वामपंथियों की आंखों के तारे कन्हैया लेफ्ट से क्यों हो गए किनारे? पढ़िए अंदर की कहानी
कन्हैया कुमार कम समय में अच्छी खासी चर्चा बटोरने में कामयाब रहे हैं। उन्हें वामपंथियों की आंखों का तारा माना जाने लगा फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि उन्होंने अलग राह पकड़ने की सोच ली। जी हां, JNU छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और सीपीआई नेता कन्हैया कुमार कांग्रेस में शामिल होने जा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या वजह रही कि फायरब्रांड नेता को सीपीआई का दामन छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। बताया जा रहा है कि कन्हैया कुमार के राष्ट्रीय स्तर पर प्रमोशन को लेकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के भीतर मतभेद पैदा हो गए थे और शायद इसी वजह से पूर्व छात्रनेता को पार्टी से बाहर होने का फैसला लेना पड़ा।
पार्टी के सूत्रों का कहना है कि अपने जोरदार भाषण और हिंदीभाषी इलाकों से कनेक्शन के चलते कन्हैया कुमार जनसभाओं में भीड़ खींचने वाले माने जाने लगे थे, यह एक फैक्टर बना जिसके चलते कम्युनिस्ट पार्टी के टॉप नेताओं में एक घबराहट सी देखी जा रही थी।
पार्टी के सूत्रों ने यह भी स्वीकार किया कि कन्हैया कुमार को देशभर में रैलियां करने का मौका दिया गया। यह भी समझा जा रहा है कि उनके बाहर होने से पार्टी पर कोई बड़ा असर नहीं होगा क्योंकि उसका अपना काडर बेस है और विचारधारा केंद्र में रहती है। पूर्व में किसान नेता और सीपीआई के कद्दावर नेता योगेंद्र शर्मा को पार्टी से सस्पेंड किए जाने के मामले का जिक्र करते हुए एक नेता ने कहा कि पार्टी पर इस घटनाक्रम का कोई असर नहीं हुआ था। उन्होंने कहा, 'सीपीआई एक ऐसी पार्टी है जो व्यक्ति विशेष की बजाय राजनीति और अपनी विचारधारा पर जोर देती है। ऐसे में कन्हैया कुमार का जाना केवल एक अस्थायी झटका है, स्थायी नहीं।'
वहीं, पार्टी चीफ डी. राजा ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की। एक अन्य नेता ने कहा कि कन्हैया का पार्टी छोड़ना यह दिखाता है कि उन्होंने अपनी विचारधारा के साथ समझौता कर लिया है और सीपीआई से बाहर अवसरवादी रास्ता तलाश लिया।