दुनिया को बदलने और गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत देने वाले न्यूटन का जन्म कब हुआ ?

Update: 2019-09-18 08:07 GMT

सत्यम सिंह बघेल

कोई भी कार्य विस्तृत सोच के बिना सम्भव नही है। मेरी शक्तियां बहुत साधारण हैं। मैने अपने आपको कड़ी मेहनत के बाद ऐसा बनाया है। मेरी सफलता का राज है, सतत अभ्यास। ये शब्द हैं, प्रसिध्द वैज्ञानिक आइज़क न्यूटन के। न्यूटन ने कई ऐसे सिद्धांत दिए हैं जिन पर भौतिक विज्ञान की नींव पड़ी है। गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत इनमें से एक है। साथ ही वे एक महान गणितज्ञ, भौतिक वैज्ञानिक, ज्योतिष एवं दार्शनिक थे।

दुनिया को बदलने और गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत देने वाले न्यूटन का जन्म 25 दिसंबर 1642 (ग्रेगोरियन कैलेंडर अनुसार 4 जनवरी 1643) को हुआ। जन्म के समय न्यूटन सामान्य से काफी कमजोर जन्मे थे, इतने कमजोर, इतना छोटा कि शरीर एक चौथाई गैलन जैसे छोटे से मग में समा सकता थे। उनके जन्म से पहले ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। इस वजह से बचपन में उन्हें बहुत अधिक आर्थिक तंगियों का सामना करना पड़ा और उनकी मां चाहती थी कि न्यूटन पढ़ाई छोड़ खेती करें, किन्तु न्यूटन को खेती करना पसंद नही था। बाद में उनकी माँ ने दूसरी शादी कर ली थी और न्यूटन को दादा-दादी के पास छोड़कर अपने दूसरे पति के साथ चली गई थीं। न्यूटन की दिमागी हालत पर अपनी पारिवारिक स्थिति का बहुत असर पड़ा।

वे बचपन में हकलाते थे, ठीक से बोल नहीं पाते थे, इस वह से अपने विचार सही से व्यक्त नहीं कर पाते थे। पारिवारिक, आर्थिक, मानसिक, शारीरिक हर तरह की विषम परिस्थितियों ने न्यूटन को काफी गुस्सैल बना दिया था और लोगों से कम ही वास्ता रखते थे। उनके इस तरह के व्यव्हार की वजह से लोग सनकी और पागल समझने लगे थे। किन्तु उन्होंने लोगों की परवाह किये बगैर वे अपने कार्यों में लगे रहे। कालेज की पढ़ाई के दौरान, फीस भरने और खाना आदि के प्रबंधन के लिए न्यूटन ने अपने कॉलेज में एक कर्मचारी के रूप में भी कम किया। अगस्त 1965 में कालेज की डिग्री प्राप्त होने के बाद, कालेज में रहते हुए इस तथ्य पर शोध कर रहे थे कि धरती सूर्य के ईर्द-गिर्द गोल नहीं बल्कि दीर्घ वृत्ताकार परिक्रमा करती है, साथ ही ऐसी कई बातों पर उनकी खोज चल ही रही थी। उसी दौरान पूरे शहर में प्लेग की भीषण महामारी फ़ैल गयी।बीमारी के भीषण रूप धारण कर लेने पर बचाव के रूप में विश्वविद्यालय को बंद कर दिया गया।

घर जाने से पहले वे एक बाग मे पेड़ के नीचे बैठे सोच रहे थे कि अब क्या किया जाये। तभी उनके बगल में पेड़ से एक सेव गिरा। उन्होंने सोचा कि ये सेब सीधा ही क्यों गिरा, अगल-बगल या ऊपर क्यों नहीं गिरा। चिंतन करने लगे कि, सारी चीजें नीचे क्यों गिरती है? इसका मतलब धरती उसे खींच रही है, मतलब उसमें आकर्षण है। फिर न्यूटन ने इस प्रश्न का उत्तर खुद ही खोजने की ठान ली। बहुत सालों तक न्यूटन इस पर शोध करते रहे और सबको ये बताया कि पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण बल (Gravity) नाम की एक शक्ति है।

दृढ़ इच्छा शक्ति और लगन के साथ अपने कार्यों में रम जाने वाले न्यूटन ने 'भार' और 'द्रव्यमान' के अंतर को भी समझाया। साथ ही साथ प्रकाश के क्षेत्र में काम करते हुए न्यूटन ने बताया कि सफ़ेद प्रकाश दरअसल कई रंगों के प्रकाश का मिश्रण होता है। न्यूटन ने अपने अविष्कार में सार्वत्रिक गुरुत्व और गति के तीन नियमों का वर्णन भी किया जिसने अगली तीन शताब्दियों के लिए भौतिक ब्रह्मांड के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। यांत्रिकी में, न्यूटन ने संवेग तथा कोणीय संवेग दोनों के संरक्षण के सिद्धांतों को स्थापित किया। उन्होंने शीतलन का नियम दिया और ध्वनि की गति का अध्ययन किया। गणित में, अवकलन और समाकलन कलन के विकास का श्रेय गोटफ्राइड लीबनीज के साथ न्यूटन को जाता है।

न्यूटन को आम तौर पर सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय का श्रेय दिया जाता है, जो किसी भी घात के लिए मान्य है। उन्होंने न्यूटन की सर्वसमिकाओं, न्यूटन की विधि, वर्गीकृत घन समतल वक्र (दो चरों में तीन के बहुआयामी पद) की खोज की, परिमित अंतरों के सिद्धांत में महत्वपूर्ण योगदान दिया, वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भिन्नात्मक सूचकांक का प्रयोग किया और डायोफेनताइन समीकरणों के हल को व्युत्पन्न करने के लिए निर्देशांक ज्यामिति का उपयोग किया। उन्होंने लघुगणक के द्वारा हरात्मक श्रेणी के आंशिक योग का सन्निकटन किया, (यूलर के समेशन सूत्र का एक पूर्वगामी) और वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने आत्मविश्वास के साथ घात श्रृंखला का प्रयोग किया और घात श्रृंखला का विलोम किया।

न्यूटन अपने वैज्ञानिक कामों में इतने रम चुके थे कि उनकी मृत्यु के बाद, उनके शरीर में भारी मात्रा में पारा पाया गया, जो उनके रासायनिक व्यवसाय के परिणाम को दर्शाता है। गरीबी लाचारी और तमाम तरह की चुनौतियों का सामना कर साधारण व्यक्ति से असाधरण व्यक्तित्व तक का सफर करने वाले न्यूटन के जीवन और उनके संघर्ष से यह सन्देश तथा प्रेरणा मिलती है कि व्यक्ति चाहे कैसी भी विषम परिस्थिति में हो और कितनी भी चुनौती सामने आये। यदि वह लगन के साथ निरंतर अभ्यास और कठिन परिश्रम करता है तो एक दिन जरूर शून्य से चलकर शिखर पर पहुंच ही जाता है।

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