मध्यप्रदेश में कांग्रेस की आपसी फूट का फायदा भारतीय जनता पार्टी ने उठा लिया है। क्योंकि जब कांग्रेस मौका दे रही है थी अमित शाह और मोदी ने समय रहते चौका मार दिया है। अब मध्यप्रदेश में कर्नाटक की तर्ज पर बीजेपी की सरकार बन जाएगी।
वैसे भी जब महाराष्ट्र में बीजेपी की किरकिरी हुई थी तभी यह कयास लगाया जाने लगा था कि मध्यप्रदेश में जल्द ही कांग्रेस का शासन चला जाएगा। इधर सिंधिया लगातार अपनी कीमत वसूल करना चाह रहे थे। पहले टिकिट वितरण में अपनी चलाई फिर मंत्री बनाने में भी अपनी चलाई तो कांग्रेस में यह बात साफ़ हो चुकी थी कि सिंधिया अपनी पूरी कीमत वसूलना चाह रहे थे।
इससे पहले भी कांग्रेस को लगा था एमपी में झटका
सिंधिया राजघराने के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया अगर भाजपा में शामिल हो रहे हैं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि राजमाता विजया राजे सिंधिया ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस से की थी और बाद में वे जनसंघ में आईं और फिर भाजपा की नींव रखने और उसे स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके आदर्शों का पालन भाजपा में रहकर उनकी बेटियां वसुंधरा राजे सिंधिया एवं यशोधरा राजे सिंधिया कर रहीं हैं।
उधर माधवराव सिंधिया ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत जनसंघ से की और बाद में वे जनसंघ को छोड़कर कांग्रेस में आ गए थे। यहां एक समय ऐसा आया जब उन्हें आत्मसम्मान को ठेस पहुंची तो उन्होंने नई पार्टी मप्र विकास कांग्रेस पार्टी की नींव रखी थी। लेकिन बाद में उनकी कांग्रेस में वापसी हो गई थी। उनके आसयिक निधन के बाद राजनीति उत्तराधिकारी के रूप में उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस में राजनीतिक सफर शुरू हुआ और उन्होंने इसे जनसेवा का माध्यम बनाया। साथ ही अपने पिता के अधुरे विकास के सपने को साकार करना ही लक्ष्य रखा। आमसभाओ में उनके भाषण भी इसी के इर्द-गिर्द घूमते रहे।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता में वापसी दिलाने के लिए उन्होंने स्टार प्रचारक के रूप में पूरे में दौरे कर जनसभाओं के माध्यम से माहौल बनाने खासा योगदान दिया। जब मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तो राजा दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ का नाम आगे कर दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ को कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष का पद छोड़ना चाहिए था, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। सत्तासीन होने के बाद कमलनाथ अहंकारी हो गए । लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के ख़राब प्रदर्शन एवं गुना संसदीय क्षेत्र से ज्योतिरादित्य सिंधिया के हारने के बाद उनके समर्थकों ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की मांग उठाई लेकिन कमलनाथ मुख्यमंत्री के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद भी सिंधिया को देना नहीं चाहते थे। इसी राजहठ और लगातार ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा करना कमलनाथ को ही नहीं बल्कि पूरी कांग्रेस को महंगा पड़ा है।
आज वही इतिहास दौहरा रहा है जब तत्कालीन मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा को राजमाता विजया राजे सिंधिया की उपेक्षा में सरकार गंवाना पड़ी थी और आज ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा कमलनाथ सरकार पर भारी पड़ी। इधर कांग्रेस से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का भाजपा में जाना अपनी दादी और पिता के पदचिन्ह पर चलना इतिहास दौराने की पुनरावृत्ति ही मानी जाएगी।
ज्योदिरादित्य के इस्तीफे पर बुआ यशोधरा राजे ने क्या कहा
ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से इस्तीफे के बाद यशोधरा राजे सिंधिया ने ट्वीट कर उनके इस कदम की प्रशंसा की है। उन्होने लिखा कि राजमाता के रक्त ने लिया राष्ट्रहित में फैसला साथ चलेंगे, नया देश गढ़ेंगे, अब मिट गया हर फासला। ज्योतिरादित्य की बुआ ने कहा कि मैं उनके द्वारा कांग्रेस छोड़ने के साहसिक कदम का मैं आत्मीय स्वागत करती हूँ।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के इस्तीफे के बाद कांग्रेस दो खानों में बंट गई। एक तरफ वे लोग हैं जिनका कहना है कि सिंधिया को मनाया जाना चाहिए था। दूसरी तरफ वे हैं जिनका कहना है कि सिंधिया को मुख्यमंत्री या प्रदेश अध्यक्ष न बनाकर अच्छा किया।बनाने के बाद अगर कभी हटाना पड़ता तब फिर यही करते।
अब कुल मिलाकर कांग्रेस के 22 विधयाक इस्तीफा दे चुके है।