इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में सोमवार को तल्ख टिप्प्णी की है। कोर्ट ने कहा, केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र ने किसानों को धमकाने वाला कथित बयान नहीं दिया होता तो शायद लखीमपुर खीरी कांड होता ही नहीं। न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने चार आरोपियों अंकित दास, लवकुश, सुमित जायसवाल व शिशुपाल की जमानत अर्जी खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
अदालत ने कहा, उच्च पद संभालने वाले राजनीतिक व्यक्तियों को सार्वजनिक बयान सभ्य तरीके से यह सोच कर देना चाहिए कि उसका अंजाम क्या होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब क्षेत्र में धारा 144 लगी थी तो दंगल का आयोजन क्यों किया गया? यह न्यायालय विश्वास नहीं कर सकता कि उपमुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य की जानकारी में नहीं रहा होगा कि क्षेत्र में धारा 144 के प्रावधान लागू हैं।
इसके बावजूद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में मुख्य अतिथि आदि के रूप में उपस्थित रहने का निर्णय लिया।
न्यायालय ने चार्जशीट का जिक्र करते हुए कहा कि किसान तो शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे। न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा 'टेनी' व उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की इस मामले को लेकर आलोचना की।
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने खीरी कांड के आरोपितों अंकित दास, सुमित जायसवाल, लवकुश और शिशुपाल की जमानत याचिकाएं खारिज कर दी हैं। न्यायालय ने कहा कि अभियुक्तों के विरुद्ध उपलब्ध मजबूत साक्ष्यों को देखते हुए उन्हें जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता। यह आदेश पीठ ने उपरोक्त अभियुक्तों की ओर से दाखिल अलग-अलग जमानत याचिकाओं पर पारित किया।
सोमवार को ही आशीष मिश्रा उर्फ मोनू की जमानत याचिका पर भी सुनवाई होनी थी। हालांकि सुनवाई टल गई है। अब उसकी जमानत पर अगली सुनवाई के लिए 26 मई की तिथि नियत की गई है। उल्लेखनीय है कि आशीष की मंजूर जमानत को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था और मामले को वापस हाईकोर्ट नए सिरे से सुनवाई के लिए भेज दिया था।