस्राइल को और उसके दोस्तों को सबसे ज्यादा गुस्सा इस पर आ रहा है कि गुटारेस फिलिस्तीनियों को इंंसान मानने की मांग कर रहे हैं। अब भी, इंसान! उंगली से शुरू करने देंगे, तो पहुंचा पकडऩे तक पहुंचने में देर नहीं करेंगे। कल कहेंगे फिलिस्तीनियों को भी, इस्राइलियों से ज्यादा नहीं, तो उनके बराबर तो अपने देश का अधिकार है ही; उसकी आजादी के लिए लड़ने का भी। क्या ऐसी बराबरी पर भी इस्राइल को गुस्सा नहीं आएगा?
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक 'लोकलहर' के संपादक हैं।)