हुआ भी वही जो हीरा बा चाहती थीं, मां बन कर सदा जीती रहेंगी

जब कभी नरेंद्र मोदी अपनी मां से मिलते वो हमेशा कहा करती "मैं मरते समय तक किसी की सेवा नहीं लेना चाहती, बस ऐसे ही चलते-फिरते चले जाने की इच्छा है".

Update: 2022-12-30 08:15 GMT

मां बन कर सदा जीती रहेंगी हीरा बा

(18 जून 1922 - 30 दिसंबर 2022)

18 जून को 100 साल पूरे हुए थे. यह जन्म शताब्दी वर्ष था. पूरे परिवार के लिए. घर पर भजन कीर्तन का आयोजन हुआ था. हीरा बा मगन होकर भजन गा रही थीं, मंजीरा बजा रही थीं. ऊर्जा से ओत-प्रोत. 195 दिन ही पूरे हुए थे जब घर में यह नज़ारा था. अब यह सफर खत्म हो गया है.

जब कभी नरेंद्र मोदी अपनी मां से मिलते वो हमेशा कहा करती "मैं मरते समय तक किसी की सेवा नहीं लेना चाहती, बस ऐसे ही चलते-फिरते चले जाने की इच्छा है".

हुआ भी वही जो हीरा बा चाहती थीं. दो दिन पहले ही अहमदाबाद के यूएन मेहता अस्पताल में भर्ती हुई थीं. सांस की तकलीफ और कफ की शिकायत. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तुरंत अस्पताल पहुंच गये थे. परिवार के बाकी लोग भी सेवा में तत्पर रहे. मगर, हीरा बा ने सेवा का मौका ही नहीं दिया. 30 दिसंबर की सुबह 3.30 बजे परलोक सिधार गयीं.

हीरा बा ने सिर्फ त्याग किया. सौ साल पहले जब चंद दिनों की थीं हीरा बा, तब उनकी मां चल बसी थीं. उन्हें मां का प्यार भी नसीब नहीं हुआ था. अपने घर में खुद बड़ी थीं और जब शादी हुई तो बड़ी बहू बनकर ही ससुराल पहुंचीं. बड़ा परिवार और छोटा मकान. न खिड़की, न बाथरूम और ना ही शौचालय. मिट्टी की दीवारें और खपरैल छत. डेढ़ कमरे में परिवार के 8 लोग रहते.

सुबह चार बजे उठने की आदत हीरा बा को उनके पति दामोदर दास मूलचंद मोदी ने लगायी या फिर खुद उन्होंने- कहना मुश्किल है. प्रभातियां और लोरियां गुनगुनाते दिनचर्या शुरू हो जाती. हीरा बा सुबह उठकर अनाज पीसने, काटने से लेकर चूल्हा-चौकी में जुटी रहतीं.

जैसा कि नरेद्र मोदी ने अपनी मां की जन्मशताब्दी पर लिखे ब्लॉग में बताया है कि हीरा बा दूसरों के घर बर्तन भी मांजा करती थीं. चरखा भी चलाती थीं. कपास के छिलके से रूई निकालने का काम, रूई से धागे बनाने का काम भी वह करतीं. कपास के छिलकों के कांटे बच्चों को चुभ न जाएं इसकी भी चिंता करतीं.

बरसात का पानी तक बचा कर काम में लाना, घर सजाना, साफ-सुथरा रखना, जमीन को गोबर से लीपना हीरा बा की आदत में शुमार था. खाना उपले पर ही बनातीं. फिर भी कभी धुएं से दीवार को गंदा नहीं होने देतीं. लीपने-पोतने का काम भी जारी रहता. साफ-सफाई इतनी कि चादर पर धूल का एक कण भी बर्दाश्त नहीं करतीं.

नाली की सफाई के लिए जब कभी कोई आता तो हीरा बा उन्हें बिठाकर चाय जरूर पिलातीं. सेवा प्रदाताओं के बारे में एक बड़ा विजन साथ लेकर जीतीं रहीं हीरा बा. गर्मी के दिनों में मिट्टी के बर्तनों में दाना और पानी रखना, कुत्तों के भूख की भी चिंता करना बहुत बड़े सद्गुण लेकर वह जीती रहीं. गायों को घी लगी रोटी खिलाना ऐसे ही सद्गुणों में शामिल था.

अन्न बर्बाद नहीं होना चाहिए. यह सीख नहीं जीवन धर्म था. भोज में उतना ही लेतीं जितना खा सकतीं. एक भी दाना छोड़ने का सवाल ही नहीं होता. नियम से खाना, तय समय पर खाना और चबा-चबा कर खाना उनकी आदत में शुमार था.

हीरा बा अपने बड़े बेटे के साथ बद्रीनाथजी केदारनाथजी के दर्शन करने गयीं. रास्ते में लोगों को पता लग गया कि नरेंद्र मोदी की मां हैं. खूब आवभगत हुई. मान-सम्मान हुआ. किसी ने कंबल दी, किसी ने चाय पिलाई. हीरा बा ने अपने इस अनुभव को बेटा नरेंद्र के साथ साझा किया, "कुछ तो अच्छा काम कर रहे हो तुम, लोग तुम्हें पहचानते हैं."

जब नरेंद्र मोदी पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री की शपथ ले रहे थे तब उस समारोह में हीरा बा शामिल थीं. आगे कभी किसी अवसर पर वह सार्वजनिक कार्यक्रमों में अपने बेटे के साथ नहीं रहीं. जब कभी नरेंद्र मोदी अहमदाबाद जाते तो अपनी मां से मिलने जरूर जाते. दुनिया मां-बेटे के मिलन की इन तस्वीरों को देखा करती.

हीरा बा को अक्षर ज्ञान नहीं था. फिर भी जो शिक्षा, जो नजरिया, जो जीवन शैली हीरा बा ने जीकर दिखलाया है, वह दुर्लभ है. कभी गहनों की तरफ आकर्षण नहीं रहा. हीरा बा के नाम कभी कोई संपत्ति नहीं रही. पूजा-पाठ, परोपकार और आस्था के बीच अपनी गति से जीवन जीती रहीं. मगर, कभी अंधविश्वास का वरण नहीं किया. मां के परोपकारी और निश्छल स्वरूप में हमेशा जीती रहेंगी हीरा बा.

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