J&K : रोशनी घोटाले में फारुक अब्दुल्ला का भी नाम, सरकारी जमीन हड़पने का आरोप

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला पर सरकारी जमीन हड़पने का आरोप लगा है

Update: 2020-11-24 14:44 GMT

जम्मू : जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला पर सरकारी जमीन हड़पने का आरोप लगा है। यह मामला जम्मू के सुजवां का जहां आरोपों के मुताबिक रोशनी एक्ट के तहत फारुक अब्दुलला ने तीन कनाल जमीन खऱीदी लेकिन बगल की सात कनाल जमीन पर कब्जा कर लिया।

25 हज़ार करोड़ के रोशनी जमीन घोटाले में फारुक अब्दुल्ला पर फारुक में 10 करोड़ की सरकारी जमीन हड़पने का आरोप लगा है। यह मामला जम्मू के सुजवां में जंगल की जमीन पर कब्जे का है। आरोपों के मुताबिक फारुक अब्दुल्ला ने सुजवां में 3 कनाल जमीन खरीदी 3 कनाल का पजेशन लेने के बजाय 7 कनाल की जमीन पर कब्जा कर लिया।

आपको बता दें कि रोशनी घोटाले में पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बड़े नेताओं के नाम सामने आए हैं। इनमें पूर्व वित्त मंत्री हसीब द्राबू, शहजादा बानो, एजाज़ हुसैन द्राबू का नाम शामिल है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व कांग्रेस नेता केके अमला का भी घोटाले में नाम आया है। हसीब द्राबू के रिश्तेदार इफ्तिखार अहमद द्राबू का नाम भी शामिल है। पूर्व IAS अफ़सर शफ़ी पंडित पर घोटाले में शामिल होने का आरोप है। वहीं होटल कारोबारी मुश्ताक अहमद छाया पर भी सरकारी जमीन हड़पने का आरोप है।

दरअसल रोशनी एक्ट 2002 में फारूक अब्दुल्ला के सीएम रहते अस्तित्व में आया था। इसमें कहा गया था कि 1990 तक जम्मू-कश्मीर के जिस नागरिक के पास जो जमीन है उसपर उसका कब्जा बना रहेगा लेकिन नागरिकों को कुछ फीस चुकानी होगी। इस फीस से सरकार को करीब 25 हजार करोड़ रुपए की कमाई होगी और इस पैसे को जम्मू-कश्मीर में बिजली इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने में खर्च किया जाएगा। बिजली की वजह से ही इस एक्ट को रोशनी एक्ट का नाम दिया गया था।

फारुक अब्दुल्ला के बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में जब पीडीपी की सरकार बनी तो उस एक्ट में बदलवा करते हुए यह कहा गया कि अब 1990 नहीं बल्कि 2003 तक जिस नागरिक के पास जितनी जमीन होगी उसे इस एक्ट में शामिल किया जाएगा। इसी तरह बाद में जब गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने समय की मियाद 2007 तक कर दी और कहा कि 2007 जिस नागरिक के पास जितनी जमीन होगी वह इस एक्ट के तहत कवर होगी।

ऐसा माना जाता कि चूंकि हर सरकार इस एक्ट की अवधि बढ़ा रही थी तो ऐसे में राज्य के अंदर जमीनों को कब्जे करने का प्रचलन बढ़ गया और जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक रसूख वाले तथा पैसे वाले लोग जमीनों पर कब्जा करने में लगे हुए थे। उल्टे सरकार ने इस एक्ट से जिस 25000 करोड़ रुपए की कमाई का लक्ष्य निर्धारित किया था उसका आधा प्रतिशत से भी कम पैसा सरकारी खजाने में जमा हो सका। सरकार के खजाने में 80 करोड़ रुपए भी जमा नहीं हो सके। अब कोर्ट ने इस एक्ट को गैरकानूनी करार दिया है। 

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