कश्मीर में आतंकियों के हाथ मारे गए सरपंच अजय पंडिता की बेटी की ललकार- ना मेरे पिता डरे, ना मैं
उन्होंने अपने नाम के आगे 'भारती' लगा दिया, इतना प्यार करते थे वह अपने देश से। वह कोई सैनिक नहीं थे लेकिन वह देश के लिए जीते थे।'
अनंतनाग : जम्मू-कश्मीर के शोपियों में आतंकियों के ताबड़तोड़ एनकाउंटर से हिजबुल मुजाहिदीन बौखला गया है। इसी बौखलाहट में उसने अनंतनाग जिले के लारकीपुरा इलाके के सरपंच अजय पंडिता को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। अब अजय पंडिता की बेटी ने एक निजी न्यूज चैनल से बातचीत में कहा है कि ना तो उनके पिता किसी से डरे, ना ही वह किसी से डरती हैं। अजय पंडिता की बेटी ने जोर देकर कहा है कि हम कश्मीर वापस जरूर जाएंगे।
अजय पंडिता ने अपने लिए सुरक्षा की मांग की थी। इसपर उनकी बेटी ने कहा, 'कोई इंसान तभी सुरक्षा मांगता है, जब उसे खतरा हो। जब वह सरपंच चुने गए तब तो सरकार की जिम्मेदारी थी, सुरक्षा देने की। देश के लिए काम करने वालों का भी ध्यान नहीं रखा जाता। अगर आज पापा का बदला नहीं लिया गया तो क्या असर पड़ेगा देशपर? उन्होंने अपने नाम के आगे 'भारती' लगा दिया, इतना प्यार करते थे वह अपने देश से। वह कोई सैनिक नहीं थे लेकिन वह देश के लिए जीते थे।'
अजय पंडिता की बेटी ने कहा- देश कब करेगा पापा की सेवा
उनकी बेटी ने आगे कहा, 'मेरे पापा ने सिर्फ अपने गांव से नहीं बल्कि पूरे इंडिया से प्यार किया। जैसे उनके कर्म थे, वह बहुत आगे जाते। वह कभी अपने काम से पीछे नहीं हटते। वह देश की सेवा कर रहे थे, देश उनकी सेवा कब करेगा? मैं मानती हूं आर्मी वाले और पुलिस वाले भी यही करते हैं, मेरे पापा ने भी बहुत कुछ किया। उन्होंने बहुत प्लानिंग की थी कि देश के लिए बहुत कुछ करना है। उन्हें इसीलिए मारा गया कि वह एक कश्मीर पंडित थे।'
अजय पंडिता की बेटी ने आगे कहा, 'अब इस देश की जिम्मेदारी है कि वह मेरे पिता के हत्यारों को खोजे। हमारे देश के पास मैनपावर है और हम निडर हैं। मैं कह रही हूं कि मैं किसी से नहीं डरती। मेरे पापा ने भी कभी अनुच्छेद 370 हटने का कभी इंतजार नहीं किया। वह कभी डरते नहीं थे। वह निडरता से वहां गए और वहां सर्व किया। हम भी नहीं डरते हैं, वहां वापस जरूर जाएंगे।'
'बदला मुझे नहीं, देश को लेना है'
शीन पंडिता ने आगे कहा, 'मेरे पापा के लिए मुझे नहीं देश का बदला लेना है क्योंकि वह देश की सेवा कर रहे थे। मेरे पापा तिरंगे में लिपटकर गए। मैं भी देश की सेवा करते हुए तिरंगे में लिपटकर जाने को अपनी खुशनसीबी समझूंगी लेकिन उनकी हत्या का बदला लिया जाना बेहद जरूरी है। यहां तो मारने वाले खुलेआम कह रहे हैं कि हां हमने मारा है। यह कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है।'