अनुदेशक खबर: उपेक्षा का मारा अनुदेशक बेचारा

हाय रे अनुदेशक !.. तेरी बस यही कहानी, उपेक्षा,लाचारी और गुमनामी

Update: 2022-12-27 06:00 GMT

कहते हैं वर्तमान समाज में अगर आपको इज्जत पानी है तो आपके पास पैसे का रहना बहुत जरूरी है अगर आपके पास पैसा नहीं है तो आपकी कहीं इज्जत नहीं है, चाहे वह अपना घर ही क्यों न हो, चाहे वह अपना विद्यालय ही क्यों न हो।

कुछ ऐसी ही स्थिति है उत्तर प्रदेश के जूनियर विद्यालयों में पढ़ाने वाले अनुदेशकों की। कहने को तो ये शिक्षक हैं लेकिन इनकी स्थिति उन शिक्षकों जैसी नहीं है जैसी स्थिति ज्यादा तनख्वाह पाने वाले नियमित शिक्षकों की है।

विद्यालय में नहीं मिलता सम्मान

हालत यह है कि इनको विद्यालय में भी सम्मान नहीं मिलता है। विद्यालय के प्रधानाचार्य इनका न तो सम्मान करते हैं और न ही इनका कोई सहयोग करते हैं। इनको अनुदेशक कहकर ही बुलाया जाता है। मास्टर साहब जैसे शब्द तो केवल अभिभावकों से सुनने को मिलता है।

अध्यापकों की मीटिंग में न तो इनको पूछा जाता है और न ही इनकी कोई सार्थक राय ली जाती है। अगर कोई अधिकारी आ गया तो सर्वप्रथम इन्हीं के उपर कार्यवाही की जाती है। जबकि ये सभी जानते हैं कि इनको कितनी सैलरी मिलती है फिर भी इनके साथ कोई रियायत नहीं की जाती है।

जानिए इस विषय पर प्रदेश अध्यक्ष विक्रम सिंह ने क्या कहा

इस विषय पर बात करने पर प्रदेश अध्यक्ष विक्रम सिंह कहते हैं कि, "अनुदेशक एक ऐसा प्राणी है जिसको सभी उपेक्षा की नजर से देखते हैं। इसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं है। स्कूल हो या सरकार हर जगह इसकी उपेक्षा है। देर से आने पर अनुपस्थित कर दिया जाता है। बिना स्पष्टीकरण मानदेय काट लिया जाता है और भी कई ऐसी परेशानियां हैं, जिनसे अनुदेशक जूझ रहा है।

"हाय रे अनुदेशक!.... तेरी बस यही है कहानी उपेक्षा, लाचारी और गुमनामी"।

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